दुनिया से अलविदा हुए अंग्रेजों के ज़माने के जेलर असरानी, मुंबई में ली अंतिम सांस
असरानी ‘शोले’ के मशहूर जेलर, जिन्होंने हंसी से सिनेमा को नया अंदाज़ दिया. 84 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली, वो बिमारी से जूझ रहे थे.
By : The Federal
Update: 2025-10-20 17:07 GMT
Asrani's Demise : बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक गोवर्धन असरानी, जिन्हें लोग प्यार से असरानी के नाम से जानते हैं, का सोमवार को मुंबई में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे।
जयपुर से मुंबई तक का सफर
1 जनवरी 1941 को जयपुर (राजस्थान) में जन्मे असरानी ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो में बतौर वॉयस आर्टिस्ट की थी। अभिनय की औपचारिक ट्रेनिंग उन्होंने साहित्य कलाभाई ठक्कर से ली और 1962 में मुंबई आकर फिल्मी करियर शुरू किया।
मुंबई में आने के बाद असरानी की मुलाकात मशहूर फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी से हुई, जिन्होंने उन्हें फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में दाखिला लेने की सलाह दी। असरानी ने 1966 में FTII से स्नातक किया।
‘गुड्डी’ से मिली पहचान
शुरुआती दौर में असरानी को छोटे-छोटे रोल मिले — हम कहां जा रहे हैं, हरे कांच की चूड़ियां, उमंग और सत्यकाम जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया, लेकिन पहचान नहीं बना पाए। इस बीच आर्थिक संकट झेलते हुए उन्होंने FTII में बतौर शिक्षक काम करना शुरू किया।
इसी दौरान हृषिकेश मुखर्जी, जो FTII में अतिथि शिक्षक के रूप में आते थे, ने असरानी से गुलज़ार की सिफारिश पर संपर्क किया। वे अपनी फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) के लिए अभिनेत्री जया भादुड़ी (अब जया बच्चन) को कास्ट करना चाहते थे। असरानी ने ही जया को मुखर्जी से मिलवाया। ऑडिशन के दौरान असरानी ने खुद भी अभिनय किया और फिल्म में उन्हें एक उभरते हुए अभिनेता की भूमिका मिली।
फिल्म ‘गुड्डी’ सुपरहिट साबित हुई और असरानी के करियर को नई उड़ान मिल गई।
सैकड़ों फिल्मों में हास्य और अभिनय का अनोखा संगम
इसके बाद असरानी ने हिंदी और गुजराती सिनेमा में सैकड़ों फिल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं बावर्ची, नमक हराम, चुपके चुपके, अभिमान, चला मुरारी हीरो बनने, पति पत्नी और वो, खून पसीना, अमदावाद नो रिक्शावालो, सात कैदी, संसर चक्र, और पंखी नो माल।
लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली ‘शोले’ (1975) के अनोखे जेलर के किरदार से, जो आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार कॉमिक रोल्स में गिना जाता है।
निर्देशक रमेश सिप्पी ने उन्हें यह भूमिका निभाने के लिए हिटलर से प्रेरणा लेने की सलाह दी थी, जिससे उन्होंने इस किरदार को हास्य और सनक का शानदार मिश्रण बना दिया।
निर्देशक के रूप में भी पहचान
असरानी ने अपने करियर में कुल छह फिल्मों का निर्देशन भी किया। वे आखिरी बार 2003 में रिलीज हुई कॉमेडी फिल्म ‘नॉन-स्टॉप धमाल’ में नज़र आए थे।
परिवार और अंतिम संस्कार
असरानी के परिवार में उनकी पत्नी और अभिनेत्री मंजू असरानी हैं। उनका अंतिम संस्कार सोमवार शाम सांताक्रूज़ श्मशान भूमि (मुंबई) में किया गया।
सिनेमा को हमेशा मुस्कुराने का सबक देकर गए असरानी
असरानी उन कलाकारों में से थे जिन्होंने कॉमेडी को सिर्फ हंसी नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव बनाया। उन्होंने हर पीढ़ी के दर्शकों को यह सिखाया कि हंसी भी अभिनय की सबसे गहरी कला हो सकती है।