‘अनियोजित विकास बना देश के शहरों की सबसे बड़ी चुनौती’ | TALKING SENSE WITH SRINI

द फेडरल के एडिटर इन चीफ ने कहा कि अब समय आ गया है कि प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित महापौरों को असली शक्तियां दी जाएं। यह अब सिर्फ विचार नहीं, ज़रूरत बन चुका है।

Update: 2025-10-19 12:12 GMT
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भारत के शहरी बुनियादी ढांचे पर अनियोजित और तेज़ी से हो रहे विस्तार का बोझ साफ़ झलकने लगा है। यह संकट अब सिर्फ बेंगलुरु तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देश की शहरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है। The Federal के एडिटर इन चीफ एस. श्रीनिवासन ने अपने शो 'Talking Sense with Srini' में यह बात कही।

किरण मजूमदार-शॉ बनाम कर्नाटक सरकार

बेंगलुरु की बिगड़ती हालत हाल ही में सार्वजनिक बहस का विषय बन गई, जब बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण मजूमदार-शॉ ने शहर की खस्ताहाल सड़कों और कचरा संकट को लेकर एक्स पर सरकार से सवाल पूछे। उन्होंने पोस्ट में लिखा कि मेरे पास एक विदेशी बिज़नेस विज़िटर आया जो बोला – ‘सड़कें इतनी खराब क्यों हैं और चारों तरफ इतना कचरा क्यों है? क्या सरकार निवेश को बढ़ावा नहीं देना चाहती? मैं अभी चीन से आई हूं और समझ नहीं पा रही कि भारत क्यों संभल नहीं पा रहा, जबकि समय अनुकूल है. उन्होंने अपनी पोस्ट में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार और मंत्री प्रियंक खड़गे को टैग भी किया।

इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा कि अगर उन्हें (शॉ) सड़कें बनानी हैं तो बनाएं। अगर वो हमारे पास आकर कहेंगी तो हम सड़कें उन्हें सौंप देंगे।

समस्या सिर्फ बेंगलुरु की नहीं: श्रीनिवासन

श्रीनिवासन ने कहा कि यह केवल बेंगलुरु की बात नहीं है। भारत के लगभग हर शहर में अनियोजित विकास, अव्यवस्थित प्लानिंग और नागरिक उपेक्षा के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि दशकों से राजनीतिक और प्रशासनिक विफलताओं ने शहरों की यह हालत की है। ब्यूरोक्रेट्स ने अपने लिए कॉलोनियां बना लीं और नेता लंबे समय की प्लानिंग के बजाय तात्कालिक उपायों पर ध्यान देते रहे।


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इसका परिणाम है कि आज शहरों को बाढ़, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और समाधान केवल “फायर फाइटिंग” तक सीमित रह गया है।

वित्तीय संकट और कमजोर शहरी प्रशासन

श्रीनिवासन ने यह भी बताया कि भारत के शहर आर्थिक रूप से पंगु हो चुके हैं। शहरी निकाय पूरी तरह से राज्य सरकारों पर निर्भर हैं। उन्हें न पर्याप्त फंडिंग मिलती है, न ही फैसले लेने की स्वतंत्रता। पॉपुलिस्ट योजनाएं जैसे मुफ्त सेवाएं, नगरपालिकाओं पर भारी पड़ रही हैं। श्रीनिवासन ने बताया कि भारत के शहर केवल 3% ज़मीन पर बसे हैं, लेकिन देश के 60% GDP में योगदान देते हैं, फिर भी इनकी शासन व्यवस्था बिखरी हुई है। उन्होंने सवाल किया कि क्या आपने कभी किसी नेता को खराब सड़कों के कारण चुनाव हारते देखा है? शहरी समस्याएं भारत में कभी चुनावी मुद्दा नहीं बनतीं।

समाधान: संरचनात्मक सुधारों की ज़रूरत

श्रीनिवासन ने सुझाव दिया कि अब समय आ गया है कि प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित महापौरों को असली शक्तियां दी जाएं। यह अब सिर्फ विचार नहीं, ज़रूरत बन चुका है। किरण मजूमदार-शॉ और मोहनदास पाई जैसे कारोबारी नेताओं की चिंताओं को गंभीरता से लेने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि सरकारों को आलोचना को राजनीतिक रंग देने के बजाय उसे सुनना और समझना चाहिए — क्योंकि ये समस्याएं वास्तविक और तात्कालिक हैं।

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