SHANTI Bill 2025: अगर परमाणु हादसा हुआ तो जिम्मेदारी किसकी?

2010 के कानून के तहत ऑपरेटर आपूर्तिकर्ताओं से मुआवजा मांग सकते थे। नए बिल में यह प्रावधान हटा दिया गया है, जिससे परमाणु उपकरण और सामग्री के आपूर्तिकर्ता पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं होंगे।

Update: 2025-12-19 03:43 GMT
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भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने वाला 'Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India (SHANTI) बिल, 2025' लोकसभा में पास कर दिया गया है और संभावना है कि यह राज्यसभा से भी मंजूरी पा जाएगा। यह बिल निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा संयंत्र संचालित करने की अनुमति देता है और परमाणु दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदारी तय करता है। हालांकि आलोचक कहते हैं कि इससे जवाबदेही, लागत और जनहित को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

दो मुख्य बदलाव

1. निजी कंपनियों को संचालन की अनुमति: बिल निजी ऑपरेटरों को भारत में परमाणु संयंत्र चलाने की राह खोलता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह पूर्ण निजी स्वामित्व होगा या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत।

2. दुर्घटना में जिम्मेदारी तय करना: बिल में परमाणु आपदा की स्थिति में कुल जिम्मेदारी तय की गई है, जिसमें निजी ऑपरेटरों की भी हिस्सेदारी शामिल है। पुराने कानूनों में यह मौजूद था, लेकिन नया ढांचा जिम्मेदारी के वितरण को बदलता है।

बिल को व्यापक जन चर्चा के लिए सार्वजनिक नहीं किया गया और न ही संसदीय समिति ने इसकी समीक्षा की। स्पीकर के अनुसार, संसद में हुई बहसें ज्यादातर औपचारिक हैं। इसलिए लोकसभा में हुई बहस और राज्यसभा में होने वाली बहस केवल औपचारिकताएं मानी जाएंगी और सुझावों को शामिल करने की संभावना कम है।


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जिम्मेदारी की सीमा

बिल के तहत परमाणु दुर्घटना के लिए अधिकतम जिम्मेदारी 300 मिलियन SDR (लगभग $410 मिलियन या ₹4,000 करोड़) तय की गई है। निजी ऑपरेटर की जिम्मेदारी संयंत्र की क्षमता 3,600 मेगावाट से अधिक होने पर ₹3,000 करोड़ तक सीमित है। शेष राशि सरकार यानी करदाताओं द्वारा भरी जाएगी।

सरकारी अधिग्रहण का प्रावधान

बिल में कहा गया है कि आपदा की स्थिति में “जनहित” में केंद्रीय सरकार संयंत्र को अपने कब्जे में ले सकती है और ऐसे मामलों में पूरी जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। कानून में “जनहित” की स्पष्ट परिभाषा नहीं है, जिससे असली बोझ करदाताओं पर आ जाएगा।

2010 के कानून से तुलना

2010 के Civil Nuclear Liability Act में भी 300 मिलियन SDR की अधिकतम जिम्मेदारी तय थी। आलोचक कहते हैं कि यह राशि पुरानी है और इसे मुद्रास्फीति के अनुसार बढ़ाया जाना चाहिए था। उदाहरण के लिए, 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में यूनियन कार्बाइड ने $470 मिलियन का मुआवजा दिया था। SHANTI बिल में अधिकतम जिम्मेदारी केवल $410 मिलियन है।

आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी

2010 के कानून के तहत ऑपरेटर आपूर्तिकर्ताओं से मुआवजा मांग सकते थे। नए बिल में यह प्रावधान हटा दिया गया है, जिससे परमाणु उपकरण और सामग्री के आपूर्तिकर्ता पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं होंगे।

परमाणु ऊर्जा की उच्च लागत

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, एक मेगावाट परमाणु ऊर्जा का निर्माण ₹15–16 करोड़ में होता है। तुलना के लिए सौर, पवन और कोयला आधारित परियोजनाओं की लागत ₹10 करोड़ प्रति मेगावाट से कम है। उच्च पूंजी लागत का मतलब है कि उपभोक्ताओं के लिए महंगी बिजली।

हरित ऊर्जा और विरोधाभास

परमाणु ऊर्जा को भारत के हरित ऊर्जा संक्रमण का हिस्सा बताया जा रहा है, लेकिन आलोचक कहते हैं कि मौजूदा क्षमता और अवसंरचना की कमी को नजरअंदाज किया जा रहा है। भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का लगभग 52% हरित स्रोतों (सौर और पवन) से है। परमाणु ऊर्जा का योगदान केवल 8.7 गीगावाट है। हालांकि, स्थापित हरित क्षमता का केवल 24% ही उपयोग हो रहा है।

PPP और निजी निवेश की चिंता

बिल में निजी भागीदारी पर निर्भरता है, लेकिन भारत में PPP मॉडल के अधिकांश पूर्व अनुभव बताते हैं कि परियोजनाएं सरकारी सहायता और बैंक ऋण पर निर्भर रही हैं, न कि वास्तविक निजी निवेश पर। बिल को संसदीय मंजूरी के लिए बहुत तेजी से पेश किया गया है, पर्याप्त परामर्श या जांच के बिना, जबकि इसके दूरगामी प्रभाव हैं। कम जिम्मेदारी की सीमा, अपरिभाषित “जनहित” प्रावधान और आपूर्तिकर्ताओं के लिए कोई जवाबदेही न होने के कारण भविष्य की किसी भी परमाणु आपदा का बोझ भारतीय करदाताओं पर पड़ेगा।

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