रेजांग ला के वीर: मेजर शैतान सिंह की अमर गाथा

1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांग ला की लड़ाई में मेजर शैतान सिंह ने अपनी टुकड़ी के साथ अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया.;

Update: 2025-08-08 09:12 GMT

मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बनासर गांव में एक सैन्य परिवार में हुआ. उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भी भारतीय सेना में थे. शैतान सिंह 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के कमांडर थे, जिसके सभी सैनिक अहीर समुदाय से थे और हरियाणा के गुड़गांव व मेवात क्षेत्र के किसान या पशुपालक परिवारों से ताल्लुक रखते थे.

रेजांग ला का रण

रेजांग ला, लद्दाख की चुशूल घाटी के पास 16,000 फीट ऊंचाई पर स्थित एक रणनीतिक दर्रा है. नवंबर 1962 में यहां भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के बीच भयंकर लड़ाई हुई. मौसम बेहद सर्द था, संख्या में भारतीय सैनिक बहुत कम थे और उनके पास केवल पुरानी .303 राइफलें और सीमित गोला-बारूद था. बारूदी सुरंगें, आधुनिक हथियार और सही ढंग से काम करने वाले रेडियो सेट तक उपलब्ध नहीं थे.

18 नवंबर 1962 की रात, चीनी सैनिकों ने रेजांग ला पर कब्जे के लिए हमला किया. मेजर शैतान सिंह ने अपने 120 जवानों को तीन प्लाटून में दो किलोमीटर लंबे मोर्चे पर तैनात किया. शुरुआती गोलाबारी में दुश्मन को भारी नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने हैवी आर्टिलरी फायर के साथ दोबारा हमला किया.

वीरता की मिसाल

चीनी सेना के 2,000 से ज्यादा सैनिकों का सामना करते हुए चार्ली कंपनी ने अदम्य साहस दिखाया. तीसरी पलटन ने दुश्मन से हाथापाई तक की, जबकि बाकी जवान अंतिम सांस तक लड़ते रहे. इस लड़ाई में 114 भारतीय सैनिक शहीद हुए, लेकिन उन्होंने लगभग 1,000 चीनी सैनिक मार गिराए.

मेजर शैतान सिंह गोली लगने के बावजूद मोर्चे पर डटे रहे और अपने साथियों को लड़ाई जारी रखने का आदेश दिया. उन्होंने अपने दो सैनिकों से आग्रह किया कि उन्हें एक चट्टान के पीछे छोड़कर बाकी जवानों की मदद करें. कई महीनों बाद उनका पार्थिव शरीर उनके साथियों के शवों के साथ वहीं मिला. कई सैनिक अब भी अपनी बंदूकें थामे हुए थे.

सम्मान और विरासत

फरवरी 1963 में मिले उनके शव को जोधपुर लाया गया, जहां हजारों लोगों ने सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी. उनकी अदम्य वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र प्रदान किया गया. रेजांग ला की लड़ाई को आज भी आखिरी आदमी, आखिरी गोली तक लड़ी गई भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा का प्रतीक माना जाता है. मेजर शैतान सिंह का नाम भारतीय सैन्य इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा.

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