गर्मी अब भी लग रही लेकिन पिछले दशक ने भारत को झुलसा दिया, द लैंसेट का दावा
'COP29' से पहले प्रकाशित इस रिपोर्ट में देश-वार आकलन किया गया है कि जलवायु परिवर्तन लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित कर रहा है।
Heatwaves in India: अगर आप की उम्र 40 वर्ष है तो मौसम चक्र में इतना बदलाव 30 साल पहले तक नहीं देखा होगा। भारत में मोटे तौर पर तीन तरह का मौसम चक्र है। गर्मी, बारिश और ठंड(weather cycle in India)। लेकिन अब देखा जा रहा है कि मौसम चक्र में बदलाव हो रहा है। आज से महज 30 साल पहले तक अक्टूबर के महीने में रजाइयां निकल जाया करती थीं। लेकिन अब अक्टूबर और नवंबर महीने के आधे दिन तक पंखा चलाना पड़ता है। यानी कि ना सिर्फ गर्मी बढ़ी है बल्कि गर्मी वाले दिनों की संख्या में इजाफा हुआ है। जलवायु (Climate Change) के इस व्यवहार को समझने के लिए दुनिया भर की सरकारें, संस्थाएं चिंतित हैं। लेकिन जमीन पर नतीजा सकारात्मक कम नजर आता है। इन सबके बीच द लैंसेट(The Lancet Report) की रिपोर्ट आई है जो पिछले दशक में हुए मौसमी बदलाव की कहानी बयां करती है।
बुजुर्गों और बच्चों पर असर
स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर द लैंसेट काउंटडाउन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में भारत में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के शिशुओं और वयस्कों को हर साल औसतन आठ दिनों तक गर्म हवा का सामना करना पड़ा, जो 1990-1999 की तुलना में शिशुओं के लिए 47 प्रतिशत और वृद्धों के लिए 58 प्रतिशत की वृद्धि है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World meteorological organization) सहित वैश्विक स्तर पर 57 शैक्षणिक संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के 122 विशेषज्ञों के काम को प्रतिबिंबित करने वाली आठवीं वार्षिक रिपोर्ट में पाया गया कि अकेले 2023 में, भारत में लोग टहलने जैसी हल्की बाहरी गतिविधियां करते समय लगभग 2,400 घंटे या 100 दिनों के लिए ताप तनाव के मध्यम या उच्च जोखिम के संपर्क में पाए जाएंगे।
कॉप 29 सम्मेलन
29वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन या 'कॉप29' से पहले प्रकाशित इस रिपोर्ट में देशवार आकलन प्रस्तुत किया गया है कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।इसमें दिखाया गया कि वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य को होने वाले खतरों पर नज़र रखने में मदद करने वाले 15 संकेतकों में से 10, जिनमें रात के समय तापमान में वृद्धि और अत्यधिक वर्षा शामिल है, चिंताजनक नए रिकॉर्ड पर पहुंच गए हैं।
गर्म मौसम से होगा बड़ा नुकसान
इसके अलावा, भारत में गर्मी के आर्थिक प्रभावों का आकलन करते हुए, रिपोर्ट में पाया गया कि 2023 में श्रम की कम क्षमता के कारण संभावित आय हानि से कृषि क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होगा - संभावित नुकसान 71.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होगा। कुल मिलाकर, 2023 में भारत में गर्मी के कारण लगभग 181 बिलियन श्रम घंटों की संभावित हानि होगी - जो 1990-1999 के दौरान हुई हानि से 50 प्रतिशत अधिक है।लेखकों ने कहा कि यह रिपोर्ट स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों का सबसे अद्यतन आकलन प्रस्तुत करती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरे चिंताजनक स्तर पर पहुंच गए हैं, ऐसे में लेखक सरकारों और कंपनियों की आलोचना कर रहे हैं जो जीवाश्म ईंधन में निवेश करके, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचाकर तथा अनुकूलन में वर्षों की देरी करके "आग में घी डालने" का काम जारी रखे हुए हैं, जिससे दुनिया भर में लोगों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है।
स्वास्थ्य संबंधी खतरा बढ़ा
जीवाश्म(Biofuel Use) ईंधनों के जलने से वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है, जिसके बारे में अध्ययन किया गया है कि इससे श्वसन, हृदय, चयापचय और तंत्रिका संबंधी सहित विभिन्न स्थितियों का खतरा बढ़ जाता है।लेखकों ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने से वायु प्रदूषण कम होगा, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी और मानव स्वास्थ्य को लाभ होगा।
जैसे-जैसे ग्रह गर्म होता जा रहा है, जलवायु परिस्थितियां डेंगू और मलेरिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियों के फैलने के लिए अनुकूल होती जा रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014-2023 के दौरान भारत के समुद्र तट की लंबाई जो किसी भी समय विब्रियो रोगाणुओं, जो हैजा जैसी बीमारियां फैलाते हैं, उसके लिए उपयुक्त है। 1990-1999 की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक है।इसके अलावा पिछले दशक में फ्रंटलाइन आबादी जो तटीय जल से 100 किलोमीटर के भीतर रहती है और जहां विब्रियो संक्रमण के लिए उपयुक्त परिस्थितियां हैं जौ 210 मिलियन को पार कर गई।
(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को फेडरल स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से स्वतः प्रकाशित किया गया है।)