कहानी उस कॉल की, जब अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सियासत में हुई एंट्री
Manmohan Singh: मनमोहन सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं।लेकिन उनसे जुड़ी यादों का जिक्र हो रहा है। उस प्रसंग के बारे में बताएंगे कि कैसे वो सियासत का हिस्सा बने।;
Manmohan Singh News: मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व की कई खासियत रही है। सरल स्वभाव, इरादे दृढ़, कम लेकिन सटीक बोलना, शायरी के जरिए अपनी भावना का इजहार करना। लेकिन मूल रूप से वो नौकरशाह, अर्थशास्त्री थे। एक एक पाई का सही हिसाब, सही दिशा में उसका उपयोग ये सब उनके कार्यक्षेत्र का हिस्सा होता था। लेकिन नियति बहुत कुछ पहले से किसी भी इंसान के बारे में तय कर चुकी होती है। कौन सोच सकता था कि 1989-91 में जनता दल सरकार के पतन के बाद कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिलेगा। देश की कमान नरसिम्हाराव (Ex PM Narsimharao) के हाथ होगी और उनके सहायक वो शख्स होगा जो सियासी सर्किल में नौकरशाह के तौर पर हिस्सा हुआ करता था। लेकिन स्वभाव सियासी नहीं था। ऐसे में आप के दिमाग में भी कई सवाल उमड़ घुमड़ रहे होंगे कि आखिर मनमोहन सिंह को राजनीति का हिस्सा होने का मौका कैसे मिला।
नीदरलैंड में एक सम्मेलन से वापस आकर तत्कालीन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष डॉ. मनमोहन सिंह के लिए कुछ अलग साबित हुआ। उन्हें एक ऐसा फोन आया जिसने भारत के आर्थिक परिदृश्य और उनके करियर की दिशा बदल दी।1991 में पी.वी. नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री पद संभाला उस समय भारत भुगतान संतुलन के संकट और राजनीतिक गिरावट से जूझ रहा था जबकि दुनिया सोवियत संघ के पतन से स्तब्ध थी। इस समय डॉ. सिंह को श्री राव के तत्कालीन प्रधान सचिव पी.सी. अलेक्जेंडर का अचानक फोन ने जगाया और यह बताया गया कि उनका चयन वित्त मंत्री के तौर पर किया गया है।
उन्होंने मजाक में मुझसे कहा कि अगर चीजें ठीक से काम करती हैं तो हम सब इसका श्रेय लेंगे और अगर चीजें ठीक से काम नहीं करती हैं तो मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा। उन्होंने अपनी बेटी दमन सिंह द्वारा लिखी गई पुस्तक 'स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरशरण' में कहा। 21 जून, 1991 को डॉ. सिंह शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन में थे।
यह शपथ भारत के आर्थिक परिदृश्य में एक बड़े बदलाव की शुरुआत थी क्योंकि उदारीकरण (Globalization Liberalization) ने भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोल दिया। इस विषय पर किताब में जिक्र है कि मनमोहन सिंह को पीएम नरसिम्हाराव को वैश्वीकरण और उदारीकरण के मुद्दे पर मनान पड़ा था। किताब के मुताबित नरसिम्हाराव (Narsimha Rao)को लगता था कि इससे मामला नहीं सुधरेगा। लेकिन बाद में उन्हें यकीन हो गया कि हम जो कर रहे हैं वह सही है, और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। लेकिन वह बीच के रास्ते को पवित्र करना चाहते थे - कि हमें उदारीकरण करना चाहिए, लेकिन हाशिए पर पड़े वर्गों, गरीबों का भी ख्याल रखना चाहिए।
मनमोहन सिंह ने अधिकांश उद्योगों को लाइसेंसिंग नियंत्रण से मुक्त किया (License System) एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम में संशोधन किया, एक नई कराधान व्यवस्था लागू की और कई क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र के एकाधिकार को समाप्त किया।दमन सिंह की किताब में पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी गुरशरण कौर के 1930 के दशक से 2004 तक के जीवन की यात्रा का वर्णन है और यह दमन की अपने माता-पिता के साथ बातचीत और पुस्तकालयों और अभिलेखागार में बिताए घंटों पर आधारित है। डॉ. सिंह के गुरुवार रात को 92 वर्ष की आयु में दिल्ली के एम्स में निधन के बाद पुस्तक के किस्से चर्चा में आए।