8 घंटे की शिफ्ट पर इमरान हाशमी का बयान, बोले, हम रोबोट नहीं हैं, इंसान हैं

इमरान हाशमी अपनी नई फिल्म हक में पहली बार वकील की भूमिका निभा रहे हैं. शाह बानो केस से प्रेरित इस फिल्म पर उन्होंने समान अधिकार, 8 घंटे की शिफ्ट और समाज में बदलाव को लेकर खुलकर बात की.

Update: 2025-11-03 10:54 GMT
Emraan Hashmi Haq movie

बॉलीवुड के टैलेंटेड अभिनेता इमरान हाशमी, जिन्हें कभी सीरियल किसर के नाम से जाना जाता था, अब लगातार अपने किरदारों से उस छवि को तोड़ते दिख रहे हैं. अब वो अपनी नई फिल्म हक (Haq) में पहली बार एक वकील की भूमिका में नजर आएंगे. ये फिल्म शाह बानो केस से प्रेरित बताई जा रही है और समाज में समान अधिकारों की बहस को फिर से जगा सकती है. हाल ही में एक इंटरव्यू में इमरान ने फिल्म, यूनिफॉर्म सिविल कोड, 8 घंटे की शिफ्ट और अपने धर्मनिरपेक्ष विचारों पर खुलकर बात की.

इंसाफ सबके लिए बराबर होना चाहिए

इमरान हाशमी कहते हैं कि उनकी फिल्म हक का सबसे बड़ा संदेश यही है न्याय सबके लिए एक समान होना चाहिए. वो बताते हैं, शाह बानो ने जब अपने लिए केस लड़ा था, तो वो सिर्फ अपने लिए नहीं, आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़ रही थीं. इसलिए यह केस एक लैंडमार्क बन गया. फिल्म ऐसे समय में आ रही है जब देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर बहस तेज है. इमरान का मानना है कि फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करेगी, क्योंकि इसमें समाज से जुड़े कई अहम सवाल उठाए गए हैं .

8 घंटे की शिफ्ट पर बोले, हम मशीन नहीं हैं

जब उनसे पूछा गया कि बॉलीवुड में 8 घंटे की शिफ्ट की चर्चा पर उनकी क्या राय है, तो इमरान ने साफ कहा, जिसका जिक्र हो रहा है, वो खासतौर पर कुछ अभिनेत्रियों के लिए है. जिनके लिए मां बनने के बाद काम के घंटे तय करना ज़रूरी हो जाता है. मैंने हमेशा फ्लेक्सिबिलिटी रखी है. हां, 12 घंटे की शूटिंग को 14 घंटे तक बढ़ा सकता हूं, लेकिन 24 घंटे काम करना इंसान के लिए अनुकूल नहीं होता. फिर हम रोबोट बन जाते हैं. इमरान का ये बयान इंडस्ट्री में काम के माहौल पर एक संतुलित दृष्टिकोण दिखाता है.

पहली बार वकील बने इमरान

फिल्म हक में इमरान हाशमी एक ऐसे वकील की भूमिका में हैं. जो महिला अधिकारों और न्याय के लिए लड़ता है. उन्होंने बताया कि इस किरदार की तैयारी में उन्होंने कई कोर्टरूम ड्रामा फिल्में और शोज देखे. डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा ने कहा था कि अदालत का एक अनुशासन होता है, इसलिए हमने हर चीज़ को असली माहौल जैसा रखा है. इस बार इमरान का अंदाज पूरी तरह नया होगा. न कोई रोमांस, न सस्पेंस – सिर्फ कानूनी लड़ाई और भावनाओं की गहराई. जब उनसे पूछा गया कि क्या इस फिल्म से कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, तो इमरान ने बड़े सधे हुए अंदाज में जवाब दिया. हर कोई आपकी फिल्म से सहमत नहीं होगा. उन्होंने कहा कि फिल्म किसी धर्म या वर्ग का पक्ष नहीं लेती, बल्कि एक औरत के वजूद और इंसाफ की कहानी कहती है. हमारा समाज अक्सर महिलाओं के आत्मसम्मान को पीछे छोड़ देता है और फिल्म इस पर आईना दिखाती है.

शाह बानो केस से प्रेरित कहानी

हक की कहानी 1985 के शाह बानो केस से प्रेरित है, जब देश दो हिस्सों में बंट गया था. एक ओर धार्मिक मान्यताएं थीं, दूसरी ओर संविधानिक अधिकारों की बात. इमरान के शब्दों में, फिल्म वही दिखाती है जो हुआ था. ये किसी को जज नहीं करती, बल्कि सोचने पर मजबूर करती है. ये पुरुषों के लिए आत्मविश्लेषण जैसी फिल्म है.

आवारापन 2 पर भी बोले इमरान

इंटरव्यू के दौरान इमरान ने अपनी लोकप्रिय फिल्म आवारापन की सीक्वल पर भी बात की. पहली फिल्म से मेरा गहरा भावनात्मक जुड़ाव है. इसलिए सीक्वल सिर्फ नाम के लिए नहीं करना चाहता था. इस बार कहानी को लॉजिकल तरीके से आगे बढ़ाया गया है.

फिल्म हक बदलाव की दिशा में एक सशक्त कदम

फिल्म हक सिर्फ एक कोर्टरूम ड्रामा नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों और समानता की लड़ाई की कहानी है. इमरान हाशमी इस फिल्म में अपने अब तक के करियर का सबसे गंभीर और विचारोत्तेजक किरदार निभा रहे हैं. उनका कहना है कि ये फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करेगी और शायद आपके भीतर कुछ बदल भी दे. इमरान हाशमी अब सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि समाज के लिए आवाज उठाने वाले कलाकार के रूप में उभर रहे हैं. फिल्म हक उनके करियर की दिशा बदलने वाली साबित हो सकती है. जहां कोर्ट की बहसों में इंसाफ की पुकार गूंजेगी और दर्शक अपने भीतर के सवालों से सामना करेंगे.

Tags:    

Similar News