स्पॉटबॉय से नेशनल अवॉर्ड विनर तक: विजय अरोड़ा की सफलता कहानी
71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में विजय अरोड़ा की फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ को सर्वश्रेष्ठ पंजाबी फिल्म का अवॉर्ड मिला. ये उनका दूसरा नेशनल अवॉर्ड है.;
आज का दिन भारतीय सिनेमा के लिए बेहद खास रहा. 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री में खुशी का माहौल है. इस साल पंजाबी फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ (Godday Godday Chaa) को सर्वश्रेष्ठ पंजाबी फीचर फिल्म का सम्मान मिला है. इस फिल्म के निर्देशक विजय कुमार अरोड़ा हैं जिन्हें इंडस्ट्री में ‘डैडू’ के नाम से भी जाना जाता है. ये विजय अरोड़ा के करियर का दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार है. उन्होंने इससे पहले 2018 में अपनी पंजाबी फिल्म ‘हरजीता’ के लिए यह सम्मान हासिल किया था.
दोहरी खुशी: हिंदी और पंजाबी सिनेमा में सफलता
विजय अरोड़ा के लिए यह जश्न का दुगुना मौका है क्योंकि एक तरफ उनकी निर्देशित पहली हिंदी फिल्म ‘सन ऑफ सरदार 2’ सिनेमाघरों में दर्शकों का दिल जीत रही है और दूसरी तरफ उनकी पंजाबी फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है.
स्पॉटबॉय से नेशनल अवॉर्ड विनर तक का सफर
विजय अरोड़ा का फिल्मी सफर प्रेरणादायक है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर स्पॉटबॉय की थी. इसके बाद वे सिनेमैटोग्राफर बने और फिर निर्देशन की दुनिया में कदम रखा. आज वो दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले निर्देशक बन चुके हैं जो बड़े सपने देखने वालों के लिए एक मिसाल हैं.
‘गोड्डे गोड्डे चा’ की कहानी क्या है?
फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ 1990 के दशक के पंजाब की पृष्ठभूमि पर आधारित है. उस समय महिलाओं को शादी की बारात में जाने की अनुमति नहीं थी यहां तक कि दुल्हन की मां को भी फेरों में शामिल होने से रोका जाता था. फिल्म की मुख्य किरदार रानी (सोनम बाजवा) इस परंपरा को तोड़ना चाहती है. वह गांव की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर एक सीक्रेट प्लान बनाती है ताकि सब बारात में शामिल हो सकें.
सामाजिक संदेश के साथ मनोरंजन
फिल्म हास्य, ड्रामा और इमोशंस के जरिए इस सामाजिक मुद्दे को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करती है. यह दिखाती है कि महिलाओं ने कैसे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया और पुरानी पितृसत्तात्मक परंपराओं को बदला. विजय अरोड़ा का निर्देशन इस कहानी को गहराई और संवेदनशीलता के साथ पर्दे पर उतारता है, जिससे दर्शक किरदारों से जुड़ाव महसूस करते हैं.