दल बदले लेकिन जीत नहीं हुई नसीब, चुनाव से पहले 80 फीसद दलबदलुओं को मिली हार

दलबदलुओं की अपनी कहानी है. राजनीतिक मौसन भांप कर वो फैसला करते हैं. हालांकि उनके निर्णय कभी फायद वाले तो कभी नुकसान दे जाते हैं. 2024 के चुनाव में दल बदलने वालों को खास फायदा नहीं हुआ.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-05 02:23 GMT

Turncoats in Indian Politics: सियासत में दल बदलने की कहानी कोई नई बात नहीं है. नेता एक दल से दूसरे दल में जाते रहते हैं. यह बात अलग कि अपने फैसले को विचारधारा का नाम देकर उसे सही भी साबित करते हैं. लेकिन दल बदलने का यह सिलसिला चुनाव से पहले कुछ अधिक होता है. अह इसके पीछे खास वजह यह कि नेताओं को जब यह डर सताता है कि शायद टिकट ना मिले तो वो दल बदलना बेहतर विकल्प समझते हैं. लेकिन क्या उनका फैसला कारगर होता है. इसे हम कुछ आंकड़ों से समझने की कोशिश करेंगे.2024 के आम चुनाव में जनता ने दलबदलुओं को जोरदार सबक सिखाया है. मसलन बीजेपी में 25 नेता दूसरे दलों से आए. लेकिन इन आयातीत नेताओं में 20 को हार का सामना करना पड़ा. वहीं कांगेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले 7 उम्मीदवारों में से सिर्फ दो को जीत मिली.

दलबदलुओं को जोर का झटका
अशोक तंवर, सीता सोरेन, परनीत कौर वो लोग है जो बीजेपी का हिस्सा बने. लेकिन चुनावी समर में फायदा नहीं मिला. अशोक तंवर सिरसा लोकसभा से कांग्रेस की कुमारी शैलजा से दो लाख के अधिक अंतर से हार गए. वहीं हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भी चुनाव जीत पाने में नाकाम रहीं. पटियाला से परनीत कौर चुनाव हार गई. जबकि वो पिछले चार दफा से चुनाव जीतती रही हैं.

  • अशोक तंवर, सिरसा से हारे
  • सीता सोरेन, दुमका से हारीं
  • परनीत कौर, पटियाला से हारीं 

क्या कहते हैं सियासी जानकार

सियासत के जानकार कहते हैं कि अब जनता भी समझती है कि इस तरह के नेता क्यों चुनाव पहले से ही दूसरे दलों में शामिल होते हैं. दल बदलने वाले नेताओं की सिर्फ एक ही ख्वाहिश होती है कि वो किसी तरह से संसद या विधानसभाओं तक पहुंचते रहें. लेकिन अब पब्लिक उन्हें हरा कर सजा भी देने लगी है. हालांकि ऐसे भी नेता हैं जो दल बदलने के बाद भी अपने इलाकों में कामयाब होते हैं.

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