SEBI की पूर्व प्रमुख मधाबी पुरी बुच के खिलाफ लोकपाल ने खारिज की सभी शिकायतेें
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि “शिकायतकर्ता जो चाह रहे हैं वह केवल एक बिना आधार वाली, अविश्वसनीय और निरर्थक जांच है।”;
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व चेयरपर्सन मधाबी पुरी बुच के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जुड़ी शिकायतों को लोकपाल ने खारिज कर दिया है। लोकपाल ने उन शिकायतों को काल्पनिक, अप्रमाणित और सत्यापन योग्य साक्ष्यों से रहित बताकर खारिज कर दिया।
मधाबी पुरी बुच ने 2 मार्च 2022 से लेकर 28 फरवरी 2025 तक सेबी प्रमुख के रूप में कार्य किया। लोकपाल ने कहा कि बुच के खिलाफ जांच शुरू करने का कोई विश्वसनीय आधार नहीं है। आदेश में कहा गया, “हमने निष्कर्ष निकाला है कि शिकायतों में लगाए गए आरोप केवल पूर्वधारणाओं और अनुमान पर आधारित हैं। वे किसी भी सत्यापन योग्य सामग्री से समर्थित नहीं हैं और 1988 अधिनियम के खंड III के अंतर्गत अपराधों के तत्वों को नहीं दर्शाते हैं। अतः जांच के आदेश देने का कोई औचित्य नहीं बनता, इसलिए इन शिकायतों को निस्तारित किया जाता है।”
आदेश में आगे लिखा गया, “शिकायतकर्ताओं ने जानबूझकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट से स्वतंत्र आरोप स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन हमारे विश्लेषण में वे अस्थिर, अप्रमाणित और निराधार पाए गए।”
यह निर्णय 28 मई को न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाया गया।
जांचे गए पाँच प्रमुख आरोप
लोकपाल ने बुच के खिलाफ पाँच प्रमुख आरोपों की समीक्षा की-
1. बुच और उनके पति धवल बुच द्वारा कथित रूप से अडानी समूह से जुड़े किसी फंड में निवेश।
2. महिंद्रा एंड महिंद्रा और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों से कथित परामर्श शुल्क प्राप्त करना।
3. वॉकहार्ट से किराये की आय, जिसे 'लेन-देन के बदले लाभ' (quid pro quo) के रूप में देखा गया।
4. 2017 से 2024 के बीच ICICI बैंक के ESOPs की बिक्री से लाभ।
5. महिंद्रा और ब्लैकस्टोन से संबंधित मामलों से स्वयं को अलग बताने के बावजूद कथित रूप से शामिल रहना।
लेकिन लोकपाल ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया।
आदेश में कहा गया, “शिकायतकर्ताओं ने बिना किसी पुष्टि के केवल सनसनी फैलाने या राजनीतिकरण करने के उद्देश्य से आरोप लगाए हैं, जिससे लोकपाल की प्रक्रिया का महत्व कम हुआ है। यह दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही है, जो 2013 अधिनियम की धारा 46 के अंतर्गत दंडनीय है।”
शिकायत करने वाले कौन-कौन थे?
प्रमुख शिकायतकर्ता में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा भी थीं। शिकायतों का आधार मुख्यत हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट थी, जिसमें बुच और उनके पति के विदेशी फंडों में कथित हिस्सेदारी का जिक्र था।
लोकपाल ने स्पष्ट किया कि केवल रिपोर्ट को कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जा सकता। बुच और उनके पति ने आरोपों को छवि धूमिल करने और सेबी की साख गिराने की कोशिश बताया था। अडानी समूह ने भी रिपोर्ट को दुर्भावनापूर्ण और भ्रामक बताया था।
इस मामले में कब, क्या हुआ?
8 नवंबर 2024 को लोकपाल ने बुच से जवाब मांगा।
7 दिसंबर 2024 को बुच ने हलफनामा दायर किया और प्रारंभिक आपत्तियाँ उठाईं।
19 दिसंबर 2024 को मौखिक सुनवाई हुई।
9 अप्रैल 2025 को पुनः मौखिक बहस हुई, जहाँ शिकायतकर्ताओं और बचाव पक्ष ने अपने तर्क रखे।
बुच की ओर से एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने उनका प्रतिनिधित्व किया। अंतिम निर्णय सुनाने से पहले लिखित तर्कों को भी स्वीकार किया गया।
लोकपाल के आदेश में कहा गया है कि, “शिकायतकर्ता जो चाह रहे हैं वह केवल एक बिना आधार वाली, अविश्वसनीय और निरर्थक जांच है।” इस फैसले के साथ ही मधाबी पुरी बुच के खिलाफ लगे सभी आरोपों का अंत हो गया है और यह पुष्टि हुई कि उनके खिलाफ कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है।