जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस ने पीएम मोदी के सामने रख दी 3 बड़ी मांग, आरक्षण की लिमिट को करें खत्म
कांग्रेस का मानना है कि सामाजिक और आर्थिक न्याय तथा स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए जाति जनगणना को उपरोक्त सुझाए गए समग्र तरीके से कराना अत्यंत आवश्यक है.;
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने जाति जनगणना को लेकर तीन बातें साझा किए हैं. खड़गे ने अपने पत्र में लिखा, "मैंने 16 अप्रैल 2023 को आपको पत्र लिखकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जातिगत जनगणना कराने की मांग आपके समक्ष रखी थी. अफसोस की बात है कि मुझे उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला. उसके बाद आपकी पार्टी के नेताओं और स्वयं आपने कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के नेतृत्व पर इस जायज मांग को उठाने के लिए लगातार हमले किए. आज आप स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि यह मांग गहन सामाजिक न्याय और सामाजिक सशक्तिकरण के हित में है."
कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे लिखा, "आपने बिना किसी स्पष्ट विवरण के यह घोषणा की है कि अगली जनगणना (जो वास्तव में 2021 में होनी थी) में जाति को भी एक अलग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाएगा. इस संबंध में मेरे तीन सुझाव हैं, जिन पर आप कृपया विचार करें.
जनगणना से सम्बंधित प्रश्नावली का डिजाइन अत्यंत महत्वपूर्ण है. जाति संबंधी जानकारी केवल गिनती के लिए नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकत्र की जानी चाहिए. हाल ही में संपन्न तेलंगाना में जातिगत सर्वेक्षण को इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन और कार्यान्वित किया गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय को जनगणना में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रश्नावली और पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए तेलंगाना मॉडल का उपयोग करना चाहिए। प्रक्रिया के समाप्ति के अंत में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट में कुछ भी छिपाया नहीं जाना चाहिए ताकि प्रत्येक जाति के पूर्ण सामाजिक-आर्थिक आंकडे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों, जिससे एक जनगणना से दूसरी जनगणना तक उनकी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को मापा जा सके और उन्हें संवैधानिक अधिकार दिए जा सकें.
अगस्त 1994 में तमिलनाडु का आरक्षण कानून अधिनियम हमारे संविधान की नवीं सूची में शामिल किया गया था. इसी तरह सभी राज्यों द्वारा पारित आरक्षण संबंधी अधिनियमों को संविधान की नवीं सूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा जाति जनगणना के जो भी नतीजे आएं, यह स्पष्ट है कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण पर मनमाने ढंग से लगाई गई 50% की अधिकतम सीमा को संविधान संशोधन के माध्यम से हटाया जाना होगा.
अनुच्छेद 15(5) को भारतीय संविधान में 20 जनवरी 2006 से लागू किया गया था. इसके बाद इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. लंबे विचार-विमर्श के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने 29 जनवरी 2014 को इसे बरकरार रखा. यह फैसला 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले आया. यह निजी शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है. उच्च शिक्षा विभाग के लिए अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में, जिसे 25 मार्च 2025 को प्रस्तुत किया गया था। शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल पर संसदीय स्थायी समिति ने भी अनुच्छेद 15 (5) को लागू करने के लिए नए कानून बनाने की भी सिफारिश की थी."
कांग्रेस अध्यक्ष ने लिखा, "जाति जनगणना जैसी किसी भी प्रक्रिया को, जो पिछड़ों, वंचितों और हाशिये पर खड़े लोगों को उनके अधिकार दिलाने का माध्यम बनता है, किसी भी रूप में विभाजनकारी नहीं माना जाना चाहिए. हमारा महान राष्ट्र और हमारे विशाल हृदय लोग विपरीत परिस्थितियों में हमेशा एकजुट होकर खड़े हुए हैं. हाल ही में पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमलों के बाद हम सबने एकजुटता का परिचय दिया.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मानना है कि सामाजिक और आर्थिक न्याय तथा स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए जाति जनगणना को उपरोक्त सुझाए गए समग्र तरीके से कराना अत्यंत आवश्यक है. यही हमारे संविधान की प्रस्तावना में भी संकल्पित है. मुझे भरोसा है कि आप मेरे सुझावों पर विचार करेंगे. दरअसल, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि जाति जनगणना के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के साथ शीघ्र संवाद करें."