Priyanka speech: संसद में दिखी इंदिरा की झलक, सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी
Constitution debate: संसद में अपने पहले भाषण में वायनाड के सांसद ने भाजपा पर संविधान को कमजोर करने, भय फैलाने और राष्ट्र की अपेक्षा एक उद्योगपति को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया.;
Priyanka Gandhi: लोकसभा में 'संविधान बहस' पर शुरुआती वक्ता के रूप में वायनाड की सांसद प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने जोरदार भाषण दिया. महज 32 मिनट का वायनाड सांसद (Wayanad) का पहला भाषण आक्रामक, लेकिन संयमित और संक्षिप्त था. लेकिन तीखा और शैली में उनकी दादी, दिवंगत इंदिरा गांधी द्वारा संसद में दिए गए हस्तक्षेप की याद दिलाता था.
भारत के संविधान के 75 वर्षों की 'शानदार यात्रा' पर चर्चा के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के प्रस्ताव के बाद बोलते हुए प्रियंका (Priyanka Gandhi) ने हर उस विषय को छुआ जिसका इस्तेमाल कांग्रेस और उनके भाई, विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को घेरने के लिए किया है. हालांकि, उन्होंने ऐसा बिना किसी दिखावटी दिखावे, विद्वेष और अतिशयोक्ति के किया जो दुर्भाग्य से इन कटु ध्रुवीकृत समय में संसदीय चर्चा पर हावी हो गए हैं.
अपने भाई की तुलना में बेहतर वक्ता और अधिक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार की जाने वाली प्रियंका ने अपना हस्तक्षेप गहन राजनीतिक रखा तथा अपने स्वयं के अनुभवों के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में मिलने वाले आम लोगों के अनुभवों से भी प्रेरणा ली. लेकिन कभी भी दार्शनिक व्याख्यानों और अशिष्ट हमलों में नहीं उलझीं, जो संसद के अंदर और बाहर राहुल की वक्तृता को परिभाषित करते हैं.
कोई शब्द नहीं
प्रियंका (Priyanka Gandhi) ने मोदी सरकार पर एक आदमी (विवादित उद्योगपति गौतम अडानी) को “सब कुछ सौंपने” और “घृणा, भय, धमकी और असहमति को दबाने” की राजनीति के माध्यम से चुनावी लाभ “काटने” का आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर भी, राहुल के विपरीत, उन्होंने अपनी बात रखने के लिए कोई तस्वीर या तख्ती नहीं लहराई और न ही अभय मुद्रा, चक्रव्यूह आदि की हिंदू प्रतीकात्मकता का सहारा लिया.
अपनी पार्टी के अधिकांश नेताओं के विपरीत, जो या तो रक्षात्मक मुद्रा में आ जाते हैं या हर बार जब सत्ता पक्ष कांग्रेस को जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने की "गलतियों" की याद दिलाना चाहता है तो तीखे विरोध में उतर आते हैं, प्रियंका ने दोनों आलोचनाओं का धैर्यपूर्वक जवाब देने का विकल्प चुना.
'केवल अतीत की बातें'
उन्होंने भाजपा से पूछा कि वह वर्तमान के बारे में बात करने और देश को यह बताने के बजाय कि "आपने क्या किया है" केवल "अतीत की बात क्यों करती है" और आश्चर्य जताया कि आज भी "हर चीज नेहरू की जिम्मेदारी क्यों है". जब सत्ता पक्ष के सदस्यों ने इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करके संविधान को कमजोर करने के बारे में कटाक्ष करते हुए उन्हें बीच में रोकना चाहा तो प्रियंका (Priyanka Gandhi) ने पलटवार करते हुए कहा कि आप (इससे) सबक क्यों नहीं लेतीं. आप अपनी गलतियों के लिए माफी क्यों नहीं मांगतीं? हो सकता है कि यह बिना शर्त माफी न हो. लेकिन प्रियंका का जवाब आपातकाल की ज्यादतियों के लिए गांधी परिवार के किसी सदस्य द्वारा यथार्थ रूप से संभव खेद की एक अच्छी स्वीकारोक्ति थी.
संविधान को कमजोर करना
जाति, लिंग या धर्म के कारण हिंसा और राज्य उत्पीड़न के पीड़ितों के साथ अपनी बातचीत के उपाख्यानों को उद्धृत करते हुए, वायनाड के सांसद (Wayanad) ने हाथरस, संभल और मणिपुर पर सरकार की चुप्पी की भी आलोचना की. जबकि उन्होंने कहा कि ऐसे पीड़ितों के पास अपने अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखने की ताकत का एकमात्र स्रोत संविधान है, जिस पर उन्होंने भाजपा पर नियमित रूप से “हमला करने और उसे कमजोर करने” का आरोप लगाया. प्रियंका ने जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके भाजपा पर “भय का माहौल बनाने, आलोचना को दबाने, निर्वाचित सरकारों को अस्थिर करने और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को डराने” का आरोप लगाया. लेकिन कहा कि भय का अपना स्वभाव होता है. जो लोग भय फैलाते हैं, वे हमेशा चर्चा, बहस और आलोचना से डरते हैं.
प्रधानमंत्री पर तीखे, लेकिन शांत अंदाज में निशाना साधते हुए प्रियंका (Priyanka Gandhi) ने कहा कि हम सबने उस राजा की कहानी सुनी है, जो आम आदमी की तरह कपड़े पहनकर लोगों से मिलने जाता था, उनकी समस्याएं समझता था और उनकी शिकायतें सुनता था; आज के राजा को सजने-संवरने का शौक है लेकिन वह न तो आम लोगों से मिलने में विश्वास रखता है और न ही आलोचना सुनने में. उन्होंने भाजपा पर यह समझने में विफल रहने का आरोप लगाया कि भारत का संविधान आरएसएस द्वारा तैयार किया गया कानून नहीं है ( भारत का संविधान संघ का विधान नहीं है ).