नए कलेवर में तीन आपराधिक कानून आज से लागू, जानें क्या कुछ बदल गया

आम तौर पर हर महीने की पहली तारीख को कुछ बड़े बदलाव होते हैं. आज यानी उसी प्रक्रिया के तहत तीन नए आपराधिक कानूनों को लाग कर दिया गया है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-07-01 01:10 GMT

Three New Criminal Laws: अभी तक आप आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट के बारे में सुनते रहे होंगे. लेकिन अब यह इतिहास बन चुके हैं. 1 जुलाई यानी आज से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो चुके हैं जिनमें बहुत कुछ बदलाव किया गया है. मसलन आप सुनते भी रहे होंगे कि फलाना शख्स तक तो 420 निकला. लेकिन अब इसे नया नंबर 318 मिला है. इसके साथ ही क्या और बड़े बदलाव हुए उस पर डालते हैं एक नजर.

सीआरपीसी अब बीएनएसएस
अगर बात सीआरपीसी की करें तो पहले इसमें कुल 484 धाराएं थीं. लेकिन इसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नाम से जाना जाएगा और कुल धाराएं 531 होंगी. पहले इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जुटाए गए साक्ष्यों को कम जगह मिलती थी.लेकिन अब इसे महत्व दिया गया है. इसके साथ किसी भी अपराध के लिए जेल में अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बांड पर रिहा करने की व्यवस्था है.

BNSS के तहत अब किसी भी अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो एफआई दर्ज करायी जा सकती है. हालांकि 15 दिन के भीतर इसे ओरिजिनल जूरिडिक्शन में भेजना होगा. इसका सीधा अर्थ ऐसे समझिए. मान लीजिए कोई अपराध दिल्ली में होता है. लेकिन जीरो एफआईआर गाजियाबाद में दर्ज होती है. ऐसे मामले में 15 दिन में एफआईआर दिल्ली ट्रांसफर कर दी जाएगी. पुलिस के अधिकारी या सरकारी अधिकारी के खिलाफ केस चलाने के लिए 120 दिन के अंदर संबंधित विभाग से इजाजत मिल जाएगी.अगर इजाजत नहीं मिली तो उसे अपने आप अनुमति मान ली जाएगी.

  • आईपीसी 1860 को अब भारतीय न्याय संहिता का नाम मिला
  • 1898 में बनाई गई सीआरपीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के नाम से जाना जाएगा
  • 1872 में बनाए गए इंडियन इविडेंस एक्ट को भारतीय साक्ष्य अधिनियम नाम मिला

90 दिन के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट

एफआईआर के 90 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी. चार्जशीट के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे. इसके साथ ही सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर फैसला और फैसले के सात दिन के भीतर सजा का ऐलान करना होगा. अगर पुलिस किसी को हिरासत में लेती है तो उसे परिवार को लिखित में जानकारी देनी होगी. यह जानकारी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों होगी. अगर कोई मामला सात साल या उससे अधिक सजा वाला होगा उस केस में पीड़ित की बात को सुनना होगा.यदि थाने में महिला सिपाही तो उसके सामने पीड़िता के बयान को दर्ज कर पुलिस कार्रवाई करेगी.

अब किन केस में नहीं कर सकेंगे अपील
बीएनएसएस की धारा 417 के तहत अगर किसी आरोपी की सजा 3 महीने या उससे कम या जुर्माना 3 हजार रुपए तक का हो तो वो अपील नहीं कर पाएगा. आईपीसी में धारा 376 थी जिसके तहत आप 6 महीने से कम की सजा में अपील नहीं कर सकते थे, हालांकि अब थोड़ी राहत दी गई है, अगर सेशन कोर्ट से किसी दोषी को तीन महीने या कम की जेल या 200 रुपए का जुर्माना उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसी तरह मजिस्ट्रेट कोर्ट से किसी भी अपराध में 100 रुपए के जुर्माने की सजा को भी चुनौती नहीं दे सकते.

कैदियों के लिए बदलाव
हम सब इस तथ्य से वाकिफ हैं कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. इसके लिए भी बड़ा बदलाव किया गया है. बीएनएसए की धारा 479 के मुताबिक अगर कोई विचाराधीन कैदी एक तिहाई से ज्यादा जेल में काट चुका है तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है. लेकिन यह उन विचाराधीन कैदियों पर लागू होगा जिन्होंने पहली बार अपराध किया हो.  अगर किसी कैदी को फांसी की सजा मिली हो तो उसे उम्रकैद में बदला जा सकता है. वहीं उम्रकैद वाले दोषियों को सात साल की जेल में बदला जा सकता है. इसके साथ ही जिन दोषियों को सात साल या उसे अधिक सजा है तो उसे तीन साल की सजा में बदला जा सकता है वहीं सात साल या कम की सजा को जुर्माने में बदल सकते हैं.

अगर किसी कैदी को फांसी की सजा मिली हो तो उसे उम्रकैद में बदला जा सकता है. वहीं उम्रकैद वाले दोषियों को सात साल की जेल में बदला जा सकता है. इसके साथ ही जिन दोषियों को सात साल या उसे अधिक सजा है तो उसे तीन साल की सजा में बदला जा सकता है वहीं सात साल या कम की सजा को जुर्माने में बदल सकते हैं.

अगर किसी कैदी को फांसी की सजा मिली हो तो उसे उम्रकैद में बदला जा सकता है. वहीं उम्रकैद वाले दोषियों को सात साल की जेल में बदला जा सकता है. इसके साथ ही जिन दोषियों को सात साल या उसे अधिक सजा है तो उसे तीन साल की सजा में बदला जा सकता है वहीं सात साल या कम की सजा को जुर्माने में बदल सकते हैं.

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