संसद में व्यवधान पर शाह और रिजिजू की चिंता, विपक्ष से की आत्ममंथन की अपील
भारत की लोकतांत्रिक परंपरा का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से सत्ता परिवर्तन कभी हिंसक नहीं रहा। यदि संसद और विधानसभाएँ सही तरीके से काम नहीं करेंगी, तो लोकतंत्र पर ही सवाल उठेंगे।;
By : The Federal
Update: 2025-08-24 11:52 GMT
Amit Shah and Kiren Rijiju : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद और राज्य विधानसभाओं में बार-बार होने वाले व्यवधानों पर गहरी चिंता जताई और कहा कि विपक्ष के नाम पर लगातार गतिरोध लोकतंत्र को कमजोर करता है। उन्होंने विपक्ष से आग्रह किया कि असहमति और अवरोध (dissent और obstruction) के बीच स्पष्ट रेखा खींची जाए।
नई दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय विधानमंडल अध्यक्षों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए शाह ने कहा,
“लोकतंत्र में बहस जरूरी है। लेकिन यदि विपक्ष के नाम पर सदन को चलने ही नहीं दिया जाता और यह केवल संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए होता है, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।”
उन्होंने जोर दिया कि संसद और विधानसभाएँ संवाद का मंच हैं, न कि रोज़ाना के गतिरोध का।
“अगर दिन-प्रतिदिन, सत्र-दर-सत्र सदन को चलने नहीं दिया जाएगा, तो यह स्थिति देश, जनता और प्रतिनिधियों—सभी के लिए चिंतन का विषय है,” शाह ने कहा।
महाभारत का उदाहरण
अमित शाह ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए महाभारत का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हस्तिनापुर में द्रौपदी का अपमान हुआ था, उसी तरह जब-जब सदन की गरिमा को ठेस पहुँचती है, इतिहास में उसके गंभीर परिणाम सामने आए हैं।
शाह ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से आग्रह किया कि वे अध्यक्ष की निष्पक्षता का सम्मान करें और बहस को सार्थक बनाएं।
“हमें ऐसा मंच देना चाहिए, जहाँ जनता की समस्याएँ बिना पक्षपात के उठाई जा सकें। सरकार और विपक्ष—दोनों की दलीलें निष्पक्ष होनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
लोकतंत्र की विशेषता – बिना रक्तपात के सत्ता परिवर्तन
भारत की लोकतांत्रिक यात्रा को अद्वितीय बताते हुए शाह ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से आज तक सत्ता परिवर्तन कभी भी हिंसा का कारण नहीं बना। “हमारी जड़ें इतनी गहरी हैं कि सत्ता परिवर्तन के दौरान खून की एक बूंद भी नहीं गिरी। यह हमारी सबसे बड़ी ताकत है,” शाह ने कहा।
इस अवसर पर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में केंद्रीय विधानमंडल के पहले निर्वाचित अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल को भी श्रद्धांजलि दी।
“यदि स्वतंत्रता संग्राम महत्वपूर्ण था, तो संसदीय प्रक्रियाओं की स्थापना भी उतनी ही जरूरी थी। कठिन परिस्थितियों में भी लोकतंत्र को मजबूत करने में विट्ठलभाई पटेल की भूमिका बेहद अहम रही,” उन्होंने कहा।
रिजिजू: सवाल उठाना अधिकार है, बाधा डालना नहीं
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी सम्मेलन में शाह की बातों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि सरकार से सवाल पूछना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन संसद की कार्यवाही रोकना उचित नहीं।
रिजिजू ने कहा,
“संसदीय लोकतंत्र में संसद और विधानसभाएँ केंद्र बिंदु होती हैं। यदि ये सही तरीके से काम नहीं करेंगी, तो लोकतंत्र पर सवाल उठेंगे।”
उन्होंने माना कि सदन में मतभेद स्वाभाविक हैं क्योंकि विभिन्न दृष्टिकोण रखने वाले लोग साथ बैठते हैं। लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि सकारात्मक विपक्ष और जानबूझकर अवरोध के बीच फर्क बनाए रखना जरूरी है।
विट्ठलभाई पटेल की विरासत को नमन
दो दिवसीय इस सम्मेलन की मेजबानी दिल्ली विधानसभा ने की। इस अवसर पर ‘द ग्लोरियस सागा ऑफ विट्ठलभाई पटेल’ नामक विशेष डाक टिकट जारी किया गया।
साथ ही, उनके जीवन पर आधारित प्रदर्शनी और वृत्तचित्र भी 26 से 31 अगस्त तक जनता के लिए खुले रहेंगे। सम्मेलन का समापन सोमवार को होगा, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला करेंगे।
(एजेंसी इनपुट के साथ)