IC814: एक विवाद तब दूसरा अब, आतंकी तो आतंकी नाम में क्या रखा है?

आईसी 814 वेबसीरीज में पांच अपहरणकर्ताओं में से दो का नाम भोला और शंकर है, जिसे लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-03 05:34 GMT

IC 814 Controversy:  घटना 25 साल पुरानी है लेकिन चर्चा 2024 में हो रही है। शायद चर्चा होती भी नहीं अगर नेटफ्लिक्स पर आप आईसी 814 कंधार हाइजैक वेब सीरीज को नहीं देखते। आईसी 814 के पहले एपिसोड के साथ ही कम से कम जेहन में तस्वीर बन ही गई कि भारत में उस समय सरकारी तंत्र कैसे काम कर रहा था। 1999 के दौर में जो लोग पले बढ़े थे वो तो इस बात को महसूस करते थे कि भारत के एक मुलायम देश है जिसे कोई भी आंख तरेर सकता था। लेकिन वारदात उस पार्टी यानी बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के शासन में हुई जो अपने आपको अलग बताती थी। देश की हिफाजत की बातें करती थी।

1999 में हुआ था अपहरण कांड
1999 का ही वो साल जब जुलाई के महीने में हमने करगिल विजय हासिल की थी। उस युद्ध को लेकर तरह तरह की बातें आज भी होती है। हालांकि जैसे अंत भला तो सब भला कह कर किसी कमी को ढक दिया जाता है। ठीक वैसे ही करगिल विजय के साथ भी हुआ। लेकिन सिर्फ 6 महीने बाद दिसंबर महीने के आखिरी हफ्ते में क्रिसमस से ठीक पहले खतरनाक साजिश को अंजाम दिया गया। जगह काठमांडू का एयरपोर्ट, विमान इंडियन एयरलाइंस का, 191 यात्रियों में वो पांच नापाक शख्स भी सवार जिसने सभी की सांसों पर ब्रेक लगा दिया। कंधार हाइजैक को लेकर अभी तक आप इतना ही जानते हैं कि अपहरणकर्ता पांच की संख्या में थे, जिनका मकसद जम्मू के कोट भलवल में बंद हरकत उल मुजाहिद्दीन के आतंकियों को छुड़ाना जिसमें खास नाम मसूद अजहर का है जो पाकिस्तान से जैश ए मोहम्मद के नाम से नापाक खेल खेलता है।

अपहरणकर्ताओं के नाम पर विवाद
अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी आईसी 814 को लेकर विवाद भी हुआ है। विवाद इस बात पर कि जो पांच अपहरणकर्ता थे उनमें से दो को भोला और शंकर क्यों दिया गया है। बताया जा रहा है कि सरकार ने इस सीरीज के कंटेंट हेड को भी तलब किया है. हालांकि अनुभव सिन्हा कहते हैं कि हमने इस विषय पर गहराई से शोध किया था और उन्ही नामों का जिक्र किया है जिनका इस्तेमाल आतंकी एक दूसरे को बुलाने में किया करते थे। सवाल नाम का नहीं है कि उनमें से एक चीफ था,डॉक्टर था, बर्गर था भोला था या शंकर। सवाल तो यह कि आईसी 814 जब काठमांडू एयरपोर्ट से उड़ान भरने के लिए तैयार था और उससे ठीक पहले भारतीय एजेंट को जानकारी मिल गई थी तो उस समय एक्शन क्यों नहीं लिया गया। वो लगातार मिन्नतें और गुहार लगाता रहा। लेकिन नतीजा क्या हुआ देश और दुनिया ने देखा। जसवंत सिंह, आतंकियों को लेकर कंधार जाते हैं और बंधकों की रिहाई होती है। लेकिन यहां पर एक ऐसी जानकारी है जिसे छिपाया गया।

