कांग्रेस की हो गई फजीहत, विदेश दौरे के लिए शशि थरूर को चुने जाने पर मचा बवाल
अपनी पुरानी आदत के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व पार्टी के अंदर बनाए गए गुटों से परे सोचने में असमर्थ रहा और एक बार फिर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है।;
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "ऑपरेशन सिंदूर" के बाद आतंकवाद से लड़ने में भारत की एकजुटता और दृढ़ रुख को दुनिया के सामने पेश करने के लिए सभी दलों के नेताओं को अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों में भेजने का फैसला किया, तो उन्होंने मूल रूप से कांग्रेस नेतृत्व वाली पिछली सरकारों की रणनीति को अपनाया। ऐसे में केंद्र सरकार के इस निर्णय को लेकर मुख्य विकांग्रेस की हो गई फजीहत, विदेश दौरे के लिए शशि थरूर को चुने जाने पर मचा बवालपक्षी पार्टी को खुद को श्रेय देने का अवसर मिलना चाहिए था। लेकिन हमेशा की तरह, कांग्रेस नेतृत्व अपनी ही बनायी अंदरूनी गुटबाजी में उलझ कर रह गया और स्थिति को कुशलता से संभालने में नाकाम रहा है।
राहुल पर उठे सवाल
कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी द्वारा संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू को भेजे गए कांग्रेस सांसदों के नाम "छोटेपन" की भावना से प्रेरित थे और इससे "सरकार के खिलाफ हमारी रणनीति कमजोर पड़ गई", जो हम पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद घोषित युद्धविराम जैसे मुद्दों पर उठाना चाह रहे थे।
केंद्र की पहल और कांग्रेस की उलझन
गुरुवार देर रात (15 मई) केंद्र ने विभिन्न महाद्वीपों में जाने वाले बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों के लिए सभी दलों के सांसदों से संपर्क करना शुरू किया। रिजिजू ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सलमान खुर्शीद, शशि थरूर और मनीष तिवारी – से संपर्क किया। सूत्रों के अनुसार, थरूर और तिवारी ने तुरंत ही केंद्र के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। खुर्शीद ने भी सहमति जताई लेकिन कहा कि अंतिम निर्णय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लेना चाहिए।
थरूर का नाम पहले ही सार्वजनिक
इस बीच, यह खबर फैल चुकी थी कि केंद्र ने थरूर, खुर्शीद और तिवारी से संपर्क किया है। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि केंद्र का यह निर्णय यद्यपि द्विदलीय भावना से प्रेरित था (जैसा 1994 और 2008 में नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने किया था), लेकिन इसे जिस तरीके से लागू किया गया, वह "राजनीति से प्रेरित" था, और कांग्रेस इसे कुशलता से संभालने में विफल रही।
एक वरिष्ठ कांग्रेस सांसद ने बताया कि पार्टी को यह कहना चाहिए था कि वह राष्ट्रीय हित में ऐसे प्रतिनिधिमंडलों का समर्थन करती है, लेकिन केंद्र पहले प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सभी दलों की बैठक बुलाए और पहलगाम हमले व ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र आयोजित करे।
कांग्रेस में फूट और सार्वजनिक शर्मिंदगी
शनिवार सुबह जब केंद्र ने सात प्रतिनिधिमंडलों के नाम घोषित किए, तो उनमें शशि थरूर का नाम सबसे ऊपर था। इसके एक घंटे बाद, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर वह सूची पोस्ट कर दी जिसमें राहुल गांधी द्वारा भेजे गए नाम – आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, अमरिंदर सिंह, राजा बराड़ और सैयद नसीर हुसैन – शामिल थे। थरूर का नाम इस सूची में नहीं था।
कई कांग्रेस नेताओं ने इस कदम को सार्वजनिक शर्मिंदगी बताते हुए आलोचना की। एक एआईसीसी पदाधिकारी ने कहा, "थरूर की राजनयिक विशेषज्ञता के मुकाबले कांग्रेस द्वारा भेजे गए किसी नाम की बराबरी नहीं है। हमने यह सार्वजनिक कर खुद को ही हास्यास्पद बना दिया है।"
थरूर की स्थिति और अटकलें
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि थरूर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच अक्सर मतभेद रहे हैं – चाहे वह हालिया युद्धविराम मुद्दा हो या 2022 में खड़गे के खिलाफ उनका कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना।
अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या थरूर को नजरअंदाज करना कांग्रेस से बाहर करने की कोशिश है? क्या वे आगामी केरल विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी में शामिल हो सकते हैं? इन अटकलों को मीडिया और राजनीतिक हलकों में जोर मिला है।
बाहर से भी आलोचना
शिवसेना सांसद मिलिंद देवड़ा ने जयराम रमेश की पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी, “दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस अपने सबसे अनुभवी सांसदों को ऐसे प्रतिनिधिमंडलों में शामिल होने से रोक रही है। ये प्रतिनिधिमंडल भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, किसी पार्टी के अहंकार का नहीं।”
थरूर बनाम अन्य नेता
केरल से कांग्रेस के एक लोकसभा सांसद (जो थरूर का गृह राज्य है) ने The Federal से कहा, “सिर्फ यही नहीं कि हमने थरूर पर सार्वजनिक रूप से भरोसा नहीं जताया, जो खुद में ही एक बड़ी बात है इससे यह सवाल उठता है कि क्या हम उन्हें पार्टी से बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं? लेकिन और भी चिंता की बात यह है कि हमने उनकी जगह किन लोगों को चुना है। केंद्र सरकार ने दो दिन पहले जिन नामों का ज़िक्र किया था, उनमें सलमान खुर्शीद और मनीष तिवारी भी थे। दोनों के पास ऐसा अनुभव और योग्यता है कि वे विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। फिर हमने उनकी जगह नसीर, गोगोई और राजा बराड़ को क्यों चुना? गोगोई और बराड़ राहुल गांधी के करीबी हैं और नसीर सिर्फ इसलिए योग्य नहीं हो जाते कि वे कांग्रेस अध्यक्ष के सचिव रह चुके हैं। ये नाम इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं हैं।”