बंगाल और तमिलनाडु ने SIR का विरोध किया: DMK ने बुलाई सर्वदलीय बैठक, TMC ने आयोग पर साधा निशाना

DMK ने SIR को मताधिकार छीनने की साजिश बताया जबकि TMC ने कहा कि आयोग ‘बेहद समझौता-ग्रस्त’ है। वहीं CPM ने इसे चुनाव आयोग का मनमाना फैसला बताया

Update: 2025-10-28 01:05 GMT
चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 2 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाने की घोषणा की

चुनाव आयोग द्वारा सोमवार को यह घोषणा किए जाने के कुछ ही घंटे बाद कि वह 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) कराएगा — जिनमें विपक्ष शासित केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं, जहाँ अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं — सबसे पहले विरोध की आवाज तमिलनाडु से उठी।

एम. के. स्टालिन के नेतृत्व वाली DMK सरकार ने इस कवायद को “राज्य की जनता के मतदान अधिकार छीनने की साजिश” करार दिया और इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 2 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाने की घोषणा की।

विपक्षी दल पहले से ही EC के खिलाफ मुखर हैं, खासकर तब से जब उसने बिहार में SIR की घोषणा की और उसे शुरू किया।

EC द्वारा नवंबर से फरवरी के बीच SIR कराए जाने की घोषणा के बाद, चेन्नई में DMK और उसके सहयोगी दलों ने आपात बैठक की। उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार पर “लोकतंत्र को बदनाम और ध्वस्त करने” की कोशिश करने का आरोप लगाया।

DMK गठबंधन ने कहा कि नवंबर और दिसंबर के उत्तर-पूर्वी मानसून के मौसम में इतनी बड़ी प्रक्रिया को अंजाम देना बेहद कठिन होगा।

उन्होंने कहा, “हम यह नहीं कह रहे कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण नहीं होना चाहिए, लेकिन यह जल्दबाज़ी में नहीं होना चाहिए… अप्रैल में (तमिलनाडु विधानसभा) चुनाव होने हैं, ऐसे में अभी इसकी शुरुआत करना सही नहीं है।”

इन दलों ने आरोप लगाया कि बिहार में हुआ यह पुनरीक्षण “मुस्लिमों, अनुसूचित जातियों और महिलाओं को निशाना” बनाने वाला था। उन्होंने कहा, “तमिलनाडु ऐसी किसी भी साजिश को बर्दाश्त नहीं करेगा… हम मिलकर इसका मुकाबला करेंगे।”

पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी TMC और केरल की CPI(M) सरकार ने भी इस कदम की आलोचना की। TMC के वरिष्ठ नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने ने कहा, “बिहार में हुआ SIR तो सिर्फ़ एक ट्रायल था। उनका असली निशाना पश्चिम बंगाल है। बंगाल की जनता उस चुनाव आयोग को, जो ‘बेहद समझौता-ग्रस्त’ है, कुछ ही महीनों में जवाब देगी।”

तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में अगले साल अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं।

CPI(M) के महासचिव एम. ए. बेबी ने EC के फैसले को “मनमाना” और “एकतरफ़ा” बताया।

उन्होंने कहा, “यह तथ्य कि EC इतनी जल्दबाज़ी में पुनरीक्षण आगे बढ़ा रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट अभी बिहार में इसी मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है — यह उसके लोकतांत्रिक मानदंडों के प्रति घोर तिरस्कार को दिखाता है।

केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इस तरह की कवायद का विरोध किया था, क्योंकि राज्य में स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों की तैयारियाँ चल रही हैं।

EC ने पारदर्शिता की सभी मांगों को अनसुना कर दिया है, जिससे यह संदेह और गहरा हो गया है कि वह सत्ताधारी दल के इशारे पर मतदाता सूची में हेरफेर की साजिश के तहत काम कर रहा है।”

कांग्रेस ने भी EC की मंशा पर सवाल उठाए। कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा, “हमें अब तक बिहार में हुए SIR से जुड़े सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। हालात ऐसे थे कि सुप्रीम कोर्ट को कई बार हस्तक्षेप करना पड़ा ताकि बिहार में चल रही इस प्रक्रिया को ठीक किया जा सके… EC और भाजपा — जिसने आयोग को अपनी कठपुतली बना दिया है — की मंशा बिहार की SIR प्रक्रिया में पूरे देश के सामने उजागर हो चुकी है।”

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) “भाजपा और नरेंद्र मोदी के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं।”

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