MGNREGA का नाम बदलकर VB-RaM G करने का प्रस्ताव, फंडिंग पैटर्न में भी बड़ा बदलाव
MGNREGA की शुरुआत 7 सितंबर 2005 को हुई थी। फरवरी 2006 से यह योजना 200 जिलों में लागू हुई। 2007-08 में इसे अतिरिक्त 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 1 अप्रैल 2008 से पूरे देश में लागू हो गया, सिवाय उन जिलों के जिनकी जनसंख्या 100% शहरी है।
MGNREGA: केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार की प्रमुख योजना 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)' में बदलाव का प्रस्ताव रखा है। प्रस्तावित बदलावों के तहत योजना का नाम बदलकर 'विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार और अजीविका मिशन (ग्रामीण)' या 'VB-RaM G' रखा जाएगा। इसके अलावा, अब योजना के तहत काम के अनिवार्य दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 दिन की जाएगी। साथ ही, केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय साझेदारी के पैटर्न में भी बदलाव किया गया है। वर्तमान में केंद्र अधिकतम 90% और राज्य 10% खर्च वहन करते हैं, जबकि नए प्रस्ताव में यह अनुपात 60:40 होगा।
केंद्र और राज्यों को नई शक्तियां
प्रस्तावित ड्राफ्ट बिल के अनुसार, केंद्र यह तय करेगा कि योजना देश के किन हिस्सों में लागू होगी। वहीं, राज्यों को यह अधिकार होगा कि वे किसी भी वर्ष में दो महीने के लिए योजना को निलंबित कर सकें, खासकर फसल बोने और काटने के समय। ड्राफ्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारें वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिन (दो महीने) की अवधि पूर्व-नियोजित रूप से सूचित करेंगी, जिसमें अधिनियम के तहत कोई कार्य नहीं किया जाएगा।
मजदूरी सुरक्षा पर असर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि MGNREGA की सबसे बड़ी उपलब्धि न्यूनतम मजदूरी को वास्तविकता में बदलना थी। ड्राफ्ट बिल के बदलावों से यह अधिकार कमजोर होगा और कृषि मजदूरों का शोषण बढ़ सकता है। ड्राफ्ट बिल में NREGA के सभी कानूनी अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं और इसे अब केवल आबंटन-आधारित योजना में बदल दिया गया है।
वित्तीय प्रावधान
ड्राफ्ट बिल में कहा गया है कि योजना के तहत खर्च कर्मचारी उपस्थितियों, मजदूरी दर और सामग्री व प्रशासनिक खर्च पर निर्भर करेगा। ड्राफ्ट के अनुसार, यदि यह कानून पूरे देश में लागू होता है तो सालाना अनुमानित खर्च ₹1,51,282 करोड़ होगा, जिसमें केंद्र का हिस्सा ₹95,692.31 करोड़ होगा। वर्तमान में MGNREGA की मजदूरी का 100% खर्च केंद्र वहन करता है, जबकि सामग्री का 75% केंद्र और 25% राज्य वहन करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आज राजस्थान जैसे राज्य में MGNREGA का कुल वार्षिक खर्च लगभग ₹10,000 करोड़ है। नए फंडिंग पैटर्न के तहत क्या राज्य इसका 40% खर्च उठाएंगे?
प्रावधानों में कमजोरियां
आलोचकों का कहना है कि ड्राफ्ट बिल में MGNREGA में ठेकेदारों के उपयोग पर रोक कमजोर की गई है। योजना के तहत किए जाने वाले कार्यों पर नियंत्रण राज्यों से केंद्र को स्थानांतरित कर दिया गया है। बेरोजगारों के घर से 5 किलोमीटर के भीतर कार्य की गारंटी कमजोर हुई है। बेरोजगारी भत्ता और भुगतान में देरी की क्षतिपूर्ति पूरी तरह से राज्य सरकारों पर छोड़ दी गई है।
सरकार का तर्क
सरकार का कहना है कि बदलावों की आवश्यकता ग्रामीण विकास के लिए एकीकृत और समग्र दृष्टिकोण स्थापित करने के लिए है। ड्राफ्ट में कहा गया है कि ग्रामीण बुनियादी ढांचे का निर्माण सुसंगत और भविष्य उन्मुख दृष्टिकोण के तहत किया जाएगा और संसाधनों का वितरण निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ मानदंडों पर होगा। बिल केंद्र को यह अधिकार देगा कि वह राज्यों को मानक आबंटन करे और अनुमोदित सीमा से अधिक खर्च राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाएगा।
MGNREGA का इतिहास
MGNREGA की शुरुआत 7 सितंबर 2005 को हुई थी। फरवरी 2006 से यह योजना 200 जिलों में लागू हुई। 2007-08 में इसे अतिरिक्त 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 1 अप्रैल 2008 से पूरे देश में लागू हो गया, सिवाय उन जिलों के जिनकी जनसंख्या 100% शहरी है।