राहुल गांधी को बीजेपी नेता क्यों कहते हैं बाल बुद्धि, इनसाइड स्टोरी

आम चुनाव के दौरान बीजेपी नेता राहुल गांधी को बाल बुद्धि पुकारा करते थे। हाल ही में मिस इंडिया में आरक्षण वाले बयान के बाह राहुल फिर चर्चा में हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-26 02:01 GMT

Rahul Gandhi News:  क्या मिस इंडिया और फिल्म इंडस्ट्री में भी आरक्षण होना चाहिए। इस सवाल का जवाब आपके लिए मुश्किल हो सकता है। लेकिन नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को ऐसा नहीं लगता। उनका मानना है कि सरकार को इस तरह की व्यवस्था करनी चाहिए। ये बात अलग है कि उनके बयान के बाद ना सिर्फ बीजेपी बल्कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने निशाना साधा। राहुल गांधी के इस बयान के बाद संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि राहुल जी को पता होना चाहिए कि सरकार मिस इंडिया विजेताओं, ओलंपिक एथलीटों और फिल्मों के लिए अभिनेताओं का चयन नहीं करती है। अब, वह मिस इंडिया प्रतियोगिताओं, फिल्मों, खेलों में आरक्षण चाहते हैं। यह केवल 'बाल बुद्धि' का मुद्दा नहीं है। बल्कि जो लोग उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं वो भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। रिजिजू लिखते हैं कि किशोर बुद्धि मनोरंजन के लिए अच्छी हो सकती है। लेकिन अपनी विभाजनकारी रणनीति से हमारे पिछड़े समुदायों का मजाक न उड़ाएं।

बीजेपी ही नहीं दूसरे नेता भी साधते हैं निशाना

किरेन रिजिजू से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी निशाना साधा था। केन्द्र में बीजेपी की सत्ता आने से पहले कांग्रेस ने अपनी सरकार में राष्ट्रीय जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई थी जो अब इसकी बात कर रहे हैं,जवाब दें? जबकि बीएसपी इसके हमेशा ही पक्षधर रही है, क्योंकि इसका होना कमजोर वर्गों के हित में बहुत जरूरी है। इतना ही नहीं, संविधान के तहत् एससी/एसटी को मिले आरक्षण में अब वर्गीकरण व क्रीमीलेयर के जरिये, इसे निष्प्रभावी बनाने व खत्म करने की चल रही साजिश के विरोध में कांग्रेस, सपा व बीजेपी आदि का भी चुप्पी साधे रखना क्या यही इनका दलित प्रेम है, सचेत रहें।

इसके साथ ही शिवसेना शिंदे गुट के नेता संजय निरुपम ने कहा कि सिर्फ मिस इंडिया क्यों, कांग्रेस को यह भी सवाल पूछना चाहिए कि हिंदी सिनेमा के सुपर स्टारों में एक भी एससी, एसटी या ओबीसी क्यों नहीं है। इसलिए कांग्रेस की तरफ से पूरे हिंदी फिल्म जगत का बहिष्कार, जब तक जाति की जनगणना नहीं होगी तब तक कांग्रेस के लोग कोई फिल्म नहीं देखेंगे। निरुपम के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर रिएक्शन भी है। एक यूजर ने पूछा जाति गणना की बात करने वाले राहुल गांधी क्या एससी-एसटी वर्ग की महिला से शादी करेंगे।

बाल बुद्धि या रणनीति

ये तो नेताओं के बयान है या यूं कहिए कि उन्हें अपने विचार को रखना है। लेकिन क्या वास्तव में राहुल गांधी बाल बुद्धि हैं, क्या राहुल गांधी महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड चुनाव को देखते हुए इस तरह के बयान दे रहे हैं। या इस तरह के मुद्दे को उठाकर खुद का मुश्किलों की तरफ ढकेल रहे हैं। दरअसल इस सवाल का जवाब आम चुनाव के नतीजों में छिपा है। कांग्रेस की 99 सीटों की टैली में यूपी से मिली 6 सीटें है। सियासी हलचल को महसूस करने वाले कहते हैं कि संविधान और आरक्षण का दांव काम कर गया और उसकी नतीजा आप देख भी रहे हैं। अगर राहुल गांधी के जाति गणना, संविधान बचाओ- आरक्षण बचाओ या मिस इंडिया में आरक्षण की मांग को देखें तो वो बयान प्रयागराज की धरती से दे कर ना सिर्फ यूपी में अपनी जमीन को पुख्ता करने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी हलचल पैदा की है, लिहाजा संजय निरुपम की तरफ से भी कमेंट आया।

जरूरी नहीं कि हर मर्ज की दवा एक जैसी
लेकिन सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी जिस संविधान और आरक्षण के हथियार से जनता को कुछ हद तक लुभाने में कामयाब रहे वही मुद्दे उनके लिए नुकसान का सौदा होगा। सियासत में नफा नुकसान कुछ वैसे ही है जैसे कि क्रिकेट के मैदान पर हेड आएगा या टेल। इसमें दो मत नहीं कि आम चुनाव 2024 में इंडिया गठबंधन की सीट संख्या में बढ़ोतरी। इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को 272 के नीचे ला दिया। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी 10 साल के एंटी इंकम्बेंसी के साथ चुनावी मैदान में थी। यह भी जरूरी नहीं कि एक ही दवा हर मर्ज का इलाज हो।

यह बात सच है कि कोई भी राजनीतिक दल जब तक देश के सबसे बड़े सूबे में से एक यूपी में बेहतर प्रदर्शन नहीं करेगा. दिल्ली की गद्दी से वो दूर रहेगा। कांग्रेस के नेता जब जब आरक्षण और संविधान की बात करेंगे तो मायावती और दूसरे विरोधी इस सवाल को जरूर उठाएंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान किसने किया। लिहाजा राहुल गांधी को देखना होगा कि जिस आरक्षण की बात वो करते हैं आखिर उनकी हुकुमत में क्या कुछ हुआ था. विरोधी दल कहते हैं कि दलित और ओबीसी के हित की बात करने वाली कांग्रेस वही पार्टी है जिसने मंडल कमीशन को दशकों तक दबाए रखा। कांग्रेस को कम से कम दलित-ओबीसी उत्थान का राग अलापने का नैतिक अधिकार नहीं है। 

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