GST 2.0: दो टैक्स स्लैब – क्या अब खत्म होगा टैक्स का जाल? Talking Sense with Srini
“Talking Sense with Srini” कार्यक्रम में The Federal के प्रधान संपादक एस. श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार की मंशा केवल उपभोग को बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसके पीछे राज्यों का दबाव, राजकोषीय संघवाद की चुनौतियां और जटिल टैक्स सिस्टम को सरल करने की पुरानी मांगें भी हैं।;
भारत की अप्रत्यक्ष टैक्स प्रणाली ने एक बार फिर बड़ा बदलाव देखा है। सरकार ने हाल ही में GST 2.0 की घोषणा की, जिसके तहत सैकड़ों वस्तुओं पर दरों में कटौती की गई है और मौजूदा टैक्स स्लैब्स को घटाकर एक सरल ढांचे में ढालने की कोशिश की गई है। इसे उपभोग बढ़ाने की दिशा में एक सुधार बताया जा रहा है। लेकिन यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है, जब देश धीमी आर्थिक वृद्धि और अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के प्रभावों से जूझ रहा है।
राजनीतिक व आर्थिक रणनीति का मेल
“Talking Sense with Srini” कार्यक्रम में The Federal के प्रधान संपादक एस. श्रीनिवासन ने कहा कि सरकार की मंशा केवल उपभोग को बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसके पीछे राज्यों का दबाव, राजकोषीय संघवाद की चुनौतियां और जटिल टैक्स सिस्टम को सरल करने की पुरानी मांगें भी हैं। GST 2.0 के तहत टैक्स स्लैब्स को दो प्रमुख दरों 5% और 18% में समेटने की कोशिश की गई है।
हालांकि, श्रीनिवासन के अनुसार, भारत में अब भी 5 प्रभावी स्लैब मौजूद हैं, जिनमें छूट, विशेष दरें (जैसे सोने पर 3%) आदि शामिल हैं। यूरोप के एकल VAT मॉडल की तुलना में भारत को अभी सरलीकरण के लक्ष्य तक पहुंचना बाकी है।
उपभोक्ताओं को राहत
नई दरों के तहत पैकेज्ड फूड्स, एफएमसीजी उत्पाद, किचनवेयर और बीमा प्रीमियम जैसी वस्तुएं सस्ती हो गई हैं। यह छूट विशेष रूप से मध्य वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए, त्योहारी सीजन से ठीक पहले दी गई है। श्रीनिवासन ने इसे "फील-गुड रिफॉर्म" बताया, जो खपत बढ़ाने के लिहाज़ से सही समय पर लाया गया है।
हालांकि, उन्होंने साथ ही आगाह किया कि जहां एक ओर कुछ दरों में कटौती हुई है। वहीं, कई उत्पादों पर 'अदृश्य वृद्धि' (Invisible Hikes) भी की गई हैं। जैसे कि कोयले पर GST अब 5% से बढ़ाकर 18% कर दिया गया है, जिससे बिजली की लागत में इजाफा हो सकता है। पाइपलाइन के ज़रिए भेजे जाने वाले परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों पर भी टैक्स बढ़ा है। The Federal के कॉलमनिस्ट टीके अरुण के हवाले से उन्होंने कहा कि ये वृद्धि शुरुआत में भले ही छिपी रहें, लेकिन लंबी अवधि में उपभोक्ताओं पर बोझ बन सकती हैं।
राजस्व नुकसान या आर्थिक संतुलन?
सरकार का अनुमान है कि दरों में कटौती से ₹48,000 करोड़ का "काल्पनिक" राजस्व नुकसान होगा। लेकिन श्रीनिवासन का मानना है कि यह आंकड़ा वास्तविकता से कहीं अधिक है। यह जीडीपी का केवल 0.13% है और यदि खपत उन्
मांग में जान फूंकने की कोशिश
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या GST 2.0 एक दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार है या केवल तात्कालिक राहत? श्रीनिवासन का मानना है कि यह दोनों है— एक ओर यह सरलीकरण की दिशा में ज़रूरी कदम है, वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से कमज़ोर मांग को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी है। उन्होंने कहा कि जब तक खपत नहीं बढ़ेगी, तब तक निजी निवेश वापस नहीं आएगा। कंपनियां अभी 70–75% क्षमता पर काम कर रही हैं और इससे अधिक विस्तार तभी होगा, जब मांग बढ़े।
GST 2.0 निश्चित रूप से कर प्रणाली को सरल बनाने की दिशा में एक संकेत है और खपत-आधारित बढ़ावा देने का प्रयास है। हालांकि, श्रीनिवासन का स्पष्ट संकेत है कि इसमें "Fine Print" बेहद अहम होगी। उन्होंने आखिर में कहा कि ऊपरी तौर पर यह बड़ा बदलाव लगता है, लेकिन इसका असली स्वरूप हमें तभी समझ में आएगा, जब इसकी सूक्ष्म जानकारियां साफ़ होंगी।