18 लोगों की मौत और नतीजा सिर्फ एक तबादला
15 फरवरी की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 18 लोगों की जान चली गई थी। ज्यादातर शिकार लोगों में महिलाएं और बच्चे शामिल थे। अब 19 दिन बाद कुछ बड़ी कार्रवाई हुई है।;
NDLS Stampede Action News: गरीब महज आंकड़े होते हैं और आंकड़े समय के साथ इतिहास के पन्नों में दफ्न हो जाते हैं। गरीबों की सिसकारी और रुदन का मोल मुआवजा और कुछ सरकारी कार्रवाई। मुआवजे की कीमत और सरकारी कार्रवाई पर सवाल पहले भी होते रहे हैं, आज भी हो रहा है। आगे क्या होगा उसका आकलन आप इतिहास और वर्तमान से कर सकते हैं। यहां हम 15 फरवरी की रात उस हादसे का जिक्र कर रहे हैं जिसमें 18 लोगों की जिंदगी के सफर पर हमेशा के लिए भगदड़ ने द एंड कर दिया। वो हंसते- मुस्कराते अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए देश के सबसे सुरक्षित- सुविधायुक्त नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे थे। हादसे के समय वाली जो तस्वीर सामने आई उसे देख अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि कोई बड़ा हादसा दस्तक देने वाला है। लेकिन रेलवे स्टेशन पर जो कुछ हुआ क्या उसे आप सिर्फ हादसा कह सकते है, क्या वो साबूत लापरवाही नहीं थी।
मंडल रेल प्रबंधक (DRM), नॉर्दन रेलवे
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के स्टेशन निदेशक
वरिष्ठ मंडल वाणिज्यिक प्रबंधक (DCM)
सवाल यह है कि उस हादसे के लिए रेलवे बोर्ड के अधिकारियों को जिम्मेदार क्यों ना ठहराया जाए। व्यवस्था में खामी के लिए रेल मंत्री को जिम्मेदार क्यों ना माना जाए। क्या महज छोटे और कुछ बड़े अधिकारियों के खिलाफ तबादले की कार्रवाई से उन पीड़ित परिवारों को न्याय मिलेगा। क्या 10 लाख की रकम उनके जख्म को भरने के लिए पर्याप्त है। सवाल इससे कहीं बड़ा है। जांच कमेटी की रिपोर्ट में जिन खामियों की तरफ इशारा किया गया और जिससे निपटने की बात की गई, क्या उसे पहले अमल में नहीं लाया जा सकता है। सवाल तो यह भी है कि जिस नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आम दिनों में 200 से अधिक आरपीएफ के जवान तैना होते हैं उस दिन वह संख्या 100 से भी कम थी।
रेल मंत्रालय और नॉर्दन रेलवे के अधिकारियों को सिर्फ यह बात समझ में आई कि दिल्ली या उसके आस पास से इलाके के लिए महाकुंभ के दौरान यात्रा नहीं करेंगे। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बारे में कहा जाता है कि यहां दक्ष लोगों की तैनाती की जाती है। ऐसे में ये अधिकारी समय की जरूरत नहीं भांप सके। इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि जिस तरह से भारत में रेल हादसे होते हैं उस हिसाब से हर वर्ष आपको कम से कम दो दफा रेल मंत्री और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को बदलना पड़ जाएगा। अब आप इतने बड़े स्तर पर बदलाव व्यवहारिक नहीं होता। दूसरी बात कि सामान्य परिचालन में रेलवे बोर्ड या रेल मंत्री शामिल नहीं होते। लिहाजा आप उनकी नैतिक जिम्मेदारी मान सकते हैं।
यह बात सच है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की भगदड़ के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ तबादले की कार्रवाई की गई। लेकिन मूल सवाल यह है कि किसी भी हादसे के लिए भीड़ को जिम्मेदार ठहराना कहां तक सही है। जब आप बेहतर, सुखद सुरक्षित रेल यात्रा की गारंटी देते हैं तो उस गारंटी को अमल में लाने की जिम्मेदारी भी बनती है। हालांकि यह भारतीय रेलवे की कड़वी सच्चाई है कि किसी भी घटना, दुर्घटना या हादसे के लिए कुछ छोटे-बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई कर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है इस उम्मीद के साथ कि शायद हादसे नहीं होंगे। हालांकि इस तस्वीर को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आंधी आने पर शुतुरमर्ग अपनी आंख बंद कर खुद को समझाने की कोशिश करता है कि आंधी है ही नहीं।