शायद अब दिल्ली वाले साफ हवा में ले सकें सांस, सभी पक्षों को 'सुप्रीम' खरी
वायु प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा कि कोई भी धर्म प्रदूषण की इजाजत नहीं देता है। इस मसले पर सभी पक्षों को जिम्मेदारी समझते हुए काम करना होगा।
Fire Cracker Ban: हम सब चाहते हैं कि पटाखे ना फोड़े जाएं। लेकिन अपेक्षा दूसरे से होती है और उसके असर से हर एक शख्स परेशान होता है। राजधानी दिल्ली या उसके आस पास के इलाकों की बात करें तो हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है। आप बिना सिगरेट पीए जहरीली धुआं को सोख रहे हैं। पटाखों पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगाया था। लेकिन दीवाली को पटाखे खूब फोड़े गए और हर जगह फोड़े गए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि हमारे आदेश का क्या हुआ। अदालत के सामने तरह तरह की दलील पेश की गई। लेकिन अदालत के तेवर तीखे थे। 11 नवंबर को इस विषय पर एक बार फिर सुनवाई हुई और अदालत ने साफ लफ्जों में कहा कि जो लोग धर्म का हवाला दे रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि कोई भी धर्म कम से कम प्रदूषण फैलाने की बात नहीं करता। इसके साथ ही अदालत ने संवैधानिक व्यवस्था का भी हवाला दिया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। प्रथम दृष्टया, हमारा मानना है कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता है जो प्रदूषण को बढ़ावा देती हो या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करती हो।"
अदालत ने दिल्ली पुलिस को पटाखों पर प्रतिबंध लागू करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने और 14 अक्टूबर को दिल्ली सरकार द्वारा लागू किए गए आदेश को लागू करने के लिए एसएचओ की जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया।अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली पुलिस आयुक्त 25 नवंबर तक हलफनामा दाखिल करेंगे कि क्या प्रतिबंध के बारे में सभी पटाखा निर्माताओं को नोटिस जारी किए गए थे। अदालत ने पुलिस से पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण भी देने को कहा।