दाऊद इब्राहिम की प्रॉपर्टी और यूपी का शख्स! 23 साल की लड़ाई के बाद आखिरकार किया कब्जा, जानें पूरा मामला
Dawood Ibrahim property: जैन ने पहली बार मुंबई के नागपाड़ा इलाके में 144 वर्ग फुट की दुकान पर अपनी नजर डाली तो उन्होंने इसे प्रॉपर्टी से कहीं अधिक देखा.;
Dawood Ibrahim shop: दिल में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जीवन में कुछ भी हासिल करना नामुमकिन नहीं है. किसी इंसान के जीवन में परिवार की अहमियत सबसे अधिक होती है. हालांकि, खून-पसीने से कमाई गई प्रॉपर्टी भी इंसान के दिल में अहम जगह रखती है. ऐसा ही एक वाक्या यूपी के रहने वाले हेमंत जैन के साथ हुआ. उन्होंने मुंबई में अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) की प्रॉपर्टी खरीदी. इसके बाद उनको इस संपत्ति को अपने नाम पर करवाने के लिए कई पापड़ बेलने पड़े और आखिरकार 23 साल के लंबे इंतजार के बाद जैन के नाम पर यह प्रॉपर्टी हुई.
जैन ने पहली बार मुंबई के नागपाड़ा इलाके में 144 वर्ग फुट की दुकान पर अपनी नजर डाली तो उन्होंने इसे प्रॉपर्टी से कहीं अधिक देखा. उन्होंने इस प्रॉपर्टी को अंडरवर्ल्ड डॉन (Dawood Ibrahim) को चुनौती देने के मौक़े के तौर पर देखा. उन्होंने कहा कि मैंने एक दिन अख़बार में पढ़ा कि दाऊद (Dawood Ibrahim) की प्रॉपर्टियों को कोई नहीं खरीद रहा है. यह देखकर मुझे बेहद ताज्जुब हुआ और फिर मैंने उन प्रॉपर्टी के लिए बोली लगाई. यह 23 साल पहले की बात है और तब जैन 34 साल के थे. इसके बाद काफ़्का जैसी नौकरशाही, बढ़ती लागत और वसीयत के बीच टकराव की यात्रा शुरू हुई. यह सब भारत के सबसे कुख्यात अंडरवर्ल्ड के लोगों में से एक दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) से जुड़ी अचल संपत्ति के एक टुकड़े के लिए था.
जैन अब 57 वर्ष के हैं. उन्होंने सितंबर 2001 में आयकर विभाग द्वारा आयोजित नीलामी के दौरान जयराज भाई स्ट्रीट पर दुकान के लिए 2 लाख रुपये का भुगतान करके प्रॉपर्टी खरीदी थी. लेकिन यह जश्न ज़्यादा दिनों तक नहीं चला. उन्होंने कहा कि प्रॉपर्टी खरीदने के बाद अधिकारियों ने मुझे गुमराह किया. केंद्र के स्वामित्व वाली प्रॉपर्टी को ट्रांसफर करने पर प्रतिबंध का दावा किया. बाद में, मुझे पता चला कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था उस पल से नौकरशाही की बाधाएं बहुत तेजी से आने लगीं.
आयकर विभाग ने दावा किया कि "मूल फाइलें गायब हैं," जिससे स्वामित्व ट्रांसफर प्रक्रिया अधर में लटक गई. अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय को बार-बार पत्र लिखे जाने के बावजूद कोई प्रगति नहीं हो पाई.
साल 2017 तक प्रॉपर्टी की फाइल पूरी तरह से गायब हो गई और जैन को मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान करने के लिए कहा गया. जो बढ़कर 23 लाख रुपये से अधिक हो गई थी. रजिस्ट्रेशन फीस और दंड ने उनकी वित्तीय परेशानियों को और बढ़ा दिया. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि प्रॉपर्टी नीलामी में खरीदी गई थी. इसलिए स्टाम्प ड्यूटी की गणना बाजार मूल्य के अनुसार नहीं की जानी चाहिए थी. मैंने कई वर्षों तक रजिस्ट्रार कार्यालय से संपर्क किया. लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. हालांकि, हार न मानते हुए जैन ने स्टाम्प ड्यूटी और दंड के रूप में 1.5 लाख रुपये का भुगतान किया और 19 दिसंबर 2024 को प्रॉपर्टी आखिरकार उनके नाम पर रजिस्टर हो गई.
उन्होंने कहा कि मैं इस लड़ाई को नहीं छोडूंगा. अब जब प्रॉपर्टी मेरे नाम पर है तो मैं कब्जा भी हासिल करूंगा. लेकिन जीत अभी भी अधूरी है. दुकान पर अभी भी दाऊद (Dawood Ibrahim) के कथित गुर्गों का कब्जा है, जिन्होंने इस जगह को लेथ मशीन वर्कशॉप में बदल दिया है.
उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने मुझे प्रॉपर्टी के बारे में भूल जाने और शांति से रहने की सलाह दी. लेकिन हम गांव वालों को डर नहीं लगता. गांव का आदमी बरगद के पेड़ की तरह होता है. जो हर हवा के सामने मजबूत होता है. यह दुकान तस्कर और विदेशी मुद्रा हेरफेर (संपत्ति जब्ती) अधिनियम (SAFEMA) के तहत जब्त की गई कई संपत्तियों में से एक थी. जो दाऊद (Dawood Ibrahim) के साम्राज्य पर सरकार की कार्रवाई का हिस्सा है. जैन और उनके बड़े भाई पीयूष ऐसी संपत्ति खरीदने वाले पहले व्यक्ति थे. एक ऐसा कदम जिसने दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया.