वक्फ एक्ट पर कोर्ट ने दी याचिकाकर्ताओं को राहत, सरकार को मिली खुली छूट

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर तीन प्रावधानों पर रोक लगाई। मुस्लिमों को आंशिक राहत मिली, लेकिन सरकार को कई मामलों में छूट बरकरार रही।;

Update: 2025-09-16 01:09 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में संसद द्वारा पारित विवादित वक्फ संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है। यह फैसला याचिकाकर्ताओं को आंशिक राहत तो देता है, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार को वक्फ संपत्तियों के राजनीतिक मुद्दे को आगे बढ़ाने का पर्याप्त अवसर भी प्रदान करता है।

आंशिक लेकिन अहम राहत

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को पूरे कानून पर रोक देने की मांग ठुकरा दी। अदालत ने दोहराया कि किसी भी कानून के संवैधानिक होने की ‘पूर्व-धारणा’ रहती है। इसके बावजूद अदालत ने तीन प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाई, जो मुस्लिम समुदाय और याचिकाकर्ताओं के लिए अहम राहत है।

किन प्रावधानों को चुनौती मिली?

याचिकाकर्ताओं ने आठ प्रमुख प्रावधानों पर आपत्ति जताई थी। इनमें शामिल थे:

‘वक्फ बाय यूज़र’ श्रेणी को खत्म करना

राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति

सभी वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य करना

वक्फ बनाने वालों के लिए शर्तें तय करना, जिनमें यह अजीब शर्त भी थी कि मुस्लिम को वक्फ बनाने के लिए यह साबित करना होगा कि वह कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है

कलेक्टर या सरकारी अधिकारी को वक्फ संपत्ति विवादों का निपटारा करने की शक्ति देना

संरक्षित स्मारकों में इस्लामिक धार्मिक गतिविधियों पर रोक

अनुसूचित क्षेत्रों (अनुसूची-5 और 6) में वक्फ बनाने की मनाही

पांच साल की शर्त पर रोक

सबसे विवादास्पद प्रावधान था – धारा 3 (r) – जिसमें मुस्लिम को वक्फ बनाने के लिए यह साबित करना होता कि वह पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा है। अदालत ने कहा कि इस शर्त की जांच के लिए कोई व्यवस्था या प्रक्रिया मौजूद नहीं है, इसलिए इसे तत्काल लागू नहीं किया जा सकता। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार भविष्य में नियम बनाकर इस प्रावधान को फिर से लागू कर सकती है।

गैर-मुस्लिमों द्वारा वक्फ पर रोक

अदालत ने केंद्र की इस दलील को मान लिया कि गैर-मुस्लिम वक्फ नहीं बना सकते। पुराने वक्फ अधिनियम (1954) में यह प्रावधान था, लेकिन संशोधित कानून ने इसे हटा दिया। आलोचकों का कहना था कि यह नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकार का उल्लंघन है। लेकिन अदालत ने कहा कि खुद याचिकाकर्ता मानते हैं कि वक्फ इस्लाम धर्म विशेष की व्यवस्था है, ऐसे में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बनाने की अनुमति देना तार्किक नहीं।

कलेक्टर की शक्तियों पर रोक

सबसे अहम राहत अदालत ने उस प्रावधान पर दी, जिसमें कलेक्टर या सरकारी अधिकारी को वक्फ संपत्ति विवाद निपटाने की शक्ति दी गई थी। अदालत ने कहा कि यह प्राकृतिक न्याय और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है। सरकार खुद पक्षकार भी है और उसी के अधिकारी को विवाद सुलझाने का अधिकार देना न्यायसंगत नहीं। इस प्रावधान पर अदालत ने रोक लगा दी।

संरक्षित स्मारक और आदिवासी क्षेत्र

अदालत ने धारा 3(D) और 3(E) को सही ठहराया –

संरक्षित स्मारकों को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता।

अनुसूचित क्षेत्रों (अनुसूची-5 और 6) में वक्फ बनाने की अनुमति नहीं होगी।

यह याचिकाकर्ताओं के लिए बड़ी हार साबित हुई। आलोचकों का कहना है कि व्यवहार में मुसलमानों को ऐसे कई ऐतिहासिक मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने से रोका जाता है, जिन्हें स्मारक घोषित किया गया है। वहीं आदिवासी मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों पर भी असर पड़ता है।

वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी

अदालत ने आंशिक राहत देते हुए कहा कि  केंद्रीय वक्फ परिषद (22 सदस्यीय) में अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। राज्य वक्फ बोर्ड (11 सदस्यीय) में अधिकतम 3 गैर-मुस्लिम सदस्य होंगे।हालांकि, राज्य वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति को लेकर अदालत ने केवल यह कहा कि “जहां तक संभव हो, मुस्लिम सीईओ नियुक्त किया जाए”। यानी सरकार चाहे तो गैर-मुस्लिम सीईओ भी नियुक्त कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम समुदाय को कुछ महत्वपूर्ण राहत देता है, लेकिन कई मुद्दों पर सरकार को खुली छूट भी छोड़ता है। खासकर पांच साल की शर्त और वक्फ संपत्ति विवादों में सरकारी दखल की संभावना बनी हुई है। साथ ही संरक्षित स्मारक और आदिवासी क्षेत्रों पर दिए गए निर्णय से भविष्य में बड़े कानूनी और राजनीतिक विवाद खड़े हो सकते हैं।

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