आतंकियों के सामने कलमा पढ़कर बच गई हिंदू प्रोफेसर की जान
"मैं कलमा पढ़ सकता था, इसलिए बच गया", असम के एक एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि पहलगाम के आतंकी हमले में कैसे बची उनकी जान;
पाहलगाम आतंकी हमले के चश्मदीद असम यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने एक चौंकाने वाला अनुभव साझा किया है। उन्होंने बताया कि कैसे कलमा पढ़ पाने की वजह से उनकी जान बच सकी। आतंकी पर्यटकों से धर्म पूछकर हमला कर रहे थे, और जो लोग कलमा पढ़ पाए, उन्हें छोड़ दिया गया।
जब यह भयावह हमला हुआ, उस वक्त भट्टाचार्य अपने परिवार के साथ बेसरन घाटी में छुट्टियां मना रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भट्टाचार्य ने बताया कि वो अपने परिवार के साथ एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे। तभी उन्होंने सुना कि उनके आसपास के लोग कलमा पढ़ रहे हैं।
यह सुनकर इन हिंदू प्रोफेसर ने भी कलमा पढ़ना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद एक आतंकी उनकी ओर आया और उनके पास लेटे व्यक्ति के सिर में गोली मार दी।
उन्होंने आगे बताया, "आतंकी ने मेरी तरफ देखा और पूछा, 'क्या कर रहे हो?' मैं और तेजी से कलमा पढ़ने लगा। शायद इसी वजह से उसने मुझे छोड़ दिया और वहां से चला गया।"
इसके बाद प्रोफेसर ने अपनी पत्नी और बेटे को लेकर चुपचाप वहां से निकलने की कोशिश की। लगभग दो घंटे पैदल चलने और घोड़ों के पैरों के निशान का पीछा करने के बाद, वे होटल तक सुरक्षित पहुँच सके।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भट्टाचार्य ने कहा, "मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि मैं जिंदा हूं।"
पुणे की युवती का दावा: धर्म पूछकर बनाया निशाना
पुणे की एक युवती असावरी ने भी ऐसा ही दावा किया है। उन्होंने बताया कि आतंकियों ने उनके पिता और चाचा से पहले धर्म पूछा, फिर गोलियां चलाईं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक असावरी ने बताया, "आतंकवादियों ने मेरे पिता से इस्लाम की एक आयत (संभवत: कलमा) सुनाने के लिए कहा। जब वह नहीं सुना पाए, तो उन्होंने उनके सिर, कान के पीछे और पीठ में तीन गोलियां मार दीं।" हमले में पुणे के व्यापारी संतोष जगदाले और कौस्तुभ गणबोटे की जान चली गई।