सुप्रीम कोर्ट की NCPCR को फटकार; याचिका की खारिज, कहा-'हमें अपने एजेंडे में न घसीटें'
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को अपने एजेंडे में न्यायपालिका को शामिल करने के खिलाफ चेतावनी दी.
Supreme Court warned NCPCR: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को अपने "एजेंडे" में न्यायपालिका को शामिल करने के खिलाफ चेतावनी दी. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने झारखंड में आश्रय गृहों द्वारा बच्चों को बेचे जाने के आरोपों की विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच की मांग करने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया.
बता दें कि इन आश्रय गृहों को मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित किया जाता है. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस नोंगमईकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने एनसीपीसीआर के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा कि याचिका में मांगी गई राहत "अस्पष्ट" और "सर्वव्यापी" है, जिससे अदालत के लिए इसे संबोधित करना असहनीय हो जाता है.
पीठ ने टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट को अपने एजेंडे में न घसीटें. आपकी याचिका में किस तरह की राहत मांगी गई है? हम इस तरह के निर्देश कैसे दे सकते हैं? याचिका पूरी तरह से गलत है. बता दें कि एनसीपीसीआर के वकील ने शुरू में झारखंड के सभी आश्रय गृहों की अदालत की निगरानी में समयबद्ध जांच का अनुरोध किया था, जिसका उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था.
झारखंड में बाल अधिकारों के गंभीर उल्लंघन को उजागर करते हुए NCPCR ने राज्य के अधिकारियों पर नाबालिगों की सुरक्षा के प्रति "उदासीन दृष्टिकोण" अपनाने का आरोप लगाया. NCPCR ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई पूछताछ के दौरान पीड़ितों द्वारा चौंकाने वाले खुलासे किए गए, जिसमें यह भी शामिल है कि इन घरों में बच्चों को बेचा जा रहा था. इन तथ्यों को झारखंड सरकार के संज्ञान में लाने के बावजूद, जांच को विफल करने और पटरी से उतारने के लगातार प्रयास किए गए.
हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि NCPCR के पास बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत जांच करने और कार्रवाई करने का अधिकार है और इस प्रकार न्यायिक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है. पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और उसे खारिज कर दिया.
साल 2020 में दायर NCPCR की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग की गई, जो मानव तस्करी को रोकता है. आयोग ने दावा किया कि झारखंड सहित विभिन्न राज्यों में बाल गृहों में विसंगतियां उसकी जांच के दौरान उजागर हुई थीं और इन राज्यों को याचिका में पक्षकार के रूप में जोड़ा गया था.