Kota Factory Season 3 Review: देश की कोचिंग सिटी में सपनों और निराशा की एक कहानी
देश की कोचिंग सिटी कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल के एंट्रेस एग्जाम की तैयारी करवाने वाले इंस्टीट्यूट्स की जो फैक्ट्री लगी है, उससे हम सब वाकिफ हैं
हिट वेब सीरीज कोटा फैक्ट्री सीजन 3 मेडिकल के एंट्रेस एग्जाम की तैयारी करवाने वाले इंस्टीट्यूट्स की जो फैक्ट्री लगी है, उससे हम सब वाकिफ हैं. आईआईटी की दौड़ में उम्मीदवारों पर पड़ने वाले बच्चों पर एक नज़र डालती है, लेकिन आंखों को सुकून देने वाले समाधानों के साथ लड़खड़ाती दिखाई देती है.
कोटा फैक्ट्री के निर्माता सही समय पर नया सीजन लेकर आए हैं. तीन परीक्षाएं NEET-UG, UGC NET, NEET PG लगातार लीक, रद्द या स्थगित हो गई हैं. छात्र सड़कों पर उतर आए हैं. साथ ही अपनी दुर्दशा ट्वीट कर रहे हैं. उनके माता-पिता अलग परेशान होते दिखाई दे रहे हैं. सीजन 2 का एक डायलॉग याद आता है जिसमें जीतू भैया (जितेंद्र कुमार) अपने अंदाज में कहते हैं, कहो आईआईटी करना मेरा ड्रीम नहीं एम है. कोई आश्चर्य करता है कि क्या छात्रों की नींद के लिए भी यही कहा जा सकता है.
यह सीज़न कई मायनों में पिछले दो सीज़न से उधार लेता है. इसमें ब्लैक-एंड-व्हाइट टेम्पलेट बरकरार है. असेंबली लाइन से लिए गए एपिसोड के शॉट बंद कक्षाएं और परीक्षा केंद्र या तो पन्नों को पलटने से अलग हैं, लेकिन जितना ये ठहराव और वास्तविक परीक्षा तक असामान्य रूप से दिखाया गया है. उतना लंबा समय हमें उम्मीदवारों के जीवन की स्थिति के बारे में बताता है.
वेब सीरीज के बीच में छोटे शहर के छात्रों की परेशानियों को उजागर करने वाली ढेर सारी चीजें साथ आती है. माता-पिता की आकांक्षाओं और साथियों के दबाव से प्रभावित होते हैं, चिकनी-चुपड़ी कहानियों के जाल में फंसना आसान है. वरुण ग्रोवर की ऑल इंडिया रैंक मेरे लिए सिर्फ़ इसी वजह से कारगर रही. आगे अस्तित्व का एक काला किरदार खींचकर एक पिता को लटकाया गया. एक मां को एक व्यक्ति द्वारा परेशान किया जा रहा था. ये माता-पिता की मानसिकता में एक झलक देता है, जिनके लिए अपने बच्चों के लिए आकांक्षाएं ही थकान से बचने और बेहतर जीवन का भ्रम पैदा करने का एकमात्र तरीका है.
कोटा फैक्ट्री का सीज़न 3 भी कुछ इसी तरह की कहानी बयां करता है. इसकी शुरुआत एक गंभीर नोट पर होती है. जीतू भैया कई दिनों से अपने कोचिंग क्लास में नहीं आए हैं. उन्हें अपने गंदे कमरे में धूम्रपान करते हुए देखा जाता है, जो अखबारों के रोल, आधे खाए हुए सेब और सिगरेट के टुकड़ों से भरा हुआ है. वो लगातार एक दीवार को देखता रहता है. अपने छात्र की आत्महत्या के विचार से वो घबरा जाता है और ये सोचता है मैंने कहां गलती की?
दूसरे सीन में हम वैभव के छोटे भाई को कोटा आते हुए देखते हैं. वैभव इसे एक औपचारिकता मानता है, लेकिन विराट कोहली के साथ उसकी तस्वीर देखकर उसके दोस्त उत्साहित हो जाते हैं. वो आईपीएल ट्रायल में भी खेल चुका है और चयन का इंतजार कर रहा है. जब वैभव की गर्लफ्रेंड वर्तिका रतवाल से पूछा जाता है कि वो दोनों भाइयों में से किसका पोस्टर अपने कमरे में लगाएगी, तो वैभव सोचने लगता है कि क्या वो आईआईटी में चयन के बाद भी अपने भाई के कद तक पहुंच पाएगा.
