विक्रवंदी उपचुनाव का बहिष्कार कर AIADMK ने किया सेल्फ गोल

विपक्षी पार्टी ने न केवल सत्तारूढ़ डीएमके को सीट थमा दी, बल्कि भाजपा को राज्य में आगे बढ़ने का मौका भी दे दिया।

By :  R Rangaraj
Update: 2024-07-16 10:25 GMT

विनाश काले विपरीत बुद्धि, ऐसा प्रतीत होता है कि अन्नाद्रमुक के लिए ये कहावत चरितार्थ हो रही है. ऐसा लग रहा है कि पार्टी तमिलनाडु में आत्म-विनाश के रास्ते पर चल रही है, इसका तजा उदहारण पिछले सप्ताह विक्रवंदी विधानसभा उपचुनाव का बहिष्कार करने का उसका निर्णय है. ये पार्टी की बड़ी रणनीतिक भूल है. दूसरे शब्दों में इसे सेल्फ गोल भी कह सकते हैं.

इसने न केवल सत्तारूढ़ डीएमके को सीट परोस दी, बल्कि भाजपा को राज्य में और आगे बढ़ने का मौका भी दिया, जिससे भाजपा के इस दावे को भी बल मिला कि वो तमिलनाडु में एआईएडीएमके से ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ रही है. वास्तव में, पट्टाली मक्कल काची (पीएमके), जो अब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा है, और नाम तमीज़हर काची (एनटीके) जैसी छोटी पार्टियों ने डीएमके से हारने के बावजूद उपचुनावों में बढ़त हासिल की है.

ईपीएस दबाव में

पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का विश्वास बनाए रखने के लिए एआईएडीएमके महासचिव एडप्पादी पलानीस्वामी द्वारा एक हताश कदम के रूप में देखा जा रहा है, उन्होंने पिछले कुछ दिनों में विभिन्न जिलों के पार्टी पदाधिकारियों के साथ कई बैठकें की हैं. 2017 से लगातार चुनावों में असफलता के बाद कई वर्षों में पहली बार उन पर दबाव है, यहां तक कि उनके अपने समर्थकों से भी. 2026 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के भाग्य को लेकर चिंतित कार्यकर्ता अब डीएमके और यहां तक कि भाजपा को हराने में नेतृत्व की लगातार विफलता पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं.

पलानीस्वामी वास्तव में इस स्थिति के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे डीएमके के सामने मजबूत विपक्ष खड़ा करने में विफल रहे हैं, और गठबंधन बनाने के मामले में भी असफल रहे हैं, जबकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी डीएमके के एमके स्टालिन न केवल पार्टियों का एक मजबूत गठबंधन बनाने में सफल रहे हैं, बल्कि हर अवसर पर इसे बनाए रखने और विस्तार देने में भी सफल रहे हैं.

सभी खतरों का निष्कासन

पलानीस्वामी की विफलता के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. सबसे पहले, पार्टी में उन लोगों के साथ जगह साझा करने से उनका हठधर्मितापूर्ण इनकार, जिन्हें वे खतरा मानते थे, ने AIADMK को कमजोर कर दिया है. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम, दिवंगत मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख जे जयललिता की ताकत का स्तंभ वीके शशिकला और शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन शामिल हैं, जिन्होंने अलग पार्टी बना ली है.

पलानीस्वामी को अब एक ऐसे नेता के रूप में देखा जा रहा है, जो अपनी कुर्सी को लेकर ज़्यादा चिंतित है, जो किसी भी तरफ़ से अपने नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं देना चाहता है, और इसलिए वो किसी भी संभावित आलोचना को जड़ से खत्म करने की कोशिश में लगा रहता है. नतीजतन, AIADMK में न केवल विभाजन हुआ है, बल्कि निष्कासन के झटकों से भी जूझना जारी है.

कोई करिश्मा नहीं

दूसरी समस्या ये है कि पलानीस्वामी में पार्टी संस्थापक एमजीआर या जयललिता जैसा आभामंडल या करिश्मा नहीं है. वो के. करुणानिधि की तरह वक्ता या विपुल लेखक नहीं हैं. स्टालिन को भी इस मामले में नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन कुछ हद तक क्योंकि उन्हें करुणानिधि की विरासत मिली है और उनके पास शक्तिशाली सहयोगियों का मजबूत समर्थन है, जो किसी भी सत्ता विरोधी रुझान को खत्म करने में मदद कर सकते हैं.

पलानीस्वामी की भाजपा के खिलाफ़ टिप्पणियाँ भी सतही हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह या भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा की आलोचना करने के बजाय पार्टी के राज्य प्रमुख के अन्नामलाई पर अहंकार के टकराव का नतीजा है. भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की उनकी कोशिश - अल्पसंख्यक वोटों को विभाजित करने की कोशिश, जो अब लगभग पूरी तरह से डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन को जा रहे हैं - किसी भी तरह की दृढ़ता नहीं जगाती है. मंगलवार (16 जुलाई) को पार्टी के कुछ पदाधिकारियों के साथ बैठक में पलानीस्वामी ने कथित तौर पर स्वीकार किया कि अल्पसंख्यकों को लुभाने की रणनीति विफल हो गई है, क्योंकि उन्हें AIADMK के भाजपा विरोधी रुख पर भरोसा नहीं है और उनका मानना है कि दोनों पार्टियों के बीच एक गुप्त समझौता है.

खोये अवसर

इसलिए, AIADMK और पलानीस्वामी के सामने अहम सवाल ये है कि इस छवि को कैसे मिटाया जाए? साथ ही, पलानीस्वामी ने शशिकला, ओपीएस और दिनाकरन को पार्टी में वापस लाने से इनकार करके रणनीति में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है.

कम से कम, AIADMK राज्य में नंबर दो पार्टी के रूप में अपनी स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए विक्रवंडी उपचुनाव लड़ सकती थी. ये चुनाव अभियान का उपयोग अपने भाजपा विरोधी रुख को उजागर करने और DMK के खिलाफ सत्ता विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए कर सकती थी. युद्ध की शुरुआत से पहले ही युद्ध के मैदान को छोड़ने के कारण, पलानीस्वामी को अब AIADMK के एक वर्ग से भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है - एक ऐसी पार्टी जो अब प्रभावी रूप से दिशाहीन हो गई है.

(फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों)

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