HIV से पीड़ित लोगों के लिए खुशखबरी, काबू में होगा संक्रमण और वायरस

महत्वपूर्ण बात यह है कि ART एचआईवी को पूरी तरह खत्म नहीं करती लेकिन उसे इतना कमजोर कर देती है कि व्यक्ति स्वस्थ, सक्रिय और लंबा जीवन जी सकता है...

Update: 2025-12-24 15:55 GMT
एचआईवी से परेशान लोगों को मिलेगी राहत, संभव हुआ इलाज
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HIV को लंबे समय तक एक ऐसी बीमारी के रूप में देखा गया, जिसमें सबसे बड़ा खतरा खुद वायरस नहीं बल्कि उससे जुड़ी संक्रमणों की श्रृंखला होती है। निमोनिया, टीबी, शिंगल्स जैसी बीमारियां HIV मरीजों के लिए अक्सर जानलेवा साबित होती रहीं। लेकिन अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में यह साफ हो गया है कि लंबे समय तक ली गई एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (ART) केवल HIV वायरस को दबाती नहीं है बल्कि शरीर की खोई हुई सुरक्षा को भी वापस खड़ा करती है।

यूरोपियन मेडिकल जर्नल (EMJ Reviews) में प्रकाशित हालिया अध्ययन इसी दिशा में एक मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण देता है। इस शोध में सामने आए परिणाम इस रोग से पीड़ित मरीजों और उनके परिजनों के लिए बहुत चैन की सांसें लेकर आए हैं...


ART क्या है और कैसे काम करती है?

एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (Antiretroviral Therapy – ART) एचआईवी (HIV) संक्रमण के इलाज की आजीवन चलने वाली चिकित्सा है। यह कोई एक दवाई नहीं बल्कि कई दवाओं का संयोजन होता है, जिसका उद्देश्य एचआईवी वायरस को शरीर में फैलने और बढ़ने से रोकना है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ART एचआईवी को पूरी तरह खत्म नहीं करती लेकिन उसे इतना कमजोर कर देती है कि व्यक्ति स्वस्थ, सक्रिय और लंबा जीवन जी सकता है। ART की दवाएं एचआईवी के जीवन चक्र के अलग-अलग चरणों पर हमला करती हैं। कुछ दवाएं वायरस को कोशिका में प्रवेश करने से रोकती हैं। कुछ वायरस की नकल बनाने की क्षमता को बाधित करती हैं तो कुछ दवाएं नए बने वायरस को परिपक्व होने से पहले ही निष्क्रिय कर देती हैं

HIV शरीर की जिन कोशिकाओं को सबसे पहले निशाना बनाता है, वे हैं CD4 T-कोशिकाएं। यानी वही कोशिकाएं जो टीके के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया तय करती हैं। जब CD4 काउंट बहुत कम होता है, तब टीका लगने पर शरीर पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं बना पाता। यहीं ART निर्णायक भूमिका निभाती है।

द लैंसेट HIV और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित दीर्घकालिक अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि नियमित ART लेने पर वायरल लोड दब जाता है और CD4 काउंट धीरे-धीरे बढ़ता है। साथ ही इम्यून सिस्टम दोबारा 'सीखने' की अवस्था में लौट आता है। यानी ART सिर्फ वायरस को नियंत्रित नहीं करती बल्कि टीके को असरदार बनने का मंच भी देती है।


ART का असली असर कहां दिखता है?

यूरोपियन मेडिकल जर्नल रिव्यूज द्वारा प्रकाशित यह लॉन्ग-टर्म कोहोर्ट स्टडी 2010 से 2023 तक के डेटा पर आधारित है। इसमें हजारों HIV संक्रमित लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया। इसमें मुख्य रूप से यह देखा गया कि ART की अवधि, CD4 कोशिकाओं की संख्या और गंभीर संक्रमणों के बीच क्या संबंध है।

इस रिसर्च में जो बात सबसे साफ सामने आई, वह यह है कि जिन HIV मरीजों की शरीर की सुरक्षा करने वाली CD4 कोशिकाएं बहुत कम हो जाती हैं। यानी जब CD4 काउंट 200 से नीचे चला जाता है तो उनका शरीर आम संक्रमणों से भी खुद को बचा नहीं पाता। ऐसे मरीजों में निमोनिया और शिंगल्स (दाद जैसा दर्दनाक संक्रमण) का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में कई गुना बढ़ जाता है।

