गेहूं खरीद को लेकर सरकार के माथे पर बल, 50 फीसदी किसानों ने नहीं बेचा गेहूं
चालू रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन 11.50 करोड़ टन होने का अनुमान के मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य बढ़ाकर निर्धारित किया है। लेकिन अनाज मंडियों के रुख को देखते हुए नहीं लगता कि सरकारी खरीद अपना लक्ष्य पूरा कर पाएगी।;
चालू रबी खरीद सीजन में गेहूं की खरीद को लेकर सरकार के माथे पर बल पड़ने शुरु हो गए हैं। बंपर पैदावार, लाभप्रद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और बोनस के साथ गेहूं उत्पादक राज्यों द्वारा आगे बढ़कर की जा रही खरीद भी नाकाफी साबित हो रही है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय अपने निर्धारित लक्ष्य 3.20 करोड़ टन को छू पाने से काफी पीछे रह सकती है। रबी मार्केटिंग सीजन 2025-26 के दौरान 10 मार्च से 30 जून 2025 के बीच कुल खरीद 2.56 करोड़ टन हो सकी है, जो पिछले सीजन के मुकाबले कम है।
गेहूं की सरकारी खरीद घट रही है। रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद 50 प्रतिशत से अधिक गेहूं किसानों ने सरकारी खरीद केंद्रों को अपनी उपज नहीं बेची है। गेहूं उत्पादक राज्यों की विभिन्न मंडियों में गेहूं की जबर्दस्त आवक हो रही है। लेकिन सरकारी खरीद केंद्रों पर किसान गेहूं लाने के बजाय सीधे प्राइवेट व्यापारियों को बेच रहा है, जहां उन्हें एमएसपी से अच्छा मूल्य प्राप्त हो रहा है।
प्राइवेट प्रतिष्ठानों की गेहूं खरीद के आगे सरकारी खरीद केंद्रों की हालत पस्त है। पाकिस्तान के साथ युद्ध की आशंका और पश्चिमी सीमा पर तनातनी के चलते महंगाई के बादल गहरा सकते हैं। खाद्यान्न कारोबार में लगे प्राइवेट प्रतिष्ठान अपना स्टॉक पोजिशन मजबूत बनाकर रखना चाहते हैं। इस वजह से भी कमोडिटी बाजार में गेहूं की कीमतें निर्धारित एमएसपी से बढ़ाकर बोली जा रही हैं। इसी वजह से खाद्य वस्तुओं की महंगाई की आशंका बढ़ सकती है। आने वाले दिनों में महंगाई पर काबू पाने के लेकर सरकार गेहूं निर्यात से पल्ला झाड़ते हुए गेहूं उत्पादों पर भी प्रतिबंध जारी रखा है।
देश के कुल 11 गेहूं उत्पादक राज्यों में से केवल नौ राज्यों में ही सरकारी खरीद हो रही है। कुल 291 जिलों में गेहूं की सरकारी खरीद होती रही है। लेकिन इस बार 51 जिलों में गेहूं का एक दाना भी नहीं खरीदा गया है। कुल 36.35 लाख गेहूं किसानों ने गेहूं की अपनी उपज सरकार की एमएसपी पर बेचने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया था, जिनमें से 50 प्रतिशत किसानों ने ही अपनी उपज सरकारी खरीद केंद्रों पर दिया है। कुल 36.35 लाख किसानों को रजिस्ट्रेशन किया गया था, जिनमें केवल 21 लाख किसानों ने ही अपना गेहूं सरकारी खरीद केंद्रों पर दिया है। मार्केट इंटेलीजेंस की मानें तो बाकी गेहूं किसानों ने अपनी उपज प्राइवेट व्यापारियों के हाथों बेचना मुनासिब समझा है। दरअसल, खुले बाजार में गेहूं का मूल्य निर्धारित एमएसपी 2425 रुपए प्रति क्विंटल के मुकाबले अधिक चल रहा है।
