हवा में कम है प्रदूषण, फिर भी फेफड़ों का हाल है बेहाल; जानें बचाव
बरसात में हवा का प्रदूषण बारिश के पानी से धुलकर मिट्टी और पानी में जमा हो जाता है। खासतौर पर भारी धातुएं। जो बाद में फल सब्जियों से हमारी थाली में पहुंचते हैं;
Lungs Care Tips : बरसात का मौसम आते ही हम सब यह मान लेते हैं कि अब हवा में धूल, धुआं और स्मॉग जैसी समस्याएं कुछ समय के लिए खत्म हो गईं। और सच भी यही है कि बारिश का पानी हवा से बड़े कण (PM10) और सूक्ष्म कण (PM2.5) को धोकर नीचे गिरा देता है। साल2023 में जर्नल ऑफ एनवायरमेंट रिसर्च ( Journal of Environmental Research) में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि लगातार बारिश होने पर हवा में प्रदूषक तत्वों का स्तर 30-40% तक घट सकता है। यानी सांस लेना वाकई थोड़ा आसान हो जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रदूषण सिर्फ हवा से ही खत्म हो गया और फेफड़ों को हानि नहीं पहुंचाएगा? इसका उत्तर है– नहीं।
मिट्टी और पानी में जमने लगता है प्रदूषण
जब बारिश होती है तो हवा में व्याप्त प्रदूषण के कण बारिश के पानी के साथ बहकर मिट्टी और पानी में जमा हो जाते हैं। खासतौर पर भारी धातुएं (Heavy Metals) जैसे लेड (Lead), कैडमियम (Cadmium), मर्करी (Mercury) और आर्सेनिक (Arsenic) मिट्टी और नदियों में मिल जाते हैं। केंद्रिय प्रदूषण नियंत्रण संगठन (Central Pollution Control Board (CPCB) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों में मॉनसून के बाद मिट्टी में लेड का स्तर 15-20% तक बढ़ा पाया गया, जो बाद में फसलों और सब्जियों के जरिए हमारी थाली में पहुंच जाता है।
दूषित भोजन से सेहत को खतरा
मिट्टी और पानी में घुल चुके प्रदूषक जब सब्जियों, अनाज और फल के जरिए हमारे शरीर तक पहुंचते हैं, तो इसका असर हवा से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल करीब 1.3 करोड़ लोग दुनिया भर में प्रदूषित खाने और पानी की वजह से गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं। जानें, किस तरह का असर ये भारी तत्व शरीर पर डालते हैं...
लेड (Lead) बच्चों के दिमागी विकास को धीमा कर सकता है।
आर्सेनिक (Arsenic) लंबे समय में कैंसर का खतरा बढ़ाता है।
कैडमियम (Cadmium) किडनी और हड्डियों को नुकसान पहुंचाता है।
पेस्टिसाइड्स बारिश के पानी के जरिए सब्जियों की पत्तियों पर जम जाते हैं, जो सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं।
रिसर्च से जुड़ा एक सच
भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Toxicology Research (IITR), लखनऊ की एक 2021 की स्टडी बताती है कि मॉनसून के बाद गंगा और यमुना के किनारे उगने वाली सब्जियों में भारी धातुओं की मात्रा सामान्य दिनों की तुलना में लगभग 25% अधिक पाई गई। यानी बारिश ने हवा को तो साफ किया लेकिन खाना ज्यादा ज़हरीला बना दिया।
फेफड़ों पर कैसा असर डालते हैं ये भोजन और पानी?
भारी धातुएं (Heavy Metals) और केमिकल्स जब बारिश के बाद पानी और मिट्टी में चले जाते हैं तो ये फेफड़ों की सेहत को किस तरह प्रभावित करते हैं, इस बारे में यहां विस्तार से जानें...
