Right to Cool : देश की अदृश्य श्रमिक आबादी को कभी मिलेगी पेड हीट लीव?

दिल्ली के 80% से अधिक मजदूर, जिनमें रेहड़ी-पटरी वाले, निर्माण मजदूर और रैगपिकर शामिल हैं, भीषण गर्मी से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम और आय की हानि का सामना कर रहे हैं।;

Update: 2025-04-20 13:16 GMT
जलवायु विशेषज्ञों ने भारत की असंगठित श्रमिक आबादी को भीषण गर्मी में 'ठंडक का अधिकार' (Right to Cool) को कानूनी मान्यता देने की मांग उठाई है

दिल्ली के 80 प्रतिशत से अधिक मजदूर, जिनमें रेहड़ी-पटरी वाले, निर्माण श्रमिक और रैगपिकर शामिल हैं, अत्यधिक गर्मी के कारण गंभीर स्वास्थ्य जोखिम और आय की हानि का सामना कर रहे हैं।

जलवायु विशेषज्ञों ने भारत की असंगठित श्रमिक आबादी को गर्मियों की चरम परिस्थितियों से बचाने के लिए तत्काल उपायों की सिफारिश की है, जिनमें पेड हीट लीव, मजदूर केंद्रों पर फ्री वॉटर एटीएम, और 'ठंडक का अधिकार' (Right to Cool) को कानूनी मान्यता देना शामिल है।

विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के 80 प्रतिशत से अधिक श्रमिक—जैसे कि स्ट्रीट वेंडर्स, कंस्ट्रक्शन लेबर और कचरा बीनने वाले—गंभीर स्वास्थ्य खतरों और आय की हानि का सामना करते हैं। इनमें महिलाएं विशेष रूप से ज्यादा प्रभावित होती हैं।

ग्रीनपीस इंडिया की कैंपेनर अमृता ने कहा कि “हीट वेव” अब सिर्फ मौसम की घटना नहीं रह गई है, यह उन लोगों के लिए एक आपदा बन चुकी है जिनके पास न तो छांव है, न पानी, न ही आराम करने की जगह।

ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट में पाया गया कि हीटवेव के दौरान 61 प्रतिशत स्ट्रीट वेंडर्स को अपनी दैनिक आय का 40 प्रतिशत से अधिक नुकसान हुआ, और 75 प्रतिशत के पास कार्यस्थल के पास कोई कूलिंग सुविधा नहीं थी।

एनवायरनमेंटल डिफेंस फंड - इंडिया के चीफ एडवाइज़र हिशाम मुंडोल ने कहा कि असंगठित श्रमिक हीट वेव का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। डिहाइड्रेशन, हीटस्ट्रोक और किडनी डैमेज जैसी बीमारियों के बढ़ते मामलों से यह स्पष्ट होता है कि तुरंत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अप्रैल से जून के बीच उत्तर-पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत के बड़े हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान की भविष्यवाणी की है। इस गर्मी में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी और पश्चिमी एमपी में सामान्य से अधिक हीटवेव दिनों की चेतावनी दी गई है।

दिल्ली में अप्रैल 2024 में ही 7 हीटवेव दिन रिकॉर्ड किए गए, जबकि सामान्यतः यह औसत 2-3 होता है।

भारत में 82 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं असंगठित क्षेत्र में हैं, इसलिए जेंडर-उत्तरदायी शहरी योजना (Gender-responsive urban planning) बेहद जरूरी है।

अमृता ने कहा कि महिलाएं कई स्तरों पर जोखिम झेलती हैं — जैसे कि छांव रहित वेंडिंग ज़ोन, असुरक्षित टॉयलेट्स, और देखभाल की जिम्मेदारी।

उन्होंने कहा, “जेंडर-सेंसिटिव शहरी योजना में फ्री सार्वजनिक शौचालय, पानी और स्वच्छता की सुविधा, सुरक्षित विश्राम स्थल और ट्रांसपोर्ट हब्स के पास छांव जैसी व्यवस्थाएं शामिल हो सकती हैं। एक फेमिनिस्ट प्लानिंग दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक परिवहन में शुरुआत से अंत तक की कनेक्टिविटी सुरक्षित और गरिमापूर्ण हो।”

मुंडोल ने कहा कि शहरी योजना में सुधार की ज़रूरत तो सभी के लिए है, लेकिन यह भी सच है कि महिलाओं की परिस्थितियां उन्हें विशेष रूप से प्रभावित करती हैं।

प्रदीप शाह, जो Grow-Trees.com के सह-संस्थापक हैं, ने कहा कि जेंडर-डिसएग्रीगेटेड डेटा के साथ प्लानिंग से बच्चों के लिए अनुकूल कार्यस्थल और अधिक सुरक्षित वातावरण तैयार किया जा सकता है।

हालांकि 2019 की India Cooling Action Plan ने "कूलिंग" को विकासात्मक जरूरत माना है, लेकिन विशेषज्ञों ने कहा कि यह सभी तक समान पहुंच सुनिश्चित करने में असफल रही है।

अमृता ने कहा, “ठंडक तक पहुंच को एक मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए। अनुच्छेद 21 के तहत ‘Right to Cool’ को मान्यता देने से छांव वाले बस स्टॉप्स, कूलिंग शेल्टर और थर्मल कम्फर्ट सभी के लिए अनिवार्य होंगे।”

मुंडोल ने कहा कि शहर स्तर पर Heat Action Plans की ज़रूरत है जिनमें अनिवार्य paid leave, पानी की व्यवस्था और शीतलन शेल्टर जैसी बातें स्पष्ट रूप से लागू की जाएं।

तत्काल समाधान जो विशेषज्ञों ने सुझाए: अधिक ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में हीट-रिफ्लेक्टिव सामग्री से बनी छांव लगाना, श्रमिक केंद्रों के पास फ्री वॉटर एटीएम स्थापित करना, फर्स्ट-एड और पंखों से लैस मोबाइल कूलिंग स्टेशन तैनात करना, सार्वजनिक पार्कों को 24x7 खुला रखना, ताकि जिनके पास कोई आश्रय नहीं है, वे वहां ठंडक पा सकें और हीटवेव को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना, जिससे आपातकालीन फंड और मुआवजा योजनाएं लागू हो सकें

अमृता ने कहा, “कानूनी ढांचा अब जलवायु न्याय (climate justice) को शामिल करे ताकि असंगठित श्रमिक पीछे न छूट जाएं।” मुंडोल ने कहा, “जलवायु न्याय का अर्थ है कि उन लोगों का समर्थन किया जाए जो जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि ग्रीन ज़ोन, छांव, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं कोई विलासिता नहीं, बल्कि जरूरत हैं, और इन्हें वहां पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए जहां असंगठित श्रमिकों की संख्या अधिक हो।

हाइपरलोकल क्लाइमेट रिस्क मैपिंग और सामुदायिक सहभागिता से योजना बनाने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया गया।

अमृता ने कहा कि वार्ड स्तर पर क्लाइमेट प्लानिंग, जिसमें सीधे समुदाय की भागीदारी हो, अधिक समावेशी और टिकाऊ शहरी वातावरण तैयार कर सकती है।

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