पिंडदान का नया रूप, डिजिटल युग में आस्था और तकनीक का संगम

डिजिटल युग में पिंडदान और पूजा-पाठ का नया चलन, जहां गया-काशी की परंपराएं अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और वीडियो कॉल के जरिए घर बैठे सुलभ हैं।;

Update: 2025-09-15 03:47 GMT
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पिछले साल मुंबई निवासी सौरभ सेठ के एक मित्र अपने दिवंगत पिता के लिए गया जाकर पिंडदान करना चाहते थे, लेकिन व्यस्तता के कारण यात्रा नहीं कर पाए। तब सेठ ने उन्हें प्रयाग पंडिट्स से जोड़ा। सेठ बताते हैं – “मैं पहले भी उनकी सेवाएं ले चुका था। उन्होंने हमारे परिवार की वाराणसी-प्रयागराज-गया और अयोध्या यात्रा की व्यवस्था की थी और पुजारियों से संपर्क कराया था। मुझे पता था कि वे ऑनलाइन सेवाएं भी उपलब्ध कराते हैं। मेरे मित्र, जो इंजीनियर हैं, पितृपक्ष में गया में पिंडदान करना चाहते थे लेकिन समयाभाव में जा नहीं पाए। तब मैंने उन्हें प्रयाग पंडिट्स से जुड़ने की सलाह दी।

प्रयागराज स्थित इस प्लेटफॉर्म ने एक पुजारी की व्यवस्था की और सेठ के मित्र ने वीडियो कॉल के जरिए विधि में हिस्सा लिया।

ऑनलाइन धार्मिक सेवाओं का विस्तार

आज कई वेबसाइट्स और ऐप्स के जरिए अस्थि विसर्जन, पिंडदान, विशेष पूजा-पाठ, और अलग-अलग मंदिरों में अनुष्ठान कराना संभव हो गया है। भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे लोग भी इन डिजिटल सेवाओं का लाभ ले रहे हैं।व्यक्ति अपनी जानकारी (जैसे नाम, गोत्र) पोर्टल पर साझा करता है। फिर लिंक या कॉल के जरिए उसे वीडियो पर जोड़ा जाता है। पुजारी उसकी ओर से अनुष्ठान करता है। कई बार प्रसाद भी डाक से भेजा जाता है।

विशाखापट्टनम के सेवानिवृत्त इंजीनियर नारायण राव ने पिछले साल काशी में रुद्राभिषेक करवाना चाहा लेकिन अचानक यात्रा संभव नहीं हुई। उन्होंने वाराणसी स्थित महा तर्पण से संपर्क किया। पुजारी ने उनकी ओर से पूजा की और वीडियो भेजा गया।

डिजिटल पूजा-पाठ का नया दौर

पंडित विशाल द्विवेदी बताते हैं कि उनकी वेबसाइट 2020 में शुरू हुई और अब प्रतिदिन गंगा आरती का लाइव प्रसारण यूट्यूब पर किया जाता है। कई पोर्टल पूजा सामग्री बेचते हैं और भक्ति संगीत, मंत्र, पाठ डाउनलोड के लिए उपलब्ध कराते हैं। यहां तक कि “गिफ्ट ए पूजा” का विकल्प भी मिलता है।उद्योग जगत के जानकार कहते हैं कि पिछले पांच वर्षों में डिजिटल धार्मिक सेवाओं का क्षेत्र तेजी से बढ़ा है। खासकर पितृपक्ष के दौरान ऑनलाइन पिंडदान की मांग सबसे ज्यादा रहती है।

गया और पितृपक्ष की परंपरा

सदियों से पितृपक्ष में हजारों श्रद्धालु गया पहुंचकर पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष मिलता है।गया के गयावल पंडा पीढ़ियों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। लेकिन वीडियो कॉल से पिंडदान परंपरागत पुजारी असहज हैं। गया के श्री विष्णुपद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष शंभू लाल बिथल कहते हैं  “धर्मग्रंथों में इसकी अनुमति नहीं है। पूजा स्थलों का महत्व तभी है जब व्यक्ति वहां स्वयं पहुंचे।”

आलोचना और विवाद

उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और असम के कई विद्वानों और श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन पिंडदान को “शॉर्टकट” और “व्यावसायीकरण” करार दिया। उनका मानना है कि इससे अनुष्ठान की पवित्रता कम होती है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म का पक्ष

प्रयाग पंडिट्स के संस्थापक प्रखर पोरवाल का कहना है  “धर्मग्रंथों में ‘प्रतिनिधि’ (प्रतनिधि) के जरिए श्राद्ध की परंपरा पहले से है। हम सिर्फ आधुनिक साधनों से उसे निभा रहे हैं। कोविड महामारी ने ऑनलाइन सेवाओं की मांग अचानक बढ़ा दी। पहले ऑफलाइन बुकिंग ज्यादा होती थी, लेकिन लॉकडाउन में ई-पिंडदान और ऑनलाइन पूजा ने तेज़ी पकड़ी। इस साल पिंडदान बुकिंग में 20% वृद्धि दर्ज हुई।

गया के पुजारी विश्वनाथ गुर्दा बताते हैं कि इस पितृपक्ष में वे रोजाना 7-8 ऑनलाइन पिंडदान कर रहे हैं। हालांकि समुदाय के भीतर आलोचना है, पर यह सुविधा उन लोगों के लिए है जो यात्रा नहीं कर सकते।हरिद्वार के पंडित पराग शरण मानते हैं कि कई पुजारी गुपचुप ऑनलाइन सेवाएं देते हैं, ताकि रिकॉर्डिंग और वीडियो कॉल आसान हो सके।

महामारी और डिजिटल पूजा का प्रसार

वाराणसी के शशांक मिश्रा ने 2014 में पितृदेव पोर्टल शुरू किया। बाद में अमेरिका आधारित अस्थिविसर्जन ने उनसे सहयोग लिया। महामारी के दौरान उनकी बुकिंग महीने की 15-20 से बढ़कर रोजाना 20-30 तक पहुंच गई। अब श्मशान घाट भी लोगों को इन सेवाओं की ओर भेजते हैं।2021 में श्री मंदिर ऐप लॉन्च हुआ। इसके संस्थापक प्रशांत सचान कहते हैं  हमारा उद्देश्य तकनीक के जरिए लोगों को उनकी आध्यात्मिक परंपराओं से जोड़ना है। महामारी ने इस बदलाव को तेज़ किया, लेकिन इसकी जरूरत महामारी के बाद भी बनी रहेगी।

डिजिटल पूजा-पाठ ने लोगों के लिए धर्म और परंपरा से जुड़ने का एक नया रास्ता खोल दिया है। हालांकि इस पर विवाद भी हैं कुछ इसे सुविधा मानते हैं तो कुछ संस्कारों का ह्रास। लेकिन इतना तय है कि तकनीक के सहारे आस्था ने एक नया रूप ले लिया है, जहां गया, काशी और हरिद्वार जैसे पवित्र स्थान अब स्क्रीन पर भी सुलभ हैं।

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