फवाद खान की द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट, एक समय भारत में रिलीज होने वाली थी पाकिस्तान की पहली फिल्म

1979 की पंजाबी पंथ क्लासिक मौला जट्ट की रीमेक 2 अक्टूबर को यहां सिनेमाघरों में रिलीज होगी, जो 2016 के उरी हमले के बाद से सांस्कृतिक ठंड में एक पिघलन का संकेत है.

Update: 2024-09-21 05:57 GMT

भारत और पाकिस्तान के बीच दस साल तक चले तनावपूर्ण संबंधों के बाद द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट 2014 के बाद से भारतीय सिनेमाघरों में आने वाली पहली और सबसे ज्यादा कमाई करने वाली पाकिस्तानी फिल्म बनने जा रही है. पाकिस्तान के मेगास्टार फवाद खान और माहिरा खान की ये फिल्म 2 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. बिलाल लशारी द्वारा निर्देशित साल 1979 की पंजाबी कल्ट क्लासिक मौला जट्ट की ये हाई-ऑक्टेन रीमेक सिनेमा के जरिए सांस्कृतिक कूटनीति के इर्द-गिर्द बातचीत को फिर से शुरू करती है और सीमा पार कलात्मक सहयोग के लिए आशा की एक नई भावना पैदा करती है.

भारत में रिलीज होने वाली आखिरी बड़ी पाकिस्तानी फिल्म शोएब मंसूर की बोल साल 2011 में रिलीज हुई थी. सैम सादिक की ऑस्कर जॉयलैंड को पिछले साल कुछ समारोहों में दिखाया गया था, इससे पहले कि ये एप्पल टीवी पर भी है, लेकिन तब से सांस्कृतिक आदान-प्रदान न्यूनतम रहे हैं, खासकर साल 2016 में उरी हमलों के बाद भारत में पाकिस्तानी कलाकारों पर बैन कर दिया. यूनिस मलिक द्वारा निर्देशित मूल मौला जट्ट पाकिस्तानी सिनेमा में एक ऐतिहासिक फिल्म थी, जिसमें एक्शन और मौला जट्ट और खलनायक नूरी नट के बीच सीन दिखाए गए हैं.

1970 के दशक के पुराने मेलोड्रामा से एकदम अलग

हालांकि साल 2022 में रिलीज होने वाली ये फिल्म अपने पिछले संस्करण की उपलब्धियों पर टिकी नहीं है. इसके बजाय लाशरी ने आधुनिक सिनेमाई सौंदर्यशास्त्र के लेंस के माध्यम से फिल्म को फिर से कल्पना करके साहसिक जोखिम उठाया है, जिसमें हाइपर-यथार्थवादी एक्शन, ज्यादा प्रोडक्शन डिजाइन और साउंडट्रैक शामिल है जो खून से लथपथ बदला गाथा को दर्शाता है. मौला जट्ट के रूप में फवाद खान के किरदार और नूरी नट के रूप में हमजा अली अब्बासी के अवतार के साथ, लाशरी का वर्जन एक दशक के पुराने मेलोड्रामा से बहुत अलग है. ये खुद को एक शानदार रूप में पेश करता है जो एक साथ मूल को परिभाषित करने वाले मर्दाना साहस का जश्न मनाता है और उसकी आलोचना करता है. ये फिल्म न केवल एक पुरानी यादों को ताज़ा करती है बल्कि एक पूर्ण ओवरहाल है, जो मूल के लोक-नायक मिथकों को बनाए रखते हुए पात्रों में मनोवैज्ञानिक तीव्रता की परतें जोड़ती है.

तो, ये फिल्म पाकिस्तानी और भारतीय सिनेमा के व्यापक संदर्भ में इतनी महत्वपूर्ण क्यों बन गई है? भारत में इसकी रिलीज को लेकर उत्साह साफ देखा जा सकता है. एक दशक से भी अधिक समय से, पाकिस्तानी कंटेंट को भारतीय स्क्रीन पर नहीं दिखाया जा रहा है. चाहे वो टेलीविजन ड्रामा हो, फिल्में हों या संगीत. कश्मीर में साल 2016 के उरी हमलों के बाद भारत में काम करने वाले पाकिस्तानी कलाकारों पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे. इस के खिलाफ द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट की भारतीय रिलीज एक साहसिक कदम है जो सीमा पार सांस्कृतिक उपभोग की पुरानी यादों को जगाती है, जो अधिक सौहार्दपूर्ण समय के दौरान सामूहिक कल्पना का हिस्सा बन गई थी.

फवाद खान और माहिरा खान दोनों ही भारत में काफी फेमस हैं, जिसका श्रेय बॉलीवुड में उनके पिछले काम को जाता है. कपूर एंड संस और खूबसूरत में फवाद का धमाकेदार एक्टिंग और रईस में शाहरुख खान के साथ माहिरा की एक्टिंग. इसके अलावा यूट्यूब पर उपलब्ध कई हम टीवी ड्रामा. द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट में उनकी ऑन-स्क्रीन जोड़ी इस स्नेह का लाभ उठाती है. लशारी की फिल्म आसानी से एक भारी भरकम मामला हो सकती थी.

फिल्म निर्माताओं और दर्शकों की जीत

फिल्म को अच्छाई बनाम बुराई की कहानियों की कालातीतता में बांधती है. हालांकि, लाशरी ने अपने पात्रों को इतनी गहराई दी है. लाशरी द्वारा निर्देशित सिनेमैटोग्राफी पंजाबी देहात के सीन को प्रस्तुत करती है, जो देहाती सुंदरता को मौला और नूरी के झगड़े की गंभीर, रक्त-रंजित दुनिया के साथ विपरीत दिखाती है. फिल्म की एक्शन कोरियोग्राफी हाल के सालों में साउथ एशियाई सिनेमा में सबसे बेहतरीन में से एक है.

ऐसा कहा जाता है कि द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट की आलोचना भी हुई है. आलोचकों का तर्क है कि भव्यता की चाह में फिल्म ने तमाशा दिखाने के लिए कथात्मक सुसंगतता का त्याग कर दिया है. कहानी दिलचस्प होने के बावजूद कई बार युद्ध के सीन और भव्य सेट-पीस की कर्कशता में खो जाती है. इसके अलावा मूल मौला जट्ट या इसके विशिष्ट सांस्कृतिक परिवेश से अपरिचित दर्शकों के लिए फिल्म के सांस्कृतिक संदर्भ और मुहावरे उनके सिर के ऊपर से उड़ सकते हैं. ये भी सवाल है कि क्या फिल्म की अति-मर्दानगी, जिसमें क्रूर शक्ति और हिंसक प्रतिशोध पर जोर दिया गया है, समकालीन सिनेमाई संवेदनाओं के साथ मेल खाती है जो इस तरह के चित्रण की आलोचना कर रही हैं. फिर भी, इन छोटी-मोटी कमियों के बावजूद, द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट निस्संदेह पाकिस्तानी सिनेमा में एक बड़ी उपलब्धि है, जिसने एक नया मानक स्थापित किया है. इसका भारत में रिलीज होना न केवल फिल्म निर्माताओं के लिए बल्कि सीमा के दोनों ओर के दर्शकों के लिए भी एक जीत है.

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