डोकलाम ने हमें जगा दिया था, आर्मी चीफ ने गलवान का जिक्र कर कही बड़ी बात

पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में चीन ने 2020 में नापाक हरकत की थी। इस विषय पर आर्मी चीफ उपेंद्र द्विवेदी ने पुनर्सतुंलन 2.O जैसी कुछ बड़ी बात कही।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-20 05:40 GMT

India China On Eastern Ladakh Issue: चीन-भारत के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। ब्रिटिश जमाने में मैक्मोहन लाइन के जरिए दोनों देशों के बीच सीमा निर्धारित की गई। लेकिन जमीनी स्तर पर विवाद के कई केंद्र हैं। इसके पीछे भौगोलिक हालात के साथ साथ मनोवैज्ञानिक वजह भी है। मसलन पूर्वी लद्दाख, उत्तराखंड के कुछ इलाकों, अरुणाचल प्रदेश के तवांग को वो तिब्बत का दक्षिणी विस्तार मानता है ऐसे में वो अपनी हरकतों को जायज ठहराता है। चार साल पहले 2020 में 15-16 जून की रात पूर्वी लद्दाख के गलवान में चीनी सैनिक घुस आते हैं, भारतीय फौज से आमना सामना होता है और उन्हें खदेड़ा जाता है। लेकिन इस तरह की खबर आई कि उनका कुछ विवादित पोस्ट पर कब्जा हो चुका है जैसे हॉट स्प्रिंग्स के कुछ इलाकों पर। लेकिन उसे लेकर भारतीय और चीनी दोनों पक्ष राय अलग अलग है।

सीमा निर्धारण बड़ा मसला
गलवान की घटना के बाद सेना पर बड़े स्तर की कई दौर की बातचीत हो चुकी है विवादित इलाकों से सेनाएं पीछे भी हटी हैं। लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बातचीत जारी है। हाल हीं में विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने कहा था भारत चीन सीमा विवाद के 75 फीसद मामलों पर सहमति है। यानी कि 25 फीसद मामले ऐसे हैं जो विवाद की मूल वजह है और यह 75 फीसद पर भारी पड़ रहे हैं। भारत शक्ति डिफेंस कान्क्लेव में बोलते हुए आर्मी चीफ उपेंद्र द्विवेदी ने बड़ी बात कही। वो कहते हैं कि 2020 में फौज ने सोचा कि यह पुनर्संतुलन का पहला चरण है। अब चार साल बीत जाने के बाद दूसरे चरण की जरूरत है। मई 2020 के बाद से ही भारतीय और चीनी सेना के बीच गतिरोध बना हुआ है। ये बात सच है कि विवाद के कई बिंदुओं से दोनों पक्ष पीछे हटे हैं। लेकिन अभी भी पूर्ण रूप से मामले का निपटारा नहीं हुआ है। 2020 में जिस तरह से दोनों देशों की सेना एक दूसरे के सामने आ खड़ी हुईं वो पिछले दो दशकों का सबसे गंभीर सैन्य संकट था।

पुनर्संतुलन के बारे में सोचना जरूरी

कान्क्लेव में आर्मी चीफ से कई तरह के सवाल पूछे गए कि पूर्वी लद्दाख में चुनौती क्या है। इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि सीमा सही ढंग से परिभाषित नहीं है। यह चुनौती है और लंबे समय तक यह जारी रहने वाली है। अगर आप टैक्टिकल ऑपरेशन के बारे में सोचते हैं तो उसके भी अपने नतीजे हैं। एक छोटी सी घटना भी तनाव को और बढ़ा सकती है। इसलिए आप जानते हैं कि जब तनाव चारों ओर बढ़ जाता है तो जिम्मेदारी बढ़ जाती है। हमारे सामने ढाई मोर्चा है दो बार्डर के बारे में हम अच्छी तरह से जानते हैं। आधा मोर्चा जो पहले से और उसमें विस्तार हो रहा है और भारतीय फौज को यह सब देखना है।
इसका मतलब यह है कि अप्रैल या मई 2020 के बाद हमें इस बारे में सोचना होगा कि क्या पुनर्संतुलन का मामला है। वे पहले ही पुनर्संतुलन 1.0 के चरण से गुजर चुके हैं। यहां आप लोगों को पता होना चाहिए कि इसके तहत क्या कदम उठाए गए हैं। क्या पुनर्संतुलन 2.0 की आवश्यकता है इसका उत्तर है हां समय, स्थान और संसाधन ऐसी चीजें हैं जिन पर सेना को गौर करने की जरूरत है। लेकिन इससे पहले "मनोवैज्ञानिक तरीके से हमें और मजबूत होना होगा। 
आपको अपने ऑपरेशनल तरीकों के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू करना होगा। क्या आप इसके लिए तैयार हैं। क्या आपके उपकरण उस तरह की तैनाती के लिए तैयार हैं, क्या आपका प्रशिक्षण उसके अनुकूल है और ये सभी चीजें और हम इसे पुनर्संतुलन 1.5 नाम दे रहे हैं। हम बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं। हम उच्च कमान पाठ्यक्रमों को पुनर्संतुलित कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आगामी सेना कमांडरों के सम्मेलन का स्थान हमारे इरादे का संकेत होगा। सेना प्रमुख ने आगे कहा कि उत्तरी सीमा पर बुनियादी ढांचा कुछ ऐसा है जिस पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है, इसलिए हम बड़े पैमाने पर काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सीमा बुनियादी ढांचे पर राष्ट्रीय ध्यान है। उत्तरी सीमा पर विवाद से सबक के बारे में सेना प्रमुख ने कहा ग्रे जोन अप्रैल 2020 से पहले मौजूद था। क्या हम इसके लिए तैयार थे  हां हम आम तौर पर इसके बारे में जानते थे। लेकिन यह डोकलाम था जिसने हमें जगाया। 
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