मोदी 3.0 के पहले वर्ष पूरे, पड़ोसी देश बने हुए हैं भारत की सबसे बड़ी चिंता
भारत की विदेश नीति के प्रयासों ने कनाडा और चीन के साथ संबंधों में सुधार में मदद की है, अब उसे दुनिया को यह समझाना होगा कि पाकिस्तान को आतंकवाद पर अपनी निर्भरता छोड़नी होगी।;
9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। दुनिया को यह अच्छी तरह समझ में आ गया कि इस बार उन्हें 2014 और 2019 की तरह पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। हालांकि, यह भी स्पष्ट था कि यह घरेलू नीतियों को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है, लेकिन विदेश नीति के संचालन में कोई रुकावट नहीं आएगी। मोदी 3.0 को विदेश नीति में बदलाव करने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय माहौल में ऐसा कोई दबाव नहीं था।
बाइडेन युग में स्थिरता
जनवरी 2021 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकटों और भू-राजनीतिक मुद्दों पर स्थिर और अनुमानित दृष्टिकोण अपनाकर दुनिया को राहत दी। बाइडेन के कार्यकाल में भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को “अस्वीकार्य” तो बताया, लेकिन रूस से तेल और रक्षा सौदों को जारी रखा, जिससे यूरोपीय आलोचनाओं को नजरअंदाज किया गया।
इसी तरह, हमास हमले के मामले में भारत की सहानुभूति इज़राइल के साथ रही। अमेरिका के साथ संबंध और भी मजबूत हुए। हालांकि खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारतीय खुफिया एजेंसियों की कथित संलिप्तता को लेकर अमेरिका ने चिंता जताई थी, लेकिन नवंबर 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस मामले में दोनों देशों के बीच समझौता हो गया। भारत में रॉ अधिकारी विकास यादव के खिलाफ मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।
कनाडा के साथ संबंधों में सुधार
कोविड महामारी के बाद वैश्विक प्राथमिकता आर्थिक विकास बन गई। भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही थी, जिससे उसे फायदा मिला। हालांकि उदार वैश्विक समुदाय भारत की सामाजिक-राजनीतिक दिशा को लेकर चिंतित था, परंतु विदेशी सरकारें अपने राजनयिक हितों से प्रेरित थीं।
कनाडा के साथ संबंध तब सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए जब हदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत पर आरोप लगे, लेकिन सबूतों की बजाय महज़ खुफिया जानकारी के आधार पर आरोप लगाए गए थे। कनाडा में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री मार्क कार्नी, जो सिख वोट बैंक पर निर्भर नहीं हैं, ने रवैया बदला और मोदी को G7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया। मोदी 3.0 में भारत की इंडो-पैसिफिक, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के प्रति सक्रियता जारी रही, साथ ही प्रवासी भारतीयों से संबंध और "इंडिक परंपराओं" पर जोर भी बना रहा।
अशांत पड़ोस
मोदी 3.0 के पहले वर्ष में सबसे ज्यादा चिंता भारत के पड़ोसी देशों ने दी। बांग्लादेश के साथ संबंध तब बिगड़ गए जब 5 अगस्त 2024 को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना विरोध प्रदर्शन के बीच भारत चली गईं। उनके इस्तीफे के बाद भारत-विरोधी ताकतें मजबूत हुईं, जिससे पूर्वी सीमा असुरक्षित हो गई।
पश्चिमी सीमा पहले से ही शत्रुतापूर्ण रही है। तालिबान के प्रति भारत की प्रतिक्रिया धीमी रही, लेकिन समय के साथ संपर्क स्थापित हुआ। उत्तर में भी राजनीतिक अस्थिरता है, और दक्षिणी सीमा पर स्थिति अभी भी अनिश्चित बनी हुई है।
चीन के साथ संबंध 2020 के गालवान संघर्ष के बाद तनावपूर्ण बने रहे, हालांकि अक्टूबर 2024 में रूस में BRICS सम्मेलन के दौरान मोदी-शी की मुलाकात के बाद कुछ स्थिरता आई। फिर भी, गालवान से पहले की स्थिति बहाल नहीं हुई है और 1990 के दशक के शांतिपूर्ण समझौते अब प्रासंगिक नहीं हैं। ऐसे में भारत को एक नया संतुलन बनाना पड़ा है, जो उसे पश्चिमी देशों के करीब ले जाता है।
मोदी ने ट्रंप को लुभाने की कोशिश की, पर असफल
2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत ने वैश्विक स्थिति को अस्थिर कर दिया। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को हथकड़ियों में वापस भेजा गया, जिससे देश में नाराजगी फैली। ट्रंप ने भारत को "टैरिफ किंग" कहा और अमेरिकी उत्पादों पर भारत जैसे शुल्क लगाने की धमकी दी। वे चाहते हैं कि अमेरिकी कंपनियां भारत में नहीं बल्कि अमेरिका में निर्माण करें।
नए हालात से अब कैसे निपटेगा भारत?
मोदी ने ट्रंप को मनाने की कोशिश की। विदेश मंत्री एस. जयशंकर उनके शपथ ग्रहण में शामिल हुए और मोदी फरवरी की शुरुआत में वॉशिंगटन गए। लेकिन उसी दौरान ट्रंप ने भारत पर नए टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी, जो यह दिखाता है कि वे भारत से ऐसे व्यापार समझौते चाहते हैं जिससे अमेरिकी कंपनियों को लाभ हो। वार्ता अभी भी जारी है।
QUAD शिखर सम्मेलन पर निगाहें
ट्रंप ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और बाद में भारत और मोदी के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाया। भारत के खंडन के बावजूद ट्रंप ने दावा किया कि उन्हीं की मध्यस्थता से परमाणु युद्ध टला और भारत-पाकिस्तान युद्धविराम के लिए तैयार हुए।
भारत ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान व्यापार से जुड़ी कोई चर्चा नहीं हुई थी। ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को बराबर तवज्जो दी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि मोदी की 'व्यक्तिगत संबंधों' की रणनीति ट्रंप पर असर नहीं डालती। अब सबकी निगाहें सितंबर में भारत में होने वाले QUAD शिखर सम्मेलन पर हैं—देखना होगा ट्रंप खुद आएंगे या वैंस को भेजेंगे।
आतंकवाद: एक बड़ी चुनौती
भारत यूरोप के महत्व को समझता है, लेकिन यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौता करना आसान नहीं है। सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग कितना गहरा होगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुआ आतंकी हमला (11 मार्च को बलूचिस्तान में बलोच विद्रोहियों द्वारा जफ्फर एक्सप्रेस पर हमले के बाद) यह दर्शाता है कि भारत पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद का जवाब अब सैन्य बल से देगा। सभी दलों के प्रतिनिधिमंडल ने दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत इस मुद्दे पर एकजुट है। फिर भी, विश्व समुदाय का फोकस अब भी परमाणु शक्तियों के बीच टकराव रोकने पर है।
इस प्रकार, मोदी 3.0 के पहले वर्ष के अंत में सरकार की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह वैश्विक समुदाय को यह समझाए कि पाकिस्तान से होने वाला आतंकी हमला ही असल "पहला हमला" है—और इसलिए विश्व शक्तियों को पाकिस्तान पर आतंकवाद छोड़ने के लिए दबाव बनाना होगा। यह आसान नहीं होगा, क्योंकि आज आतंकवाद वैश्विक प्राथमिकताओं में नहीं है।