राष्ट्रपति - राज्यपालों द्वारा बिलों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय करने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ (जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी. एस. नरसिम्हा और ए. एस. चंदुरकर शामिल थे) ने 19 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी.;

Update: 2025-09-11 10:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 10 दिन तक चली सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. यह मामला राष्ट्रपति के रेफ़रेंस से जुड़ा है, जिसमें पूछा गया था कि क्या संवैधानिक अदालत राज्य विधानसभाओं से पास हुए बिलों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समय-सीमा तय कर सकती है.

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ (जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी. एस. नरसिम्हा और ए. एस. चंदुरकर शामिल थे) ने 19 अगस्त से सुनवाई शुरू की थी. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की दलीलों के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया. 

सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति रेफ़रेंस पर सुनवाई के दौरान गवर्नर और राष्ट्रपति द्वारा बिलों पर फैसला लेने की समयसीमा तय करने का मुद्दा कई मौकों पर उठा. इस दौरान जजों की कुछ टिप्पणियों ने विपक्ष-शासित राज्यों को चौकन्ना कर दिया.

तमिलनाडु की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी और पश्चिम बंगाल की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील दी कि गवर्नर और राष्ट्रपति अनिश्चितकाल तक बिल अटका नहीं सकते. उन्होंने कहा कि गवर्नर "गणतंत्र में किसी राजा" की तरह व्यवहार नहीं कर सकते और उन्हें संविधान के तहत तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा ने सुनवाई के दौरान कहा कि सभी मामलों के लिए एक तय समयसीमा लागू करना मुश्किल होगा और इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ सकता है. उन्होंने पूछा—“अगर समयसीमा तय हो जाए और उसका पालन न हो तो क्या होगा?” जस्टिस विक्रम नाथ ने भी कहा कि संविधान में पहले से ही लिखा है कि गवर्नर को बिल पर "जितनी जल्दी हो सके" फैसला करना चाहिए. लेकिन सिंघवी ने जवाब दिया कि यह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है, क्योंकि व्यवहार में गवर्नर अक्सर फैसले में देर करते हैं.

जजों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या हर बिल के लिए एक जैसी समयसीमा तय करना उचित होगा, क्योंकि अलग-अलग परिस्थितियों में अलग समय की ज़रूरत पड़ सकती है. उन्होंने सुझाव दिया कि अदालत को व्यक्तिगत मामलों के आधार पर फैसला करना चाहिए, न कि सभी बिलों के लिए एक सामान्य समयसीमा थोपनी चाहिए. सुनवाई के अंत में मुख्य न्यायाधीश ने दोहराया कि क्या सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत गवर्नर और राष्ट्रपति पर समयसीमा तय करने का अधिकार है? 

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