गेहूं की खपत करने वाली बड़ी उपभोक्ता कंपनियां भी इस बार बाजार से गेहूं खरीद रही हैं। छोटी मंडियों के व्यापारी व आढ़ती उनके लिए आगे बढ़कर गेहूं की खरीद कर रहे हैं। पिछले रबी सीजन में गेहूं खरीद में पिछड़ी कंपनियों को खुले बाजार से महंगा गेहूं खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ा था। भारती खाद्य निगम ने भी खुले बाजार में अपना गेहूं मूल्य बढ़ाकर बेचा था। बीते वर्ष देश की प्रमुख अनाज मंडियों में गेहूं के भाव अधिक थे। गेहूं का एमएसपी 2425 रुपए प्रति क्विंटल है। कुछ राज्यों ने गेहूं किसानों को उनकी उपज पर प्रति क्विंटल डेढ़ सौ रुपए प्रति क्विंटल का बोनस भी घोषित किया है। फिर भी किसान सरकारी खरीद केंद्रों की ओर अपेक्षित मुंह नहीं कर रहा है।
गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद की स्थिति सबसे खराब है। वहां अब तक केवल सात लाख टन गेहूं की खरीद हो सकी है। राज्य सरकार इस बार गेहूं की खरीद का लक्ष्य 60 लाख टन निर्धारित किया है, जिसे प्राप्त करना फिलहाल संभव नहीं दिखता है। राज्य के ज्यादातर किसानों ने निजी व्यापारियों को अपनी उपज सीधे खेतों से ही बेच दी। खाद्यान्न के सेंट्रल पूल में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं देने वाला राज्य हरियाणा में इस बार अब तक केवल 65 लाख टन गेहूं की खरीद हो सकी है। जबकि पिछले साल अब तक 72 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। राज्य के सरकारी खरीद केंद्रों पर गेहूं की खरीद ठप सी हो चुकी है। राज्य सरकार ने गेहूं खरीद का अपना लक्ष्य संशोधित कर दिया है। सेंट्रल पूल में सर्वाधिक गेहूं देने वाले राज्य पंजाब ने एक करोड़ टन गेहूं की खरीद कर लिया है, जो पिछले वर्ष के 124 लाख टन के मुकाबले बहुत पीछे है। मध्य प्रदेश एकमात्र राज्य है, जहां सरकारी खरीद की गति तेज है। वहां अब तक 58 लाख टन गेहूं खरीद लिया गया है।
चालू रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन 11.50 करोड़ टन होने का अनुमान के मद्देनजर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य बढ़ाकर निर्धारित किया है। लेकिन अनाज मंडियों के रुख को देखते हुए नहीं लगता कि सरकारी खरीद अपना लक्ष्य पूरा कर पाएगी।
सरकार को अनाज के पर्याप्त स्टॉक्स की जरूरत है। उसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून पर अमल के लिए छह करोड़ टन अनाज की वार्षिक आवश्यकता है। देश की दो तिहाई आबादी 81 करोड़ लोगों को प्रति माह पांच से सात किलो अनाज वितरित करने की जरूरत है। इसके अलावा सरकार की अन्य पोषण योजनाओं के लिए जिनमें मिड डे मील सबसे प्रमुख है। बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं में अपने उत्पाद तैयार करने के लिए गेहूं की भारी जरूरत पड़ती है। इनमें आटा, मैदा, सूजी, ब्रेड और बिस्कुट प्रमुख है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग को देखते हुए निर्यातकों का रुझान इस ओर है। हालांकि, सरकार ने फिलहाल गेहूं व उसके अन्य उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात में गेहूं की कटाई व थ्रेसिंग का कार्य पूरा हो चुका है। जबकि अन्य गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में 90 प्रतिशत, हरियाणा व पंजाब में भी गेहूं की कटाई अपने अंतिम चरण में है, जो मंडियों तक पहुंच चुकी है। मई के पहले सप्ताह तक देश के सभी राज्यों में गेहूं की हार्वेस्टिंग का कार्य पूरा हो चुका है।