विपक्षी नेताओं के खिलाफ ED का इस्तेमाल कर रही सरकार, सरकारी आंकड़ों से हुआ खुलासा
एक दशक में 193 मामलों में मात्र 2 लोगों को दोषी करार दिए जाने के बाद विपक्ष के दावे को आंकड़ों का समर्थन मिल गया है, भले ही सरकार इसे स्वीकार करने से इनकार कर रही हो.;
वित्त मंत्रालय के हालिया जवाब ने राज्यसभा में विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों को फिर से तूल दिया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार केंद्रीय एजेंसियों, जैसे प्रवर्तन निदेशालय (ED) का राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए दुरुपयोग कर रही है. वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा प्रस्तुत आंकड़े इस बात का खुलासा करते हैं कि पिछले दशक में सांसदों, विधानसभा सदस्यों और अन्य राजनीतिक नेताओं के खिलाफ ED द्वारा दर्ज मामलों में एक महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई है और पिछले कुछ वर्षों में यह वृद्धि काफी तेज हुई है. विपक्षी दलों का कहना है कि यह डेटा उनके लंबे समय से चले आ रहे आरोपों को सही साबित करता है कि सत्ताधारी दल एक राजनीतिक रूप से प्रेरित "जादू-टोना" (witch-hunt) चला रहे हैं, ताकि वे विपक्षी नेताओं को दबा सकें.
193 मामलों में से सिर्फ 2 सजा
यह आंकड़ा, जो केरल से सांसद एए रहीम के प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत किया गया, यह दर्शाता है कि 1 अप्रैल 2015 से 28 फरवरी 2025 तक ED द्वारा 193 मामले दर्ज किए गए. इनमें वर्तमान और पूर्व सांसदों, विधानसभा सदस्यों (MLAs), विधान परिषद के सदस्यों (MLCs) और विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों के खिलाफ मामले शामिल हैं. मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि यह डेटा पार्टी या राज्य के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया गया है. लेकिन आंकड़े इस प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं.
2019-20 के बाद मामलों में तेज़ वृद्धि
2015-16 से 2018-19 तक, हर साल ED द्वारा दर्ज मामलों की संख्या 7 से 14 के बीच रही. लेकिन 2019-20 में एक अचानक वृद्धि देखी गई, जब 26 मामले दर्ज किए गए, जो अगले वर्षों में क्रमशः 27 (2020-21), 26 (2021-22) और 32 (2022-23) तक पहुंच गए. 2024-25 के पहले आठ महीनों (28 फरवरी तक) में 13 मामले पहले ही दर्ज हो चुके हैं. यह वृद्धि भाजपा-नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के साथ मेल खाती है, जो मई 2019 में सत्ता में आई थी. विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र सरकार विपक्षी आवाजों को दबाने के लिए संस्थागत दुरुपयोग कर रही है.
CPI(M) के राजीव सभा सदस्य एए रहीम ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हम विपक्षी दलों ने हमेशा कहा है कि भाजपा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. वे इन एजेंसियों का इस्तेमाल विरोधियों के खिलाफ या उन्हें दबाव में लाने के लिए करते हैं और यदि कोई उनका समर्थन करता है तो वे उसके खिलाफ मामले तुरंत हटा लेते हैं. सत्ताधारी पार्टी के पास विकास के मोर्चे पर कुछ दिखाने के लिए नहीं है. इसलिए वे इस तरह की रणनीतियों का सहारा ले रहे हैं. इस बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ सख्त विरोध जरूरी है.
ED की कार्रवाई
विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए सवालों के बावजूद ED की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े दावा करते हैं कि चुने हुए सदनों के वर्तमान या पूर्व सदस्यों से संबंधित मामले उसकी कुल मामलों का तीन प्रतिशत से भी कम हैं. सरकार ने कहा है कि ED निष्पक्ष रूप से कार्य करता है और केवल "विश्वसनीय साक्ष्य/सामग्री" के आधार पर मामलों की जांच करता है, बिना राजनीतिक संबद्धताओं का ध्यान रखते हुए. मंत्रालय का यह भी कहना है कि ED की कार्रवाई विभिन्न न्यायिक मंचों, विशेष अदालतों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निगरानी के अधीन रहती है. हालांकि, जब विपक्ष ने ED की पारदर्शिता और कार्यकुशलता को लेकर सवाल उठाए तो मंत्रालय ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. बस PMLA और FEMA जैसे कानूनों के तहत ED के दायित्व को दोहराया गया.
विपक्ष का सवाल
विपक्षी दलों ने मंत्रालय के जवाब पर कड़ी आपत्ति जताई. विपक्ष ने पूछा कि अगर ED इतना पारदर्शी है तो पार्टी-विशिष्ट डेटा क्यों नहीं जारी किया जाता? क्यों मामलों को सालों तक लटकने दिया जाता है बिना किसी नतीजे के? उनका यह भी कहना था कि PMLA के तहत ED को दिए गए व्यापक अधिकार और जिम्मेदारी की कमी एजेंसी को राजनीतिक साजिशों के लिए आदर्श उपकरण बना देती है.
ED के डेटा, साथ ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसी अन्य केंद्रीय एजेंसियों की बढ़ती जांच के मामलों से यह सवाल उठता है कि क्या इन एजेंसियों का इस्तेमाल चयनात्मक रूप से किया जा रहा है. केवल दो सजा के साथ, विपक्ष का "जादू-टोना" का दावा अब सांख्यिकीय रूप से मजबूत हो रहा है, भले ही सरकार इसे स्वीकार करने से इनकार कर रही हो. इस पूरे घटनाक्रम ने विपक्षी दलों को और अधिक साहस दिया है और वे अब अधिक जोर-शोर से इस मामले को उठाने की योजना बना रहे हैं. ED और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की बढ़ती जांच और उनके द्वारा उठाए गए कदमों पर निगरानी रखने की आवश्यकता पर भी जोर दिया जा रहा है.