कई सनसनीखेज जानकारी
कंधार हाईजैक को लेकर तरह तरह की सनसनीखेज जानकारियां सामने आती रही हैं। मसलन अमृतसर एयपोर्ट पर अपहरणकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई हो सकती थी। लेकिन प्लेन में कोई खास शख्स था और उसे ना पहुंचे कमांडो कार्रवाई नहीं की गई। प्लेन में रिफ्यूलिंग होती है. प्लेन टेक ऑफ करता है और लाहौर दुबई होते हुए कंधार में लैंड कर जाता है। कंधार नाम से ही साफ था कि आगे क्या होने वाला है। अब सवाल है कि उस प्लेन में कौन था। इस सवाल का रॉ के चीफ रहे ए एस दुलत ने भी दिया है। करीब 9 साल पहले 2015 में लंदन में ए एस दुलत से प्लेन में सवार उस शख्स के बारे में पूछा गया था जो रहस्य के चादर में लिपटा था। ए एस दुलत ने कहा था कि हां प्लेन में रॉ का एक अधिकारी था और इसकी जानकारी सिर्फ तीन लोगों को थी। दो तो उस अधिकारी के साले थे जो उच्च पद पर आसीन थे और तीसरा वो खुद थे। तो क्या इस वजह से कार्रवाई नहीं हुई। इस सवाल के जवाब वो कहते हैं कि अपनी किताब में उस बात का जिक्र क्यों करते जिसमें दुर्भाग्य से उनका अधिकारी सवार था. लेकिन आगे जिस तरह से बात आगे बढ़ी उससे इसका कोई लेना देना नहीं था। यहां पर आप अपनी तर्कशक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। सामान्य तरह से समझें तो रॉ के तत्कालीन चीफ ने कयास लगाने के मौके ही मौके दे दिए।

रुपेन कात्याल की हुई थी हत्या
अब यह तो रही वो बात जिस पर आप खुद फैसला कर सकते हैं कि व्यवस्था किस तरह चल रही थी। लेकिन इस हाइजैक में सबसे अधिक बदनसीबी रूपेन कात्याल और उनकी पत्नी रचना कात्याल रहीं। रूपेन की हत्या अपहरणकर्ताओं ने कर दी थी. सात जन्मों का साथ देने वाला साथी उनकी जिंदगी से दूर जा चुका था। इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक रुपेन की पत्नी रचना कहती हैं कि इंडियन एयरलाइंस की तरफ से उनकी बहू को मदद मिली। लेकिन सरकार की तरफ से ना किसी ने संपर्क किया और ना ही रुपेन के अंतिम संस्कार के दौरान कोई मौजूद रहा। जबकि साल 2000 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत का दौरा किया तो वो रुपेन के परिवार से मिले। क्लिंटन ने व्यक्तिगत तौर पर श्रद्धांजलि दी, ढांढस बंधाया और कहा कि किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बताएं। यहां तक कि अमेरिका जाने के बाद भी व्हाइट हाउस से उनको खत मिला जिसमें लिखा था कि अमेरिकी सरकार भारत सरकार के साथ मिलकर काम करेगी ताकि दोषियों को सजा दिलाई जा सके।

एक कहावत है कि कोई घटना जितनी बड़ी होती है वो रहस्य के आवरण में ढकी रहती हैं। सच्चाई उससे जुड़े लोग ही जान पाते हैं बाकी सब कयास और सिर्फ कयास। इन सबके बीच अपहरणकर्ताओं के नाम वाला मुद्दा दिल्ली हाईकोर्ट की दहलीज तक जा पहुंचा है। जिसमें आईसी 814 के कंटेंट हेड को जवाब देना है कि आतंकियों के नाम भोला और शंकर नहीं थे बल्कि वास्तविक नाम को छिपाने की कोशिश की गई है। इस विषय पर आम जनता क्या सोचती समझती है उसे भी जानना जरूरी है। कुछ लोगों का कहना है कि यह देखा गया है कि हिंदू समाज को बदनाम करने की कोशिश की गई है। हालांकि यह भी सच है कि जब कोई कट्टर समूह किसी विचारधारा के साथ अपने मकसद के लिए काम करता है तो समाज में वैमनस्यता फैलाने के लिए इस तरह की हरकत करता है और समाज की जिम्मेदारी कहीं अधिक बनती है कि वो किसी तरह के बहकावे में ना आए। 

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