जब Yash Chopra ने Silsila की असली कहानी पर से उठाया पर्दा, जया पत्नी थीं और रेखा…
यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला सिर्फ पर्दे की कहानी नहीं थी, बल्कि अमिताभ बच्चन, जया और रेखा की असल जिंदगी के रिश्तों की झलक भी थी.;
बॉलीवुड की फिल्में अक्सर रियल लाइफ इंस्पिरेशन से बनती हैं, लेकिन बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं जिनमें रील और रियल लाइफ का अंतर पूरी तरह मिट जाए. यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला साल 1981 में एक ऐसी ही फिल्म थी, जिसने पर्दे पर जितना रोमांच दिखाया, उससे कहीं ज्यादा ड्रामा पर्दे के पीछे था.
'सिलसिला': फिल्म नहीं, असली जिंदगी की कहानी
ये फिल्म एक लव ट्रायंगल पर आधारित थी जिसमें अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और रेखा मुख्य भूमिका में थे, लेकिन ये सिर्फ स्क्रिप्ट तक सीमित नहीं था. असल जिंदगी में भी तीनों के रिश्ते उतने ही उलझे हुए थे. यश चोपड़ा ने साल 2010 में एक इंटरव्यू में इस फिल्म की सच्चाई को लेकर खुलकर बात की थी उन्होंने कहा, मैं हमेशा डरा रहता था, क्योंकि जो कहानी फिल्म में थी, वही असल जिंदगी में भी हो रही थी. उन्होंने आगे साफ शब्दों में कहा था, जया उनकी पत्नी हैं और रेखा उनकी गर्लफ्रेंड. ये फिल्म में भी है और रियल लाइफ में भी यही स्थिति थी.
शूटिंग के दौरान तनाव का माहौल
यश चोपड़ा ने बताया कि फिल्म की शूटिंग करना किसी तलवार की धार पर चलने जैसा था. तीनों कलाकारों के बीच व्यक्तिगत रिश्ते इतने संवेदनशील थे कि कभी भी कुछ भी हो सकता था. लेकिन इसके बावजूद सभी ने प्रोफेशनलिज्म दिखाया और शूटिंग पूरी की. शायद यही कारण था कि फिल्म आज भी याद की जाती है.
अमिताभ की प्रतिक्रिया
जब ये इंटरव्यू टेलीकास्ट हुआ तब ये खबर फैली कि अमिताभ बच्चन यश चोपड़ा की इस टिप्पणी से नाराज हैं. ये भी गौर करने वाली बात है कि फिल्म सिलसिला अमिताभ और रेखा की साथ में आखिरी फिल्म थी. इसके बाद दोनों कभी एक साथ स्क्रीन पर नजर नहीं आए. हालांकि 1981 में रिलीज के समय फिल्म ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन समय के साथ ये एक कल्ट क्लासिक बन गई है. यश चोपड़ा की स्टोरीटेलिंग और गानें जैसे ‘देखा एक ख्वाब’, ‘ये कहां आ गए हम’ आज भी सुने जाते हैं.
फिल्म सिलसिला केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि बॉलीवुड के इतिहास का एक अहम अध्याय है. ये न सिर्फ अमिताभ-जया-रेखा के रिश्तों की जटिलता को दर्शाता है, बल्कि एक निर्देशक की ईमानदारी और हिम्मत को भी दिखाता है. यश चोपड़ा की ये फिल्म आज भी दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है. क्या सिनेमा, सच से ज्यादा सच्चा हो सकता है?