उत्तराखंड का ‘यूपी मॉडल’ धर्मांतरण कानून: क्यों बढ़ा रही चिंता?

जहां भाजपा सरकार इसे धार्मिक असंतुलन रोकने का प्रयास बता रही है। वहीं, विपक्ष अल्पसंख्यक समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों पर हमला मानते हैं। आने वाले समय में इस कानून की वैधता और इसके सामाजिक प्रभाव पर निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय बहस होगी।;

Update: 2025-08-17 05:13 GMT

उत्तराखंड सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक 2025 को मंज़ूरी देकर धर्मांतरण विरोधी कानून को और अधिक कठोर बना दिया है। भाजपा सरकार द्वारा लाए गए इस प्रस्तावित कानून में अब जबरन धर्मांतरण के दोषी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है। इसके साथ ही सिर्फ संदेह के आधार पर आरोपी की संपत्ति ज़ब्त करने का अधिकार भी जिला प्रशासन को मिल गया है।

यूपी से ली प्रेरणा

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में राज्य मंत्रिमंडल ने यह विधेयक पारित किया, जो यूपी सरकार द्वारा लाए गए "लव जिहाद कानून" से प्रेरित बताया जा रहा है। यह कानून 2018 के मौजूदा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम का विस्तार है, जिसे 2022 में पहली बार संशोधित किया गया था।

संशोधन में क्या है नया

सज़ा

जबरन धर्मांतरण – 3 साल से उम्रकैद

महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/जनजाति या दिव्यांग व्यक्तियों का धर्मांतरण – 5 से 14 साल

विदेशी फंडिंग या सामूहिक धर्मांतरण – 7 से 14 साल

नाबालिगों या SC/ST के मामले में सज़ा बढ़कर 20 साल या आजीवन कारावास तक* हो सकती है।

"प्रलोभन" की परिभाषा का विस्तार

अब "किसी धर्म की महिमा बखान" को भी प्रलोभन माना जाएगा।

नौकरी, पैसे, तोहफे, मुफ्त शिक्षा, या बेहतर जीवन का वादा भी "प्रलोभन" की श्रेणी में आएगा।

सोशल मीडिया पर निगरानी

ऑनलाइन समुदाय बनाने वाले एप्लिकेशनों को भी इस कानून के दायरे में लाया गया है।

संपत्ति जब्ती

अगर जिला मजिस्ट्रेट को "विश्वास" हो कि किसी की संपत्ति का संबंध धर्मांतरण से है तो वे कोर्ट की अनुमति के बिना भी उसे ज़ब्त कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री धामी का पक्ष

मुख्यमंत्री धामी ने संशोधन को उचित ठहराते हुए कहा कि राज्य में "अवैध धर्मांतरण के ज़रिए जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने की साजिश" की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह कानून "राज्य की धार्मिक पहचान को सुरक्षित रखने" के लिए आवश्यक है।

लेकिन क्या है सबूत?

बीजेपी नेता अजेन्द्र अजय, जिन्होंने "लैंड जिहाद" का मुद्दा भी उठाया था, ने इस कानून को "देशव्यापी धर्मांतरण अभियान" का जवाब बताया। हालांकि, न राज्य सरकार और न ही किसी नेता के पास धर्मांतरण की घटनाओं या जनसांख्यिकीय बदलाव का कोई ठोस आंकड़ा है।

संविधान का उल्लंघन?

नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और ईसाई समुदाय ने इस विधेयक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन बताया है, जो हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता देता है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के संयोजक एसी माइकल ने कहा कि यह विधेयक संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। बिजनौर डायोसिस से फादर जिन्टो अरिमबुक्करम ने कहा कि रविवार की नियमित पूजा भी अब ‘धर्मांतरण’ बताकर टारगेट की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की चिंता

16 मई 2025 को यूपी के समान कानून पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कुछ प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन प्रतीत होते हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार करना और उसे ही अपनी बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी देना, लोकतंत्र के खिलाफ है।

पृष्ठभूमि: उत्तर प्रदेश का कानून

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2021 में "धार्मिक रूपांतरण निषेध अधिनियम" पारित किया था, जिसे 2024 में और सख्त किया गया। इसमें जबरन धर्मांतरण, विवाह या तस्करी जैसे अपराधों के लिए 20 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा निर्धारित की गई थी।

कानून या दमन का हथियार?

इस संशोधित विधेयक में इतनी व्यापक शक्तियां कार्यपालिका को दी गई हैं कि सिर्फ इरादे के संदेह पर गिरफ्तारी हो सकती है। संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है और बेल तभी मिलेगी जब अदालत संतुष्ट हो कि आरोपी निर्दोष है। यह स्थिति कानून की सामान्य प्रक्रिया और न्याय की अवधारणा पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है।

(फेडरल सभी पक्षों के विचारों और राय को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। लेखों में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक की हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करें।)

Tags:    

Similar News