पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी के SIR पर सवाल: ‘99% सटीक मतदाता सूची को क्यों खत्म किया जाए?’

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने चेतावनी दी कि मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) दशकों की प्रगति को उलट सकता है, और इस प्रक्रिया को असंगत, अनावश्यक और गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताया।

Update: 2025-12-21 16:13 GMT
कुरैशी ने कहा कि SIR पूरी तरह अनावश्यक था

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एस.वाई. कुरैशी ने चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की आलोचना करते हुए इसे अनावश्यक, असंगत और प्रक्रियागत रूप से खामियों से भरा बताया है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह अभ्यास सटीक मतदाता सूची बनाने में दशकों की मेहनत को नुकसान पहुँचा सकता है। द फेडरल को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कुरैशी ने SIR की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब इसकी सटीकता का पूरा बोझ इसी प्रक्रिया पर आ गया है। SIR को लेकर मतदाताओं के अधिकार छीने जाने और प्रशासनिक अतिरेक के आरोप लग रहे हैं। कुरैशी ने बताया कि क्यों उनके मुताबिक यह प्रक्रिया अनावश्यक, जोखिमभरी और गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है।

दशकों पुरानी व्यवस्था कूड़ेदान में

पूर्व CEC ने कहा कि SIR की कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि भारत की मतदाता सूचियाँ पिछले दो दशकों से लगातार अपनाई जा रही ‘संक्षिप्त पुनरीक्षण’ प्रक्रिया के ज़रिए पहले ही काफ़ी हद तक सटीक हो चुकी थीं।

उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि SIR पूरी तरह अनावश्यक था, क्योंकि पिछले 20–25 वर्षों से जो संक्षिप्त पुनरीक्षण हम करते आ रहे हैं, वह अच्छा काम कर रहा था। हम मतदाता सूचियों में लगभग 99 प्रतिशत सटीकता हासिल कर चुके थे।”

उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण से मतदाता सूचियों को लगातार अपडेट करना संभव हुआ था, लेकिन इसके बावजूद सब कुछ नए सिरे से शुरू करने का फैसला समझ से परे है।

“इस पर आगे काम करने के बजाय, उन्होंने मौजूदा मतदाता सूचियों को काग़ज़ के कूड़ेदान में फेंक दिया और अब घर-घर जाकर मतदाताओं को नए सिरे से खोज रहे हैं। जिसे हासिल करने में हमें 30 साल लगे, वे सोचते हैं कि उसे 30 दिनों में कर लेंगे। यह एक गंभीर भूल है।”

मतदाता सूची ‘साफ़’ करने का दावा उलटा पड़ सकता है

सरकार के इस दावे पर कि यह प्रक्रिया मतदाता सूचियों को साफ़ करने के लिए की जा रही है, पूर्व CEC ने चेतावनी दी कि इसका नतीजा उलटा भी हो सकता है।

उन्होंने कहा, “सूचियों को साफ़ करने के बजाय, आप उन्हें और ज़्यादा गंदा कर देंगे।”

उन्होंने ‘इंटेंसिव रिविज़न’ की अवधारणा को ही भ्रामक बताया।

“आप किसी मौजूदा चीज़ का पुनरीक्षण करते हैं। यहाँ तो मौजूदा दस्तावेज़ को ही फेंक दिया गया है और शुरुआत से डेटा इकट्ठा किया जा रहा है। यह एक बेहद कठिन काम है और उन्होंने अपने हाथ खुद मुसीबत में डाल लिए हैं। इसके नतीजे सामने हैं। पूरा देश असहज और बेचैन है,” उन्होंने कहा।

असंगत और संदेहास्पद

बिहार का उदाहरण देते हुए उन्होंने विदेशियों की पहचान के घोषित उद्देश्य की तुलना में इस अभ्यास के पैमाने पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “करीब 500 विदेशी पकड़े गए, जिनमें लगभग 150 बांग्लादेशी और 350 नेपाली हिंदू महिलाएं थीं… और इसके लिए करीब आठ करोड़ बिहारियों को इधर-उधर दौड़ाया गया। अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर सोचिए। देश में लगभग 100 करोड़ मतदाता हैं।” उन्होंने इस तरीके को “पूरी तरह असंगत और बेहद संदेहास्पद” बताया।

पूर्व CEC ने कहा कि मौजूदा प्रणाली का वर्षों तक सफलतापूर्वक अपनाई गई व्यवस्था से बहुत कम मेल है।

उन्होंने कहा, “जो प्रणाली अब अपनाई जा रही है, वह वह नहीं है जिसे हमने पिछले 20 वर्षों तक अपनाया।” उन्होंने बताया कि संक्षिप्त पुनरीक्षण (Summary Revision) प्रक्रिया हर साल नए मतदाताओं की पहचान करती थी और ASD मतदाताओं—अनुपस्थित, स्थानांतरित और मृत—को सूची से हटाती थी।

“मतदाता सूची को अपडेट करने की यह प्रणाली बेहद अच्छी तरह काम कर रही थी। अचानक आप कहते हैं कि यह पूरी व्यवस्था कूड़ेदान में चली जाएगी और आप नए सिरे से शुरुआत करेंगे। ठीक है, आपको शुभकामनाएँ,” उन्होंने तंज कसते हुए कहा।

जवाबदेही तय होनी चाहिए

उन्होंने चेतावनी दी कि इतने बड़े पैमाने पर की जा रही इस प्रक्रिया में अगर गलतियाँ हुईं, तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं।

उन्होंने कहा, “अगर इससे साफ़-सुथरी मतदाता सूची नहीं बनती और अगर बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ सामने आती हैं—जैसे लोगों को ग़लती से मृत घोषित कर दिया जाना—तो किसी न किसी को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।”

ईमानदारी नहीं, समझदारी पर सवाल

चुनाव आयोग की ईमानदारी को लेकर पूछे गए सवाल पर कुरैशी ने संस्था का बचाव किया, लेकिन निर्णय प्रक्रिया पर चिंता जताई।

उन्होंने कहा, “मैं चुनाव आयोग की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाऊँगा, लेकिन मैं चुनाव आयोग की समझदारी पर ज़रूर सवाल उठाऊँगा।”

राजनीतिक मंशा पर टिप्पणी से इनकार

जब उनसे पूछा गया कि क्या यह अभ्यास किसी खास विचारधारा को फायदा पहुँचाने के लिए किया जा रहा हो सकता है, तो पूर्व CEC ने अटकलें लगाने से इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा, “मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। मुझे नहीं पता कि मंशा क्या है। मैं केवल प्रक्रिया और तौर-तरीकों की बात कर रहा हूँ।”

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