'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर संसद में हंगामे के आसार, सरकार पेश करेगी ऐतिहासिक विधेयक

मोदी 3.0 सरकार ने देश में वन नेशन वन इलेक्शन की हिमायत ली है और अब मंगलवार को इससे सम्बंधित विधेयक भी संसद में पेश होने जा रहा है. माना जा रहा है कि इसे लेकर संसद में हंगामा जरुर होगा.;

Update: 2024-12-16 15:56 GMT

One Nation One Election : केंद्र सरकार मंगलवार को लोकसभा में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' (एक देश, एक चुनाव) विधेयक पेश करने जा रही है। इस प्रस्तावित बिल का उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था करना है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इसे दोपहर 12 बजे सदन में पेश करेंगे।

इसके साथ ही केंद्र सरकार दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी के लिए अलग-अलग विधेयक भी पेश करेगी। इस बिल की प्रति सांसदों को पहले ही वितरित कर दी गई है। वहीं, विपक्ष ने इस बिल को लेकर तीखा विरोध जताया है। ऐसे में लोकसभा की कार्यवाही के हंगामेदार रहने की पूरी संभावना है।

वन नेशन, वन इलेक्शन: मुख्य उद्देश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' भारत की जरूरत है। उनके अनुसार, बार-बार चुनाव कराने से देश के विकास कार्य बाधित होते हैं और संसाधनों की भारी बर्बादी होती है। अगर सभी चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो प्रशासनिक और आर्थिक स्तर पर बड़ी बचत होगी।

विधेयक का आगे का रास्ता
सरकार इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की योजना बना रही है। जानकारों का ये भी कहना है कि सरकार की तरफ से संसद में इस विधेयक को पेश करने के बाद जो भी चर्चा होती है ( जहाँ तक आसार हैं तो हंगामा निश्चित्त है) उसके बाद उस विधेयक को जेपीसी के समक्ष भी भेजा जा सकता है, जेपीसी में पक्ष और विपक्ष दोनों ही सदस्य के तौर पर शामिल रहेंगे। समिति की मंजूरी मिलने और संसद के दोनों सदनों में विधेयक पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह विधेयक कानून बन जाएगा।
अगर यह कानून लागू हुआ, तो 2029 से देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे।

'वन नेशन, वन इलेक्शन' की चुनौतियां और विरोध
विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि:
1. जनता की जवाबदेही घटेगी: एक साथ चुनाव से सरकारें पांच साल तक फ्रीहैंड महसूस करेंगी, जिससे जवाबदेही में कमी आएगी।
2. संवैधानिक बाधाएं: संविधान के अनुच्छेद 328 और 368(2) के अनुसार, ऐसे प्रावधान के लिए राज्यों की सहमति जरूरी है।
3. क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव कम होगा: छोटे दलों का कहना है कि एक साथ चुनाव से राष्ट्रीय मुद्दों का दबदबा होगा, जिससे क्षेत्रीय विषयों की अनदेखी हो सकती है।

कोविंद समिति की सिफारिशें
वन नेशन, वन इलेक्शन पर विचार के लिए सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई गई थी। इसकी सिफारिशें प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं:
सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का प्रावधान।
लोकसभा-विधानसभा चुनाव पहले चरण में, और 100 दिनों के भीतर निकाय चुनाव दूसरे चरण में।
इलेक्शन कमीशन को एकल वोटर लिस्ट तैयार करने का निर्देश।
मैनपावर और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग।

क्या कहती हैं पार्टियां?
समर्थन करने वाले दल: बीजेपी, जेडीयू, टीडीपी, बीएसपी, शिवसेना (शिंदे गुट), और एलजेपी जैसे दल 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का समर्थन कर रहे हैं।

विरोध करने वाले दल: कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम, और डीएमके समेत कई विपक्षी दल इसके खिलाफ हैं।

संभावित प्रभाव और चुनौतियां
अगर यह विधेयक कानून बनता है, तो कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना या बढ़ाना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों का कार्यकाल 13-17 महीने कम होगा। वहीं, असम, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल का भी मौजूदा कार्यकाल प्रभावित हो सकता है।

संसद में हंगामे के आसार
इस विधेयक को लेकर संसद में तीखी बहस होना तय है। विपक्ष का कहना है कि यह कानून संविधान की संघीय संरचना के खिलाफ है और राज्यों के अधिकारों को कमजोर करेगा। दूसरी ओर, सरकार इसे राष्ट्रीय विकास की दिशा में अहम कदम मान रही है।
'वन नेशन, वन इलेक्शन' भारत की राजनीति और प्रशासन में बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करने में संवैधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौतियां कम नहीं हैं। संसद और राज्यों के बीच सहमति बनाना सरकार के लिए सबसे बड़ी परीक्षा साबित होगी। 


Tags:    

Similar News