रिसर्च बताती है कि बारिश के दिनों में हवा से नीचे बैठने वाले लेड, कैडमियम, मर्करी जैसी भारी धातुएं मिट्टी और पानी में मिल जाती हैं। ये सब्जियों और फलों में धीरे-धीरे इकट्ठा होते हैं। इनका लंबे समय तक सेवन करने से ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस (oxidative stress) और गंभीर (chronic inflammation) बढ़ते हैं, जिससे फेफड़ों की कोशिकाएं कमजोर होती हैं।
जर्नल ऑफ एनवायर्मेंटल साइंस ऐंड हेल्थ (Journal of Environmental Science & Health (2021) के अनुसार, शहरी इलाकों में उगाई गई पत्तेदार सब्जियों में भारी धातुओं की मात्रा सुरक्षित सीमा से 2-5 गुना अधिक पाई गई।
बारिश में धुला हुआ PM2.5 और PM10 पानी व मिट्टी में घुलकर खेती की फसलों में चला जाता है। लंबे समय तक इनके सेवन से फेफड़ों में फाइब्रोसिस, अस्थमा की गंभीर स्थिति और फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2023 की रिपोर्ट कहती है कि PM2.5 के लगातार सेवन से फेफड़ों के कैंसर का खतरा 15–20% तक बढ़ जाता है।
बारिश के पानी से जमीन में घुले हुए केमिकल्स जब पीने के पानी में मिलते हैं तो फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट जैसी चीज़ें शरीर में पहुंच जाती हैं। ये पदार्थ सीधे तौर पर श्वसन तंत्र में जलन और ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं को पैदा करने का कारण बनते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर
इन दूषित खाद्य पदार्थों का लगातार सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। जब फेफड़ों का बचाव पक्ष कमजोर होगा तो एलर्जी रिनिथिस, बार-बार खांसी आना, सीने में जकड़न जैसी समस्याएं बढ़ने लगती हैं।
हमें क्या करना चाहिए?
सब्जियां और फल धोकर खाने चाहिए। साथ ही बारिश के मौसम में और इसके तुरंत बाद के महीनों में जितना हो सके फल और सब्जियों का उपयोग छीलका उतारकर करना चाहिए। क्योंकि छिलके में काफी मात्रा में ये भारी तत्व होते हैं। साथ ही सिर्फ पानी से नहीं बल्कि हल्के नमक या बेकिंग सोडा वाले पानी से धोने पर 80-90% तक पेस्टिसाइड और धूल हट जाती है।
पीने के लिए फिल्टर्ड पानी का उपयोग करें। ये बारिश के दिनों में पानी के जरिए फैलने वाले प्रदूषण से बचाव का सबसे कारगर तरीका है। आप चाहें तो पानी को उबालकर ठंडा करके भी रख सकते हैं। फिर इसका छानकर सेवन करें। यह आपको पेट संबंधी बीमारियों से बचने में सहायता करता है। खासतौर पर अतिसार यानी दस्त (लूज मोशन) और डायरिया (उल्टी-दस्त-डिहाइड्रेशन) से बचाव होता है।
लोकल रिसर्च को फॉलो करना सुरक्षित है। हर बड़े शहर में मॉनसून के बाद प्रदूषण से जुड़ी रिपोर्ट जारी की जाती है। अगर आप उस हिसाब से फूड सोर्स चुनें तो खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
मौसमी और स्थानीय आधार पर उगने वाले भोजन, फल और सब्जियों को चुनना चाहिए। क्योंकि बाहर से आए चमकीले और आकर्षक दिखने वाले फल-सब्जियां कहीं अधिक प्रदूषित हो सकते हैं।
जरूरी है जागरूकता
बरसात हमें थोड़े समय के लिए स्वच्छ हवा जरूर देती है। लेकिन वहीं बारिश का पानी प्रदूषण को जमीन और जलाशयों के पानी में गहरा बसा देता है। यानी सांस की राहत के बदले हमें भोजन और पानी में छुपे जहर का सामना करना पड़ता है। इसीलिए अब जरूरी है कि प्रदूषण को सिर्फ हवा की समस्या मानने की बजाय इसे एक फूड चेन चैलेंज की तरह समझा जाए। इसके प्रति जागरूक बनें और सावधानी बरतते हुए भोजन का सेवन करें। सर्तकता ही इस मौसम में स्वस्थ फेफड़ों का रहस्य है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।