अब 45 दिन तक ही सुरक्षित रखे जाएंगे चुनाव के वीडियो और फोटो, आयोग ने घटाया समय

पहले के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नामांकन पूर्व की फुटेज 3 महीने तक और नामांकन, प्रचार, मतदान (भीतर-बाहर) और मतगणना की रिकॉर्डिंग 6 महीने से 1 साल तक सुरक्षित रखी जाती थी।;

Update: 2025-06-20 02:47 GMT
चुनाव आयोग की दलील है कि चुनाव प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कानून द्वारा अनिवार्य नहीं है

चुनाव आयोग ने मतदान प्रक्रिया से जुड़े वीडियो फुटेज और फोटो को सुरक्षित रखने की समयसीमा को संशोधित कर दिया है। अब इस अवधि को घटाकर 45 दिन कर दिया गया है। यह फैसला चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद लागू होगा और अगर इस अवधि के दौरान कोई चुनाव याचिका दायर नहीं की जाती है, तो डेटा को नष्ट किया जा सकता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आयोग ने यह निर्णय सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को 30 मई को भेजे पत्र के माध्यम से बताया, जिसमें इस प्रकार की सामग्री के हालिया दुरुपयोग का हवाला दिया गया।

चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कानून द्वारा अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह केवल आंतरिक प्रबंधन का एक उपकरण मात्र है। आयोग ने लिखा, “हाल के समय में गैर-उम्मीदवारों द्वारा इन सामग्रियों के दुरुपयोग की घटनाएं सामने आई हैं, जहां सोशल मीडिया पर इन्हें तोड़-मरोड़कर, संदर्भ से हटाकर प्रसारित किया गया, जिससे गलत सूचनाएं और दुर्भावनापूर्ण नैरेटिव फैलाए गए। इसका कोई कानूनी परिणाम नहीं निकलता, इसलिए समीक्षा करना आवश्यक था।”

पुराने नियमों में बदलाव

यह नया फैसला 6 सितंबर 2024 को जारी पहले के दिशा-निर्देशों से हटकर है, जिनमें चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की वीडियो फुटेज को 3 महीने से 1 साल तक संरक्षित रखने की समय सीमा तय की गई थी।

पहले के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नामांकन पूर्व की फुटेज 3 महीने तक और नामांकन, प्रचार, मतदान (भीतर-बाहर) और मतगणना की रिकॉर्डिंग  6 महीने से 1 साल तक सुरक्षित रखी जाती थी।

EC के सूत्रों के अनुसार, नए निर्देशों में अब फुटेज संग्रह की अवधि को चुनावी याचिका दाखिल करने की 45-दिवसीय समयसीमा के साथ जोड़ा गया है। यदि कोई याचिका दायर की जाती है, तो फुटेज को मुकदमे के अंतिम निर्णय तक सुरक्षित रखा जाएगा।

चुनाव प्रक्रिया के दौरान ईवीएम की जांच, संग्रहण, मतदान और मतगणना के दिन पर उसकी आवाजाही और अंतिम परिणाम की गणना, ये सब कुछ वीडियो और फोटोग्राफी के ज़रिए रिकॉर्ड किया जाता है। मतदान केंद्रों के भीतर की प्रक्रिया की निगरानी लाइव वेबकास्टिंग से की जाती है।

चुनावी प्रचार गतिविधियों की रिकॉर्डिंग उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघनों की पहचान के लिए की जाती है।

दूसरा बड़ा बदलाव

यह CCTV फुटेज को लेकर चुनाव आयोग द्वारा हाल के महीनों में किया गया दूसरा बड़ा बदलाव है। दिसंबर 2024 में, सरकार ने "चुनाव संचालन नियम, 1961" के नियम 93(2)(a) में संशोधन किया, जिससे अब आम जनता के लिए चुनाव की वीडियो फुटेज तक पहुंच सीमित हो गई है।

पहले नियम में कहा गया था, “चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज़ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे।” संशोधित नियम में कहा गया, “इन नियमों में निर्दिष्ट सभी दस्तावेज़ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे।”

EC के सूत्रों ने बताया कि यह संशोधन स्पष्ट करता है कि चुनावी प्रक्रिया की इलेक्ट्रॉनिक फुटेज को चुनावी दस्तावेज़ की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है, अतः वह सार्वजनिक अवलोकन के लिए उपलब्ध नहीं होगी।

गोपनीयता और AI से दुरुपयोग की आशंका

CCTV फुटेज को सार्वजनिक करने से मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन और AI के ज़रिए इसके संभावित दुरुपयोग की आशंका है। यह संशोधन उस समय हुआ जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने वकील महमूद प्राचा की याचिका पर हरियाणा विधानसभा चुनाव की वीडियो और दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।

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