Waqf Bill: विपक्ष का आरोप- 'केवल दिखावे के लिए JPC, सरकार का एजेंडा आगे बढ़ाना मकसद'

Wakf Bill 2024: विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया कि केंद्र संसदीय समितियों में अपने बहुमत का इस्तेमाल कर उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहा है.;

Update: 2025-01-29 11:33 GMT

Wakf (Amendment) Bill 2024: पिछले दो कार्यकालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर अक्सर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्रमुख कानूनों को संसदीय समितियों की पारंपरिक जांच प्रक्रिया को दरकिनार करके संसद में जबरन पास कराया. अब, तीसरे कार्यकाल में, क्या मोदी सरकार उन्हीं संसदीय निगरानी समितियों का इस्तेमाल करके अपने विवादास्पद विधायी एजेंडे को वैधता देने की कोशिश कर रही है, जिन्हें वह आठ महीने पहले तक टालती रही थी? वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की जांच के लिए गठित 31-सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में शामिल 11 विपक्षी सांसदों के कटु अनुभव से तो ऐसा ही लगता है.

विपक्ष की आपत्तियां

विधेयक, जो देशभर में वक्फ बोर्डों और उनकी संपत्तियों के प्रशासन में बड़े बदलाव लाने का प्रयास करता है, को लोकसभा में पेश किए जाने के तुरंत बाद अगस्त में जेपीसी को भेज दिया गया था. जब यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया तो विपक्षी सांसदों ने इसे "असंवैधानिक", "सांप्रदायिक रूप से विभाजनकारी", "कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला" और "वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का प्रयास" बताया था. सोमवार (27 जनवरी) को, जेपीसी ने सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के सांसदों द्वारा प्रस्तावित वक्फ विधेयक में किए गए प्रमुख बदलावों को मंजूरी दे दी. जबकि 11 विपक्षी सदस्यों द्वारा मांगे गए सभी संशोधनों को खारिज कर दिया और बुधवार (29 जनवरी) को समिति ने विधेयक पर अपनी अंतिम रिपोर्ट को संसद में पेश करने के लिए अनुमोदित कर दिया, भले ही विपक्षी सांसदों ने विरोध पत्र प्रस्तुत किए हों.

सरकारी एजेंडा थोपना

जेपीसी के अध्यक्ष, भाजपा सांसद जगदंबिका पाल — जिन्हें समिति के छह महीने के कार्यकाल के दौरान विपक्षी सदस्यों द्वारा "सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एकतरफा निर्णय लेने" का आरोपी बनाया गया था — ने पत्रकारों को बताया कि समिति ने अपने विचार-विमर्श को "लोकतांत्रिक" तरीके से पूरा किया और "बहुमत द्वारा दिए गए सुझावों" को स्वीकार किया. समिति के 11 विपक्षी सदस्यों द्वारा मूल वक्फ अधिनियम की 44 धाराओं में किए गए सभी संशोधनों को खारिज कर दिया गया. क्योंकि "सत्तारूढ़ पक्ष के 16 सांसदों ने उनके खिलाफ मतदान किया.

इसके तुरंत बाद 10 विपक्षी सांसदों — ए राजा, कल्याण बनर्जी, गौरव गोगोई, असदुद्दीन ओवैसी, सैयद नसीर हुसैन, मोहिबुल्लाह, इमरान मसूद, एमएम अब्दुल्ला, मोहम्मद जावेद, अरविंद सावंत और नदीमुल हक ने एक संयुक्त बयान जारी कर पाल पर "नियमों और प्रक्रियाओं से गंभीर विचलन" का आरोप लगाया और समिति की चर्चा के विवरण साझा करने में "जानबूझकर अनदेखी" की घटनाओं को सूचीबद्ध किया.

विपक्ष के विरोध के बावजूद पाल ने बुधवार को जेपीसी की बैठक बुलाई और समिति की मसौदा रिपोर्ट को अनुमोदित कर दिया. विपक्षी सदस्यों का आरोप था कि मसौदा रिपोर्ट, जो 665 पृष्ठों की थी, उन्हें मंगलवार देर शाम को ही भेजी गई थी, जिससे उन्हें एक दिन पहले समिति द्वारा अनुमोदित संशोधनों को पढ़ने और समझने का पर्याप्त समय नहीं मिला।.

