डेविड कोलमैन हेडली भी षड़यंत्रकारी था लेकिन बच निकला, यह कैसे हुआ?
मुंबई हमलों के षड़यंत्र में ना सिर्फ तहव्वुर राणा बल्कि डेविड कोलमैन हेडली का नाम भी सामने आया था। लेकिन यह शख्स कैसे बच निकला उसकी कहानी बेहद दिलचस्प है।;
David Coleman Headley: मुंबई हमलों का एक आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा इस समय नई दिल्ली में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की हिरासत में है, वहीं 2008 मुंबई आतंकी हमलों में उसके सबसे करीबी सहयोगी डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी अमेरिका की जेल में सज़ा काट रहा है।राणा को 10 अप्रैल को अमेरिका से भारत लाया गया, जबकि हेडली ने अमेरिका में अभियोजन पक्ष से समझौता कर लिया था। उसने सभी आरोपों को स्वीकार कर भारत प्रत्यर्पण से खुद को बचा लिया।
अमेरिका में गिरफ़्तारी और सज़ा
हेडली को 3 अक्टूबर 2009 को शिकागो के ओ’हारे इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया गया था। वह फिलाडेल्फिया से पाकिस्तान जाने की योजना में था, जहां वह लश्कर-ए-तैयबा और अल-कायदा के शीर्ष आतंकियों को निगरानी वीडियो सौंपने वाला था।
मार्च 2010 में उसने 26/11 मुंबई हमलों और डेनमार्क के अखबार ज्यूलैंड्स-पोस्टन पर हमले की साजिश में शामिल होने के आरोपों को स्वीकार कर लिया। 24 जनवरी 2013 को उसे 35 साल की सजा सुनाई गई।
दाऊद गिलानी से डेविड हेडली बनने तक
हेडली का जन्म 1960 में वाशिंगटन डीसी में पाकिस्तानी राजनयिक सलीम सैयद गिलानी और अमेरिकी नागरिक ऐलिस हैडली के घर हुआ था। उसके माता-पिता के तलाक के बाद हेडली पाकिस्तान में पिता के साथ रहने लगा। उसने पाकिस्तान के सैन्य स्कूल, कैडेट कॉलेज हसनअब्दाल से शिक्षा प्राप्त की, जहां उसकी मुलाकात तहव्वुर राणा से हुई।
17 वर्ष की उम्र में हेडली अमेरिका लौट आया, लेकिन अनुशासित जीवन के बाद वह अपराध और नशे की दुनिया में चला गया। वह नशीली दवाओं की तस्करी में लिप्त हो गया और दो बार अमेरिका के ड्रग एन्फोर्समेंट प्रशासन (DEA) द्वारा पकड़ा गया। दोनों बार उसने अधिकारियों से सहयोग कर खुद को मामूली सजा दिलवाई और DEA का मुखबिर बन गया।
लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ाव और ISI से संबंध
2001 में हेडली पहली बार लश्कर के ट्रेनिंग कैंप गया और अगले तीन वर्षों में उसने पांच ट्रेनिंग कैंपों में भाग लिया। उसके पास उर्दू और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का ज्ञान था, जिससे वह आसानी से घुलमिल जाता। रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिकी एजेंसियों को उसके लश्कर से संबंधों की जानकारी थी और संभवतः वे उसे आतंकियों में घुसपैठ कराने की कोशिश कर रहे थे।
मुंबई में की थी रेकी
2005 के अंत में लश्कर ने मुंबई हमलों की योजना बनानी शुरू की और हेडली को भारत में टारगेट्स की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी गई। फरवरी 2006 में उसने अपना नाम कानूनी रूप से बदलकर डेविड कोलमैन हेडली रख लिया ताकि वह भारत में खुद को अमेरिकी और गैर-मुस्लिम साबित कर सके।
2006 से 2008 के बीच हेडली ने भारत के पांच दौरे किए और मुंबई के होटल, रेलवे स्टेशन, यहूदी केंद्र जैसी जगहों की वीडियो रिकॉर्डिंग और निगरानी की। उसके चौथे दौरे (अप्रैल 2008) में उसने समुद्री मार्ग से संभावित प्रवेश स्थलों की भी जांच की।हमले के बाद मार्च 2009 में हेडली ने एक और भारत यात्रा की और राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज समेत अन्य ठिकानों की निगरानी की।
अमेरिकी एजेंसियों की चूक
हेडली की अमेरिकी पत्नी और एक अन्य पत्नी ने उसके लश्कर से संबंधों की जानकारी अमेरिकी एजेंसियों को दी थी, लेकिन उसके मुखबिर होने के कारण उसे बार-बार नजरअंदाज किया गया। अमेरिकी अधिकारियों ने भारत को हमले से पहले जनवरी 2008, मई 2008, और 18 नवंबर 2008 में तीन चेतावनियां दी थीं। लेकिन इनका पर्याप्त असर नहीं हुआ।
भारत प्रत्यर्पण से बचाव
मुंबई हमलों में भूमिका के चलते हेडली को मौत की सजा मिल सकती थी, लेकिन उसने अपनी पुरानी रणनीति अपनाई।पूरी तरह सहयोग कर खुद को जांच के लिए अपरिहार्य बना दिया। उसके बयान से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की मुंबई हमलों में मिलीभगत उजागर हुई। अप्रैल 2011 की चार्जशीट में लश्कर कमांडर साजिद मीर और ISI अधिकारी मेजर इकबाल को नामजद किया गया। हेडली के 2010 के प्ली डील में कहा गया कि उसने गंभीर अपराध की जांच में अहम सहयोग और मूल्यवान खुफिया जानकारी दी।
हेडली और राणा की कहानी केवल 26/11 की साजिश की नहीं है, बल्कि इसमें अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की भूमिका, मुखबिरी की रणनीति और कानून की कमजोरियों का आईना भी नजर आता है। जहां एक ने अपनी सूझ-बूझ से भारत आने से बचाव किया, वहीं दूसरा अब भारतीय जांच एजेंसियों के हाथों में है। संभवत: उस न्याय की ओर पहला बड़ा कदम जिसकी देश को 2008 से इंतजार था।