बिहार में SIR प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने बताया ‘मतदाता-हितैषी, पहचान प्रमाण के रूप में अब 11 दस्तावेज़ मान्य

जस्टिस बागची ने यह टिप्पणी तब की, जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने दलील दी कि बिहार में SIR की प्रक्रिया की प्रकृति बहिष्करणकारी है यानी उसमें लोगों को शामिल करने से ज़्यादा, उन्हें सूची से निकालने की तरफ झुकी हुई है।;

Update: 2025-08-13 11:12 GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया वास्तव में मतदाता-हितैषी है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा बिहार में मतदाता सूची के नवीनतम विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए पहचान प्रमाण के रूप में 11 दस्तावेज़ों को मान्यता देना, जबकि 2003 में किए गए सारांश पुनरीक्षण में केवल 7 दस्तावेज़ ही मान्य थे, यह दर्शाता है कि यह प्रक्रिया वास्तव में मतदाता-हितैषी है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने SIR प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।

जस्टिस बागची ने कहा,“वे पहचान के दस्तावेज़ों की संख्या बढ़ा रहे हैं… हम समझते हैं कि आपका बहिष्करण का तर्क आधार से संबंधित हो सकता है, लेकिन दस्तावेज़ों की संख्या को सारांश पुनरीक्षण से गहन पुनरीक्षण में बढ़ाना वास्तव में मतदाता-हितैषी है, न कि मतदाता-बहिष्करणकारी। यह आपको अधिक विकल्प देता है।”

उन्होंने आगे कहा, “देखिए, पहले (2003 में) 7 आइटम थे। और अब 11 आइटम हैं, जिनके माध्यम से आप स्वयं को नागरिक के रूप में पहचान सकते हैं।”

अदालत यह टिप्पणी तब कर रही थी, जब अभिषेक मनु सिंघवी ने अपनी दलील जारी रखते हुए कहा कि यह प्रक्रिया बहिष्करणकारी है।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा पर असंतोष जताया था कि संभावित मतदाताओं को सूची में नाम दर्ज कराने के लिए केवल यह घोषणा भर करनी होगी कि वे भारतीय नागरिक हैं, जबकि यह भी कहा कि ECI किसी नागरिक को सूची में शामिल कर सकता है या गैर-नागरिक को बाहर कर सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि नागरिकता का स्वयं-घोषणापत्र (Self-declaration) कानूनी जटिलताएं पैदा कर सकता है। यह टिप्पणी सिंघवी के उस तर्क के जवाब में आई थी कि नागरिकता का फैसला करना ECI के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

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