कांग्रेस सांसद और जेपीसी सदस्य मोहम्मद जावेद ने मंगलवार शाम को एक्स (Twitter) पर लिखा कि हम इतनी महत्वपूर्ण रिपोर्ट को कुछ ही घंटों में कैसे पढ़ें, समझें और उस पर संशोधन प्रस्तावित करें? यह असंभव है, और वे यह जानते हैं. यही भाजपा का तरीका है—प्रक्रियाओं को जल्दबाजी में निपटाना, आवाजें दबाना और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना, ताकि वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण किया जा सके. यह केवल जमीन का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे अधिकारों, हमारी पहचान और हमारे समुदाय के भविष्य का मामला है. हमें इसका विरोध करना चाहिए.

व्यवस्था का मज़ाक

जावेद ने द फेडरल से कहा कि जिस तरह से जेपीसी की कार्यवाही चलाई गई और मसौदा रिपोर्ट तैयार की गई, वह महत्वपूर्ण कानूनों की संसदीय जांच की पूरी प्रणाली का मज़ाक उड़ाती है. इस प्रक्रिया का एकमात्र उद्देश्य एक असंवैधानिक विधेयक को जेपीसी की जांच के दिखावे के माध्यम से वैधता प्रदान करना था. उन्होंने आगे कहा कि यदि केवल सत्तारूढ़ पक्ष के सुझावों को स्वीकार करना था और विपक्ष के सभी सुझावों को कूड़ेदान में डालना था तो सरकार ने जेपीसी गठित करने की जहमत क्यों उठाई? वे सीधे संसद में विधेयक पास कर सकते थे. जैसा कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों में कई बार किया है.

लोकतंत्र नष्ट करने के नए तरीके

समाजवादी पार्टी के सांसद और जेपीसी सदस्य मोहिबुल्लाह ने द फेडरल से कहा कि विपक्ष ने "विधेयक की गहन जांच की उम्मीद की थी ताकि वक्फ के प्रशासन में बेहतर सुधार लाया जा सके, बिना संविधान द्वारा मुसलमानों को दिए गए मौलिक अधिकारों को कमजोर किए. उन्होंने आरोप लगाया कि दुर्भाग्य से, हमने जो देखा वह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक प्रक्रिया थी, जिसका नतीजा पहले से तय था—बिल्कुल वही जो मोदी और संघ परिवार चाहते हैं, यानी मुसलमानों को अपमानित करना.

विपक्षी सांसदों को डराना-धमकाना

एक अन्य विपक्षी सांसद, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त रखी, ने कहा कि जेपीसी की कार्यवाही पहले दिन से ही सरकार के पक्ष में झुकी हुई थी. कई बार, विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष (ओम बिड़ला) से जेपीसी अध्यक्ष को नियमों के अनुसार कार्य करने का निर्देश देने की गुहार लगाई. लेकिन स्पष्ट रूप से अध्यक्ष ने कुछ नहीं किया. उन्होंने आरोप लगाया कि पाल ने जेपीसी बैठकों के दौरान भाजपा सांसदों को विपक्षी सांसदों को डराने-धमकाने की छूट दी, जिससे कई बार गरमागरम बहसें हुईं. 24 जनवरी को, पाल ने तानाशाह की तरह व्यवहार किया और 10 विपक्षी सांसदों को बैठक से निलंबित कर दिया और जब जेपीसी 27 जनवरी को फिर से बैठक की तो उन्होंने अचानक घोषणा की कि वह उसी दिन चर्चा समाप्त करेंगे और हमारे संशोधनों को खारिज कर दिया. यह पूरी तरह से एक दिखावा था.

संसदीय समितियों में बहुमत का दुरुपयोग

जेपीसी सदस्य और कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि जेपीसी और अन्य संसदीय समितियों में सत्तारूढ़ दल को बहुमत मिलता है. लेकिन समिति का मकसद निष्पक्षता से कानूनों की जांच करना होता है. लेकिन भाजपा केवल अपनी इच्छाओं के अनुसार निर्णय ले रही है. उन्होंने आगे कहा कि अब वे लोकतंत्र और संविधान की नकली इज्जत दिखाने के लिए बिलों को जेपीसी और अन्य समितियों के पास भेज रहे हैं. लेकिन उनकी मंशा देश के लिए अच्छे कानून बनाने की नहीं, बल्कि अपनी विचारधारा को थोपने की है. जेपीसी के एक अन्य सदस्य ने कहा कि वर्तमान में एक देश, एक चुनाव विधेयक पर विचार कर रही समिति का नतीजा भी ठीक वैसा ही होगा जैसा सरकार चाहती है.

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