मंदाकिनी ने बताया 80s के बॉलीवुड का कड़वा सच, ‘हीरो ही तय करते थे किसके साथ काम करना है…’

हाल ही में एक थ्रोबैक इंटरव्यू में मंदाकिनी ने 1980 के दशक के पुरुष प्रधान बॉलीवुड के बारे में खुलकर बात की.;

Update: 2025-07-17 10:45 GMT
Mandakini Bollywood struggles

बॉलीवुड की खूबसूरत एक्ट्रेस मंदाकिनी, जिन्होंने 1985 में 'राम तेरी गंगा मैली' से डेब्यू किया था, रातों-रात सुपरस्टार बन गई थीं. मगर जितनी जल्दी उन्हें शोहरत मिली, उतनी ही जल्दी उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री का कड़वा सच भी देख लिया. हाल ही में एक थ्रोबैक इंटरव्यू में मंदाकिनी ने 1980 के दशक के पुरुष प्रधान बॉलीवुड के बारे में खुलकर बात की और बताया कि कैसे हीरो तय करते थे कि किस अभिनेत्री को फिल्म में लेना है और किसे नहीं. मंदाकिनी, जिनका असली नाम यासमीन जोसेफ है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत राजीव कपूर के साथ फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' से की थी. इस फिल्म की लोकप्रियता ने उन्हें हर घर का जाना-पहचाना नाम बना दिया.

उनकी मासूमियत और सुंदरता ने लाखों दिलों को जीता, लेकिन इसके बावजूद वह फिल्म इंडस्ट्री के भेदभाव से नहीं बच सकीं. करीब दो साल पहले एक इंटरव्यू में मंदाकिनी ने बताया कि उस दौर में अभिनेताओं को बहुत ताकत दी जाती थी. वो निर्माता-निर्देशकों से कहते थे कि उन्हें किस अभिनेत्री के साथ काम करना है और किसके साथ नहीं. उन्होंने कहा हीरोज ही मोस्टली डिसाइड करते थे कि किनके साथ काम करना है, किनके साथ नहीं. अगर कोई लड़की उन्हें पसंद नहीं आती थी तो कहते थे इनको मत लो, किसी और को ले लो.

जब इंटरव्यू लेने वाले ने उनसे पूछा कि क्या उनके साथ ऐसा हुआ है, तो उन्होंने कहा, हां, एक-दो बार ऐसा हुआ. पैसों की वजह से भी गई फिल्म हाथ से मंदाकिनी ने आगे बताया कि उस दौर में एक पूरी फिल्म के लिए एक्ट्रेस को अधिकतम 2 लाख तक ही मिलता था. उन्होंने एक वाकया शेयर करते हुए कहा एक फिल्म की कहानी मुझे सुनाई गई और मैंने हां कर दी, लेकिन दो-तीन दिन के अंदर उस फिल्म की घोषणा किसी और एक्ट्रेस के साथ कर दी गई. जब मंदाकिनी ने अपने मैनेजर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने उस फिल्म के लिए 1 लाख मांगा था, जबकि प्रोड्यूसर को कोई और एक्ट्रेस सिर्फ 75 हजार में मिल गई.

मंदाकिनी ने स्वीकार किया कि ये सब उस समय बहुत आम बात थी. पैसे कम देना, हीरो की पसंद को महत्व देना, और बिना कारण ही किसी को फिल्म से बाहर कर देना ये सब उस दौर का हिस्सा था. उन्होंने कहा ये चीजें पहले भी हुई हैं और मैंने ये सब खुद देखा और झेला है. आज भले ही फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों को बराबरी का दर्जा मिलने की बातें होती हैं, लेकिन मंदाकिनी की बातें यह बताती हैं कि बीते दौर में अभिनेत्रियों के लिए संघर्ष कहीं ज्यादा कठिन था. खूबसूरती और टैलेंट के बावजूद एक एक्ट्रेस को किसी हीरो की पसंद-नापसंद का शिकार होना पड़ता था.

शोहरत के पीछे छिपी थी एक कड़वी हकीकत

मंदाकिनी की कहानी हमें ये सिखाती है कि चमक-धमक वाली फिल्म इंडस्ट्री के पीछे एक ऐसा सिस्टम था जिसमें महिलाओं को कमतर आंका जाता था. उनकी ये स्वीकारोक्ति सिर्फ एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि उस दौर की सामूहिक सच्चाई है. अब जब इंडस्ट्री बदलाव की ओर बढ़ रही है, ऐसे किस्से हमें ये याद दिलाते हैं कि बराबरी की लड़ाई अभी भी अधूरी है.

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