ब्रिक्स समिट में भारत की गूंज, चर्चा में चीन-रूस की गैरमौजूदगी
ब्राजील में हुई ब्रिक्स समिट में चीन और रूस की गैरहाजिरी चर्चा में रही। भारत ने आतंकवाद और ग्लोबल साउथ के मुद्दों पर प्रभावी तरीके से बात कही।;
ब्राज़ील में आयोजित ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में इस बार एक अहम बहस छिड़ गई है। क्या यह संगठन अब भी उतना प्रभावशाली है जितना पहले था? खासकर तब जब चीन और रूस जैसे दो प्रभावशाली राष्ट्राध्यक्ष इसमें शामिल नहीं हुए। इसके बावजूद, भारत की सक्रिय भूमिका और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता ने इस मंच पर एक अलग प्रभाव डाला है।
ब्रिक्स की प्रासंगिकता क्या अब भी ज़रूरी है?
ब्रिक्स अभी भी प्रासंगिक है, खासकर ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों के लिए। यह मंच उन मुद्दों को उठाता है, जिन्हें अक्सर पश्चिमी देशों द्वारा नजरअंदाज किया जाता है। हालांकि, गाजा युद्ध, रूस-यूक्रेन संघर्ष और ईरान पर इज़राइल के हमले जैसी हालिया वैश्विक घटनाओं में BRICS की निष्क्रियता इसकी सीमाओं को उजागर करती है। इस मंच की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश इसे कितना सक्रिय बनाते हैं।
क्या चीन जैसे देश बदलेंगे रुख?
ब्रिक्स ने जब पहलगाम हमले के बाद आतंकवाद की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया, तो यह एक सामूहिक रुख दर्शाता है। भारत की ओर से प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तान से जुड़े आतंकी नेटवर्क पर चिंता जताई। हालांकि कोई भी देश आतंकवाद का समर्थन खुलेआम नहीं करता, फिर भी राजनीतिक जटिलताएं अक्सर प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती हैं। चीन ने पहले पाकिस्तान आधारित आतंकियों पर संयुक्त राष्ट्र में कार्रवाई रोक दी थी, ऐसे में इस मंच पर भारत की आवाज़ का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
चीन और रूस की गैर-मौजूदगी भारत को क्या फायदा?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अनुपस्थिति तकनीकी कारणों से थी। पुतिन पर युद्ध अपराधों के आरोप हैं, और शी ने प्रतिनिधि भेजा। दोनों देशों की भागीदारी बनी रही, पुतिन ने वीडियो के जरिए भाषण भी दिया। भारत को भले ही मंच पर अधिक स्थान मिला हो, लेकिन इससे ब्रिक्स की आंतरिक संरचना में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।
ग्लोबल साउथ की भागीदारी
प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ग्लोबल साउथ के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत की। इससे विकासशील देशों को अपनी समस्याएं वैश्विक मंच पर उठाने का अवसर मिलता है। ब्रिक्स में नए सदस्य देशों के शामिल होने से यह मंच अधिक विविध और व्यापक हो रहा है, लेकिन संख्या बढ़ने से कामकाज में सुस्ती भी आ सकती है। इसलिए नेतृत्व की स्पष्ट दृष्टि और रणनीति अत्यंत आवश्यक है।
ब्रिक्स का विस्तार
ब्रिक्स का विस्तार, खासकर अमेरिका और डोनाल्ड ट्रंप जैसे आलोचकों द्वारा उस पर लगाए गए आरोपों के बावजूद, इसके बढ़ते वैश्विक महत्व को दर्शाता है। ट्रंप ने ब्रिक्स को एंटी-अमेरिका बताया और इसके नीति अनुसरण करने वाले देशों पर 10% टैरिफ की चेतावनी दी। यह दर्शाता है कि BRICS को अब गंभीरता से लिया जा रहा है। परंतु, संगठन की बढ़ती सदस्यता अगर रणनीतिक स्पष्टता के बिना आगे बढ़ी, तो यह उसकी कार्यक्षमता में बाधा बन सकती है।
ब्रिक्स संभावनाओं से भरा मंच है, जो अगर सही दिशा में नेतृत्व पाए, तो वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए एक सशक्त आवाज़ बन सकता है। भारत की भूमिका, विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी एजेंडे और विकासशील देशों के प्रतिनिधित्व के लिए, इसमें निर्णायक होती जा रही है। परंतु, इसका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि सदस्य देश इसे सहयोग और समाधान का सशक्त मंच बना पाते हैं या नहीं।