दिल्ली यूनिवर्सिटी को नहीं शेयर करनी होगी PM मोदी की डिग्री, हाई कोर्ट का फैसला

Prime Minister degree: यह मामला लगभग आठ साल पुराना है, जब केंद्रीय सूचना आयोग ने एक आरटीआई याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री संबंधी जानकारी सार्वजनिक की जाए.;

Update: 2025-08-25 11:06 GMT

Narendra Modi degree controversy: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री या उस वर्ष के अकादमिक रिकॉर्ड को शेयर करने की जरूरत नहीं है. यह आदेश जस्टिस सचिन दत्ता ने सुनाया, जिसमें उन्होंने साफ किया कि यूनिवर्सिटी को प्रधानमंत्री के शैक्षणिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की जरूरत नहीं है.

यह मामला लगभग आठ साल पुराना है, जब केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने एक आरटीआई याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री संबंधी जानकारी सार्वजनिक की जाए. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस आदेश को अदालत में चुनौती दी थी, जिसमें निजता के अधिकार का हवाला दिया गया. अब हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसला सुनाया है.

आरटीआई आवेदन में वर्ष 1978 के बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) कोर्स के सभी छात्रों का रिकॉर्ड मांगा गया था — वही वर्ष जब प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी हलफनामे में अपनी स्नातक डिग्री पूरी करने की बात कही थी. यह कानूनी लड़ाई 2016 से चल रही है, जब पहली बार यह आरटीआई दायर की गई थी. विश्वविद्यालय ने सूचना देने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि यह 'थर्ड पार्टी' से जुड़ी जानकारी है और उसे साझा नहीं किया जा सकता. हालांकि, CIC ने इस दलील को खारिज करते हुए रिकॉर्ड की जांच की अनुमति देने का आदेश दिया था.

CIC का कहना था कि किसी सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति, विशेष रूप से प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता पारदर्शिता के तहत आनी चाहिए. आयोग ने यह भी कहा कि ऐसे रिकॉर्ड को सार्वजनिक दस्तावेज माना जाना चाहिए. हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की. उन्होंने दलील दी कि हज़ारों छात्रों के निजता के अधिकार को आम जनता के सूचना के अधिकार से ऊपर रखा जाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस तरह का डेटा सार्वजनिक किया गया तो इससे अन्य सरकारी संस्थाओं के कामकाज पर भी असर पड़ सकता है और यह एक गलत परंपरा शुरू कर सकता है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर आवश्यक हो तो यूनिवर्सिटी अदालत को रिकॉर्ड दिखाने को तैयार है — लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता.

दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सूचना के अधिकार कानून के तहत किसी आवेदक की मंशा या पहचान का कोई महत्व नहीं होता. उनके मुताबिक डिग्री एक सार्वजनिक दस्तावेज है, जिसे राज्य द्वारा प्रदान किया जाता है और यह कोई निजी जानकारी नहीं मानी जा सकती. उन्होंने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषय है और इसमें पारदर्शिता आवश्यक है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है, अगर अपील की जाती है.

Tags:    

Similar News