रिसर्च में यह भी देखा गया कि कुछ समूहों में हर 1000 मरीजों को एक साल तक देखने पर 100 से ज्यादा लोगों को निमोनिया हो गया। यानी औसतन हर दस में से एक व्यक्ति को साल के भीतर ही गंभीर फेफड़ों का संक्रमण हो रहा था। सीधे शब्दों में कहें तो CD4 काउंट जितना गिरता है, उतनी ही तेजी से शरीर की बीमारी से लड़ने की ताकत टूटती है और साधारण लगने वाली बीमारियां भी जानलेवा बन सकती हैं। इसी वजह से डॉक्टर CD4 काउंट को सिर्फ एक संख्या नहीं मानते बल्कि यह समझते हैं कि शरीर अभी खुद को बचाने की स्थिति में है या नहीं।

इसके उलट, जिन HIV मरीजों ने कम से कम एक साल तक नियमित ART ली और जिनका CD4 काउंट 500 कोशिका/µL (कोशिका प्रति माइक्रोलीटर रक्त) या उससे अधिक पहुंच गया, उनमें इन संक्रमणों की दर लगभग उसी स्तर पर आ गई, जैसी सामान्य आबादी में देखी जाती है। यह अंतर सिर्फ आंकड़ों का नहीं बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की दूरी का है।


ART शरीर के अंदर क्या बदलती है?

ART का उद्देश्य केवल HIV वायरस को कम करना नहीं है। जब वायरस दबता है तो शरीर की CD4 T-कोशिकाएं दोबारा सक्रिय होने लगती हैं। यही कोशिकाएं फेफड़ों, त्वचा और नसों को संक्रमण से बचाने की पहली दीवार होती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और PubMed पर उपलब्ध अध्ययनों के अनुसार, प्रभावी ART से इम्यून सिस्टम की रिकवरी बेहतर होती है। सूजन (chronic inflammation) कम होती है और अवसरवादी संक्रमणों का खतरा 60–90% तक घट सकता है। यही कारण है कि लंबे समय तक ART लेने वाले मरीजों में निमोनिया और हर्पीज़ ज़ोस्टर (शिंगल्स) जैसी बीमारियां होना धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं।



शिंगल्स और निमोनिया क्यों खास खतरा थे?

शिंगल्स दरअसल उस वायरस के दोबारा सक्रिय होने से होता है, जो बचपन में चिकनपॉक्स कर चुका होता है। कमजोर इम्यून सिस्टम में यह वायरस चुपचाप हमला करता है। इसी तरह निमोनिया, खासकर बैक्टीरियल और वायरल, HIV मरीजों में फेफड़ों को तेजी से नुकसान पहुंचा सकता है। यूरोपियन मेडिकल जर्नल रिव्यूज की स्टडी बताती है कि ART से इम्यून रिकवरी होने पर ये दोनों बीमारियां नियंत्रण में आ जाती हैं। क्योंकि शरीर फिर से यह पहचानने लगता है कि दुश्मन कौन है और उससे कैसे लड़ना है।


क्या अब HIV कम खतरनाक है?

यह कहना गलत होगा कि HIV अब खतरनाक नहीं रहा। लेकिन यह कहना पूरी तरह वैज्ञानिक है कि समय पर शुरू की गई और लंबे समय तक ली गई ART, HIV को एक नियंत्रित क्रॉनिक स्थिति में बदल देती है। आज HIV मरीज सिर्फ जीवित नहीं रह रहे बल्कि संक्रमण-मुक्त, सक्रिय और लंबा जीवन जी रहे हैं। यह बदलाव दवाओं का नहीं, इम्यून सिस्टम की वापसी का है।

यूरोपियन मेडिकल जर्नल रिव्यूज, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य अंतरराष्ट्रीय शोध एक ही बात पर सहमत हैं कि ART को टालना नहीं चाहिए, बीच में छोड़ना नहीं चाहिए और इसे केवल वायरल लोड की दवाई नहीं मानना चाहिए। ART वह आधार है, जिस पर HIV मरीज का पूरा स्वास्थ्य खड़ा होता है। अगर इम्यून सिस्टम मजबूत है तो संक्रमण कमजोर पड़ जाते हैं और यही आधुनिक HIV चिकित्सा का सबसे बड़ा सच है।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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