ये एक दिलचस्प मोड़ हो सकता था, लेकिन निर्माता राघव सुब्बू और निर्देशक प्रतीश मेहता ने जल्दबाजी में संघर्ष को तीखा बनाने के लिए पर्याप्त समय नहीं लगाया. तनाव को एक सामान्य समाधान से बहुत आसानी से कम किया जा सकता है. वास्तव में, पूरा सीजन ऐसे आसान समाधानों से भरा पड़ा है. इसका मतलब ये नहीं है कि इस सीरीज में अच्छे सीन की कमी है. एक सबप्लॉट जो मुझे खास तौर पर पसंद आया, वो था किरदारों के बढ़ते रिश्तों पर पढ़ाई का असर. वैभव दोनों में से ज़्यादा बुद्धिमान है और वर्तिका के साथ पढ़ाई करते समय उसे अपनी लापरवाही का एहसास नहीं होता. वो उससे बचने लगती है. ये हमें वैभव के किरदार, उसके मर्दाना अहंकार, उलझन और खुद पर संदेह से भरे होने के बारे में जानकारी देता है.
इसी तरह मीना की आंतरिकता को चतुराई से दर्शाया गया है. उसके पास पैसे खत्म हो गए हैं, लेकिन वो दोस्तों से पैसे मांगकर अपनी शान को बचा नहीं पाता. हालांकि, उदय और शिवांगी के किरदारों में कोई विकास नहीं हुआ है. सबसे ज़्यादा मुझे इस बात से चिढ़ होती है कि उनकी दोस्ती एक जैसी है. यहां तक कि जब परीक्षा के तनाव के कारण तनाव बढ़ता है, तो भी इसका असर उनकी दोस्ती पर कभी नहीं पड़ता.
लेकिन फिर, हो सकता है कि निर्माताओं का इरादा ऐसा न हो. इस पांच एपिसोड की सीरीज़ का मुख्य विषय जीतू भैया का खुद से संघर्ष है. हमें पता चलता है कि वो थेरेपी में हैं. स्प्लिट पर्सनालिटी डिसऑर्डर से पीड़ित किसी व्यक्ति की तरह, उसके दो रूप हैं. एक वो जीतू भैया जो समय बचाने के लिए किसी छात्र को फ्लाइट लेने के लिए पैसे देने से पहले एक बार भी नहीं सोचते दूसरा निराश, चिड़चिड़ा शिक्षक, जो ज़िम्मेदारी का भार नहीं उठा पाता. वो कक्षा में पढ़ा रहा होता और अचानक किसी छात्र की हरकत या उन्हें दी गई उसकी अपनी सलाह उसे घटना की याद दिलाती और वो चुप हो जाता.
पूजा मैडम इस सीरीज में नई जोड़ी गई हैं. वो एक केमिस्ट्री टीचर हैं, जिनके कंधे पर शॉल लपेटा हुआ है. सीरीज में संकेत मिलता है कि वो अगली दीदी बन सकती हैं. इसलिए वो केमिस्ट्री को सोडियम और हाइड्रोजन के बीच प्रेम संबंध के रूप में बताती हैं और हमेशा सलाह देती हैं. शोम ने अपने किरदार को बहुत ही संयम से निभाया है, सिवाय इसके कि उन्हें स्क्रीन पर पर्याप्त समय नहीं मिलता है.
कोटा फैक्ट्री को लॉन्च के बाद इसके किरदार के लिए सराहा गया है. बोर्ड और जेईई परीक्षा के करीब होने के कारण वैभव टूट जाता है, लेकिन बाद के एपिसोड में बोर्ड जादुई रूप से गायब हो जाते हैं. कर्ज में डूबे होने के बावजूद जीतू भैया लापरवाही से छात्रों को पैसे बांटते हैं. उन्हें ये एहसास नहीं है कि हर छात्र अलग है.
(ये स्टोरी कोमल गौतम द्वारा हिंदी में अनुवाद की गयी है)