अग्नाश्य में घटा विटामिन-डी तो घेर लेगी डायबिटीज और बढ़ेगा कोलेस्ट्रॉल
जब शरीर में विटामिन-D घटता है तो इसका असर सिर्फ हड्डियों पर नहीं बल्कि डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के रूप में भी दिखने लगता है। जानें कैसे...
विटामिन-D की कमी शुगर और कोलेस्ट्रॉल की स्थिति को चुपचाप बिगाड़ देती है। हालांकि विटामिन-D को हम अक्सर हड्डियों की सेहत तक सीमित मान लेते हैं। आम धारणा यही है कि इसकी कमी से बस हड्डियां कमजोर होती हैं या जोड़ों में दर्द होता है। लेकिन आधुनिक मेडिकल रिसर्च इस सोच को बहुत पीछे छोड़ चुकी है।
आज विज्ञान साफ कहता है कि विटामिन-D शरीर में केवल पोषक तत्व नहीं बल्कि हार्मोन की तरह काम करने वाला एक शक्तिशाली नियंत्रक है, जो शुगर, कोलेस्ट्रॉल और पूरे मेटाबॉलिज़म को संतुलन में रखता है। यही कारण है कि जब शरीर में विटामिन-D कम होता है तो उसका असर सिर्फ हड्डियों पर नहीं बल्कि डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों पर भी धीरे-धीरे दिखने लगता है।
डायबिटीज का रास्ता पैनक्रियास से होकर जाता है
रिसर्च बताती है कि पैनक्रियास अर्थात अग्नाश्य, जहां इंसुलिन बनता है, वहां विटामिन-D रिसेप्टर्स मौजूद होते हैं। ये रिसेप्टर अपना काम अच्छी तरह से तभी कर पाते हैं, जब शरीर में विटामिन-डी की मात्रा सही होती है। इंसुलिन के बनने से लेकर अपना काम सही तक करने की प्रक्रिया में ये रिसेप्टर महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं। जर्नल ऑफ क्लीनिकल एंडोक्रिनोलॉजी ऐंड मेटाबॉलिज़म (Journal of Clinical Endocrinology & Metabolism) में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, जब विटामिन-D पर्याप्त होता है तो इंसुलिन का स्राव बेहतर रहता है और शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के संकेतों को सही तरह समझ पाती हैं।
लेकिन जैसे ही विटामिन-D की कमी होती है, इंसुलिन का असर कमजोर पड़ने लगता है और कोशिकाएं इंसुलिन की कॉल को “अनसुना” करने लगती हैं और यहीं से इंसुलिन रेजिस्टेंस की शुरुआत होती है। हार्वर्ड से जुड़ी Nurses’ Health Study में यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि जिन लोगों में लंबे समय तक विटामिन-D का स्तर कम रहा, उनमें टाइप-2 डायबिटीज विकसित होने का खतरा कहीं अधिक था। यानी विटामिन-D की कमी केवल डायबिटीज के साथ चलने वाली समस्या नहीं है बल्कि डायबिटीज को जन्म देने वाली जमीन भी बन सकती है।
कोलेस्ट्रॉल और लिवर पर भी पड़ता है सीधा असर
कोलेस्ट्रॉल का संतुलन मुख्य रूप से लिवर नियंत्रित करता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ कॉर्डियोलॉजी (American Journal of Cardiology) में प्रकाशित रिसर्च बताती है कि विटामिन-D की कमी से लिवर में फैट मेटाबोलिज़म बिगड़ने लगता है। इसका नतीजा होता है ट्राइग्लिसराइड्स का बढ़ना, HDL यानी अच्छे कोलेस्ट्रॉल का कम होना और फैटी लिवर की संभावना।
जिन लोगों में पहले से मेटाबॉलिक सिंड्रोम या डायबिटीज मौजूद है, उनमें विटामिन-D की कमी कोलेस्ट्रॉल की समस्या को और गंभीर बना सकती है। यानी शुगर और कोलेस्ट्रॉल दोनों बीमारियां विटामिन-D की कमी में एक-दूसरे को ताकत देती हैं।
NHANES डेटा ने क्यों बढ़ाई चिंता
अमेरिका के नेशनल हेल्थ ऐंड न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे (NHANES) के डेटा विश्लेषण में सामने आया कि जिन लोगों में विटामिन-D का स्तर कम था, उनमें डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और मेटाबॉलिक सिंड्रोम, तीनों एक साथ पाए जाने की संभावना कहीं अधिक थी। यह रिसर्च इस बात की पुष्टि करती है कि विटामिन-D की कमी शरीर की पूरी मेटाबॉलिक मशीनरी को कमजोर कर देती है, जिसका असर सिर्फ एक बीमारी तक सीमित नहीं रहता।
क्या विटामिन-D लेने से सब ठीक हो जाता है?
डायबिटीज केयर और न्यूट्रिशन रिव्यूज में प्रकाशित नियंत्रित अध्ययनों से यह जरूर पता चलता है कि जिन मरीजों में विटामिन-D की गंभीर कमी थी, उनमें सप्लीमेंट से इंसुलिन सेंसिटिविटी में कुछ सुधार और ट्राइग्लिसराइड्स में हल्की कमी देखी गई। लेकिन वैज्ञानिक यह भी साफ कहते हैं कि विटामिन-D कोई जादुई इलाज नहीं है। यह इलाज का विकल्प नहीं बल्कि शरीर को सही दिशा में बनाए रखने वाला सहायक तत्व है।
विटामिन-D की कमी को हल्के में लेना दरअसल शुगर और कोलेस्ट्रॉल दोनों को खुला न्योता देना है। यह कमी धीरे-धीरे इंसुलिन के काम को बिगाड़ती है, लिवर के फैट संतुलन को तोड़ती है और हृदय रोग का जोखिम भी बढ़ाती है। इसलिए आज विटामिन-D को केवल हड्डियों का विटामिन नहीं बल्कि मेटाबॉलिक सेहत का रक्षक माना जा रहा है। जो लोग शुगर, कोलेस्ट्रॉल या मोटापे से जूझ रहे हैं, उनके लिए विटामिन-D की अनदेखी भविष्य की बड़ी परेशानी बन सकती है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।